दिल्ली हाईकोर्ट सख्त: फीस वसूली के लिए अमानवीय उपाय नहीं चलेगा, स्कूल वाणिज्यिक संस्थान नहीं हैं

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दिल्ली हाईकोर्ट सख्त: फीस वसूली के लिए अमानवीय उपाय नहीं चलेगा, स्कूल वाणिज्यिक संस्थान नहीं हैं

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्कूलों द्वारा फीस वसूली के लिए अपनाए जा रहे अमानवीय और अपमानजनक तरीकों पर कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट किया है कि शिक्षा के मंदिरों को व्यापारिक संस्थानों में परिवर्तित नहीं होने दिया जा सकता। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की एकल पीठ ने दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस), द्वारका के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि छात्रों और अभिभावकों पर दबाव बनाने के लिए बाउंसर नियुक्त करना पूरी तरह से गलत और मानसिक उत्पीड़न के समान है।

मामला क्या है?

डीपीएस द्वारका द्वारा फीस बढ़ोतरी के विरोध में कुछ अभिभावकों ने संशोधित शुल्क का भुगतान करने से इनकार कर दिया था। इसके परिणामस्वरूप स्कूल प्रबंधन ने लगभग 31 छात्रों को निलंबित कर दिया था और कई छात्रों को न तो नई कक्षाओं में सेक्शन आवंटित किया गया, न ही उन्हें व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा गया। कुछ छात्रों को तो 20 मार्च से लाइब्रेरी में बैठाया जा रहा था, जिससे उनका नियमित शिक्षण बाधित हुआ।

न्यायालय की प्रतिक्रिया:

  • कोर्ट ने कहा कि स्कूलों को अपने बुनियादी ढांचे को बनाए रखने, स्टाफ को वेतन देने और सकारात्मक शैक्षणिक वातावरण बनाए रखने के लिए उचित शुल्क लेने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार छात्रों के मौलिक सम्मान की कीमत पर नहीं हो सकता
  • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षण संस्थानों को पूरी तरह से वाणिज्यिक दृष्टिकोण अपनाने से बचना चाहिए। शिक्षा सेवा एक सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है, न कि मुनाफाखोरी का साधन।
  • अदालत ने डीपीएस द्वारका द्वारा 31 छात्रों के निलंबन को वापस लेने के निर्णय को सकारात्मक कदम बताया, लेकिन साथ ही भविष्य में अमानवीय उपायों से बचने की चेतावनी भी दी।

प्रशासनिक हस्तक्षेप और आगामी सुनवाई:

  • शिक्षा निदेशालय की टीम ने 4 अप्रैल को डीएम के साथ स्कूल का दौरा किया और अभिभावकों की शिकायतों को सही पाया, इसके बावजूद छात्रों को राहत नहीं मिली, जिससे मजबूर होकर अभिभावकों को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा
  • 102 अभिभावकों ने याचिका दाखिल कर स्कूल को उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के नियंत्रण में लेने की मांग की है, जिस पर 10 जुलाई को अगली सुनवाई निर्धारित है।

अभिभावकों की मांगें और शिक्षा विधेयक:

  • अभिभावकों के संगठन चाहते हैं कि दिल्ली स्कूल शिक्षा विधेयक 2025 में उनकी मांगों को शामिल किया जाए।
  • प्रमुख मांगें हैं:
    • विधेयक के पारित होने से पहले उसे सार्वजनिक किया जाए।
    • स्कूल प्रबंधन समितियों (SMC) में कम से कम पांच निर्वाचित अभिभावकों को पूर्ण मतदान अधिकारों के साथ शामिल किया जाए।
    • फीस वृद्धि प्रस्तावों को मंजूरी देने या खारिज करने का अधिकार एसएमसी को दिया जाए

निष्कर्ष:

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला शिक्षा के क्षेत्र में एक संतुलनकारी दृष्टिकोण की ओर इशारा करता है, जहां स्कूलों के वित्तीय हितों और छात्रों के मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाना अनिवार्य है। फीस वसूली का अधिकार स्कूलों को है, परंतु वह मानवता, गरिमा और संवेदनशीलता के साथ किया जाना चाहिए। इस निर्णय ने एक बार फिर साबित किया है कि शिक्षा एक सेवा है, व्यापार नहीं