“दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पति लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों के खर्च के नाम पर पत्नी के भरण-पोषण से नहीं बच सकता”

“दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पति लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों के खर्च के नाम पर पत्नी के भरण-पोषण से नहीं बच सकता”

परिचय
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि कोई भी व्यक्ति यह तर्क देकर अपनी कानूनी पत्नी को भरण-पोषण (maintenance) देने से नहीं बच सकता कि वह अपनी लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों के खर्चे उठा रहा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पति की पहली जिम्मेदारी उसकी कानूनी पत्नी के भरण-पोषण की है और लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला और उसके बच्चों की देखभाल करने का तर्क पत्नी के वैधानिक अधिकार को कम नहीं कर सकता।

मामले का विवरण
यह मामला एक विवाहित महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दायर गुजाराभत्ता की याचिका से जुड़ा था, जिसमें महिला ने कहा था कि उसका पति लिव-इन पार्टनर के साथ रह रहा है और दूसरी महिला व बच्चों के खर्च उठा रहा है लेकिन उसे कोई भरण-पोषण नहीं दे रहा। पति ने तर्क दिया कि वह अपनी लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों के खर्च पहले से ही उठा रहा है, इसलिए उसे पत्नी को गुजाराभत्ता देने में रियायत दी जाए।

लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि पति की पहली जिम्मेदारी उसकी कानूनी पत्नी के प्रति है। कोर्ट ने कहा कि यह तर्क देना कि पति लिव-इन पार्टनर के खर्च उठा रहा है, पत्नी के अधिकार को नकारने का आधार नहीं हो सकता।

कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस रेखा पल्ली की एकल पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

“भले ही पति किसी अन्य महिला के साथ रह रहा हो और उसका भरण-पोषण कर रहा हो, लेकिन वह अपनी कानूनी पत्नी के भरण-पोषण के दायित्व से नहीं बच सकता।”

अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी का भरण-पोषण पति की आय और जीवन-शैली के अनुसार तय किया जाएगा। इसके लिए पति द्वारा लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों को दी जा रही मदद को उसके कुल खर्च का हिस्सा माना जा सकता है, लेकिन इससे पत्नी के वैधानिक अधिकारों को कोई आघात नहीं होगा।

कानूनी विश्लेषण

  1. धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
    अदालत ने धारा 125 CrPC का हवाला दिया, जिसके तहत पति को अपनी पत्नी, बच्चे और माता-पिता का भरण-पोषण करने का दायित्व होता है। यह दायित्व तभी समाप्त होता है जब पत्नी व्यभिचार में लिप्त हो या वैध कारण से पति का साथ छोड़ चुकी हो, जिसके इस मामले में कोई प्रमाण नहीं था।
  2. लिव-इन पार्टनर और बच्चे
    भारतीय कानून लिव-इन पार्टनर के बच्चों को कुछ परिस्थितियों में कानूनी सुरक्षा देता है, लेकिन यह अधिकार पति के अपनी वैध पत्नी के प्रति दायित्व को खत्म नहीं करता।
  3. नैतिक जिम्मेदारी बनाम कानूनी जिम्मेदारी
    अदालत ने कहा कि पति का नैतिक दायित्व अपनी लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों के प्रति हो सकता है, लेकिन कानूनी जिम्मेदारी उसकी पत्नी के प्रति सर्वोपरि है।

निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय समाज और कानून के उस पहलू को उजागर करता है जिसमें पति-पत्नी के रिश्ते में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की अनदेखी नहीं की जा सकती। लिव-इन रिलेशनशिप का चलन भले ही बढ़ रहा हो, लेकिन यह पति के अपनी कानूनी पत्नी के प्रति दायित्व को कम नहीं करता। यह फैसला न केवल पीड़ित पत्नियों को न्याय दिलाने में मदद करेगा, बल्कि पति को यह भी याद दिलाएगा कि उसका पहला कर्तव्य अपनी पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के प्रति है।