दिल्ली में विवादित अधिसूचना: थानों से पुलिस गवाही की अनुमति पर वकीलों का विरोध और दो दिवसीय हड़ताल
13 अगस्त 2025 को दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना द्वारा जारी की गई एक अधिसूचना ने दिल्ली की न्यायिक व्यवस्था और वकालत जगत में गहरी हलचल मचा दी। इस अधिसूचना के तहत दिल्ली पुलिस थानों को एक “निर्दिष्ट स्थान” (Designated Place) के रूप में मान्यता दी गई है, जहाँ पुलिस अधिकारी अदालत में पेश होकर गवाही देने के बजाय सीधे थाने से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या अन्य माध्यमों से साक्ष्य प्रस्तुत कर सकेंगे। यह कदम न्यायिक प्रक्रिया की दक्षता बढ़ाने और अदालतों पर बोझ कम करने के उद्देश्य से उठाया गया बताया जा रहा है, किंतु वकीलों ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार मानते हुए जोरदार विरोध शुरू कर दिया है।
अधिसूचना की मुख्य बातें
- दिल्ली पुलिस के थानों को गवाही दर्ज करने के लिए “निर्दिष्ट स्थान” घोषित किया गया।
- पुलिस अधिकारियों को अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने की आवश्यकता नहीं होगी।
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या अन्य तकनीकी साधनों के जरिए थाने से ही साक्ष्य दर्ज किए जा सकेंगे।
- सरकार का दावा है कि इससे अदालतों का समय बचेगा और मुकदमों की लंबी प्रक्रिया में तेजी आएगी।
वकीलों का विरोध और हड़ताल
दिल्ली बार काउंसिल और विभिन्न जिला अदालतों के अधिवक्ताओं ने इस अधिसूचना को न्यायपालिका की गरिमा के लिए “खतरनाक” करार दिया। उनका कहना है कि—
- समानता का सिद्धांत प्रभावित होगा: आम नागरिक, आरोपी या गवाह को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ता है, तो पुलिस अधिकारियों को यह विशेष छूट क्यों दी जा रही है?
- न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर खतरा: थानों से गवाही होने पर निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठेंगे, क्योंकि पुलिस थाने को “तटस्थ स्थल” नहीं माना जा सकता।
- न्यायालय की स्वायत्तता पर आघात: अधिसूचना से ऐसा प्रतीत होता है कि कार्यपालिका न्यायिक प्रक्रिया में सीधे हस्तक्षेप कर रही है।
- भविष्य में दुरुपयोग की आशंका: यदि पुलिस अधिकारियों को थाने से ही गवाही की सुविधा मिलती रही, तो धीरे-धीरे अन्य सरकारी अधिकारियों को भी यही सुविधा दी जा सकती है, जिससे न्यायिक संतुलन बिगड़ सकता है।
इन्हीं कारणों से वकीलों ने दो दिन की हड़ताल का ऐलान किया। 14 और 15 अगस्त को दिल्ली की विभिन्न अदालतों में अधिवक्ताओं ने कामकाज पूरी तरह से ठप रखा और सरकार से अधिसूचना को तुरंत वापस लेने की मांग की।
वकीलों की मांगें
- अधिसूचना को रद्द किया जाए और पुलिस अधिकारियों को अदालत में पेश होने की बाध्यता बनी रहे।
- यदि तकनीकी सुधार करने हैं, तो गवाही की प्रक्रिया अदालत परिसर में ही डिजिटल माध्यम से हो, न कि पुलिस थानों से।
- न्यायपालिका और बार काउंसिल से विचार-विमर्श कर ही कोई नई प्रक्रिया लागू की जाए।
सरकार और प्रशासन का पक्ष
सरकार का कहना है कि—
- पुलिस अधिकारियों को अक्सर मामूली मामलों में भी अदालत में पेश होने के कारण लंबे समय तक अदालतों में बैठना पड़ता है, जिससे पुलिसिंग का कार्य प्रभावित होता है।
- थानों से गवाही देने की सुविधा मिलने पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस को अधिक समय मिलेगा।
- तकनीक का उपयोग कर मामलों की सुनवाई में तेजी लाई जा सकती है, जो न्याय में देरी को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा।
न्यायपालिका और विशेषज्ञों की राय
कई विधि विशेषज्ञों का मानना है कि अधिसूचना संविधान के Article 14 (समानता का अधिकार) और Article 21 (न्याय का अधिकार) की भावना के विरुद्ध हो सकती है।
- गवाही की प्रक्रिया हमेशा “खुले न्यायालय” (Open Court) में होनी चाहिए, ताकि आरोपी और उसके वकील गवाह से जिरह कर सकें और जनता को न्यायिक प्रक्रिया पर विश्वास बना रहे।
- थाने से गवाही की अनुमति देने से यह आशंका बढ़ जाती है कि गवाह “प्रभाव” या “दबाव” में आकर गवाही दे सकता है।
प्रभाव और संभावित परिणाम
- यदि वकीलों का विरोध बढ़ता है, तो दिल्ली की अदालतों का कामकाज गंभीर रूप से प्रभावित होगा।
- अधिसूचना के खिलाफ अदालत में भी याचिकाएँ दायर की जा सकती हैं, जिससे यह मामला न्यायपालिका के समक्ष पहुँचने की पूरी संभावना है।
- यह विवाद आगे चलकर न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका के बीच एक बड़ा संवैधानिक टकराव भी बन सकता है।
निष्कर्ष
दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना ने न्यायिक जगत में एक नई बहस छेड़ दी है। एक ओर सरकार इसे प्रशासनिक दक्षता और तकनीकी सुधार का हिस्सा मान रही है, वहीं दूसरी ओर वकील और कई विशेषज्ञ इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर आघात मान रहे हैं। यह विवाद केवल “पुलिस अधिकारियों की गवाही” तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और समानता के सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस अधिसूचना को वापस लेती है या इसे अदालत में चुनौती दी जाती है।