दिल्ली की हवा का इलाज न्यायपालिका के पास कौन-सी जादुई छड़ी? : सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, सीमाएँ और समाधान
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण हर वर्ष एक भयावह संकट के रूप में लौटता है। सर्दियों की शुरुआत के साथ ही AQI 400 से ऊपर पहुँच जाना अब आम बात हो चुकी है। लेकिन 2024–2025 के मॉनिटरिंग सीज़न में हालात और भी गंभीर हो गए, जिससे सुप्रीम कोर्ट को अत्यंत कठोर टिप्पणियाँ करनी पड़ीं। कोर्ट ने सरकारों से यह पूछते हुए कड़ी नाराज़गी जताई—
“न्यायपालिका के पास कौन-सी जादुई छड़ी है कि हम तुरंत दिल्ली का प्रदूषण समाप्त कर दें? क्या अदालत अकेले दिल्ली की हवा साफ कर सकती है?”
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी सिर्फ नाराज़गी नहीं बल्कि शासन-प्रशासन की कमियों, नीतिगत विफलताओं और प्रदूषण नियंत्रण में संवैधानिक संस्थाओं की सीमाओं को भी उजागर करती है। इस विस्तृत आलेख में हम सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, न्यायपालिका की भूमिका, सरकारों की जिम्मेदारी, वैज्ञानिक कारण, कानूनी ढाँचा, प्रदूषण नियंत्रण की वास्तविक चुनौतियाँ और आगे की राह का गहन विश्लेषण करेंगे।
1. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का संदर्भ: जब हवा ‘इमरजेंसी’ में पहुँच गई
दिल्ली में अक्टूबर से नवंबर के बीच AQI 450–500 की रेंज में दर्ज किया गया। यह स्तर ‘Severe+’ कैटेगरी में आता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए ‘आपातकालीन स्थिति’ के बराबर माना जाता है। ऐसी स्थिति में अदालत कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी—
- पराली जलाने पर नियंत्रण
- निर्माण कार्यों पर रोक
- डीज़ल वाहनों की सीमा
- स्कूल बंद करने के आदेश
- ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के अनुपालन
- दिल्ली एवं पड़ोसी राज्यों की जिम्मेदारी
जब केंद्र और राज्यों ने कार्रवाई की कमी दिखायी, तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“हम आदेश देते-देते थक चुके हैं। हमारे पास कोई जादुई छड़ी नहीं है। सरकारें अपना काम करें। हवा साफ करना न्यायपालिका का काम नहीं हो सकता।”
2. सुप्रीम कोर्ट ऐसा क्यों कह रहा है? क्या वास्तव में न्यायपालिका असहाय है?
सुप्रीम कोर्ट का काम कानूनों का संरक्षण और क्रियान्वयन कराना है, न कि नीतियाँ बनाना या प्रशासनिक अभियान चलाना। प्रदूषण नियंत्रण में अदालत अपनी सीमा के भीतर ही हस्तक्षेप कर सकती है, जैसे—
- निगरानी
- जवाबदेही तय करना
- निर्देश देना
- अधिकारों की सुरक्षा (Article 21 — Right to Clean Air)
लेकिन न्यायपालिका सीधे होकर प्रदूषण कम नहीं कर सकती, क्योंकि:
- वह खेतों में नहीं जा सकती कि पराली रोके।
- वह हर सड़क पर धूल न हटाने वाले PWD को सज़ा नहीं दे सकती।
- वह वाहनों का उत्सर्जन नियंत्रण स्वयं लागू नहीं कर सकती।
- वह इंडस्ट्रीज़ का निरीक्षण नहीं कर सकती।
इसलिए अदालत ने कहा—“हवा साफ करना सरकारों का काम है, अदालत का नहीं।”
3. दिल्ली की हवा इतनी खराब क्यों होती है?— वैज्ञानिक व पर्यावरणीय विश्लेषण
दिल्ली-एनसीआर की प्रदूषण समस्या बहुस्तरीय है। प्रमुख कारण:
3.1 पराली जलाना — सबसे बड़ा मौसमी कारण
- पंजाब, हरियाणा, यूपी में धान की कटाई अधिक मशीनों से होने लगी है, जिससे बड़ी मात्रा में पराली बचती है।
- खेत खाली करके अगली फसल बोने का समय कम होता है, इसलिए किसान आग लगा देते हैं।
- हवा उत्तर-पश्चिम से दिल्ली की ओर चलने पर धुआँ सीधे दिल्ली पहुँचता है।
3.2 दिल्ली-एनसीआर में वाहनों का भारी बोझ
- दिल्ली में देश में सबसे ज्यादा पंजीकृत निजी वाहन हैं।
- लाखों वाहन रोज़ NCR में आवाजाही करते हैं।
- डीज़ल जेनरेटर भी योगदान देते हैं।
3.3 कंस्ट्रक्शन, रोड-डस्ट और धूल
- बड़े शहरों में निर्माण लगातार चलता है।
- सड़कों की सफाई और धूल संग्रहण की व्यवस्था कमजोर है।
3.4 औद्योगिक प्रदूषण
- NCR में कई रेड-कैटेगरी इंडस्ट्रीज हैं।
- ईंधन के तौर पर कोयला व बायोमास का उपयोग।
3.5 मौसम और भूगोल
- सर्दियों में तापमान कम होने से ‘इनवर्ज़न लेयर’ बनती है।
- हवा रुक जाती है, प्रदूषक ऊपर नहीं जा पाते।
- धुंध और धुआँ मिलकर ‘स्मॉग’ बना देते हैं।
यह सभी कारण मिलकर दिल्ली की हवा साल में 2–3 महीने “गैस चैंबर” जैसी बना देते हैं।
4. संविधान और कानून प्रदूषण से निपटने के लिए क्या कहते हैं?
भारत में पर्यावरण संरक्षण का मजबूत संवैधानिक ढाँचा है:
4.1 अनुच्छेद 21 — स्वच्छ हवा मौलिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि
“स्वच्छ हवा में सांस लेना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है।”
4.2 अनुच्छेद 48A — राज्य का कर्तव्य
- राज्य पर्यावरण की रक्षा करेगा।
- प्रदूषण रोकेगा।
4.3 अनुच्छेद 51A(g) — नागरिकों का कर्तव्य
पर्यावरण संरक्षण में जनता की जिम्मेदारी तय करता है।
4.4 राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- 2024 तक 20–30% PM कमी का लक्ष्य, मगर सफलता अधूरी।
4.5 GRAP (Graded Response Action Plan)
दिल्ली-NCR में AQI के आधार पर कार्रवाई का सिस्टम:
- AQI 200–300: कंट्रोल उपाय
- AQI 301–400: निर्माण सीमित
- AQI 400+: स्कूल बंद, वाहनों पर रोक, उद्योग बंद
4.6 एयर (प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन) एक्ट, 1981
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को अधिकार देता है।
इसके बावजूद प्रदूषण कम नहीं होने का कारण है— खराब क्रियान्वयन।
5. सुप्रीम कोर्ट प्रशासन से क्यों नाराज़ हुआ?
5.1 सरकार–सरकार blaming game
- दिल्ली: “पराली का धुआँ पंजाब से आता है।”
- पंजाब: “केंद्र MSP नीति ठीक करे।”
- हरियाणा: “दिल्ली अपने वाहनों पर नियंत्रण करे।”
- केंद्र: “राज्य सहयोग नहीं करते।”
इस राजनीतिक खींचतान से समस्या जस की तस रहती है।
5.2 आदेशों का पालन नहीं होता
कोर्ट हर साल कहता है— रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ
लेकिन पालन नहीं होता।
5.3 आंकड़ों में पारदर्शिता की कमी
कई विभाग वास्तविक आंकड़े नहीं देते।
5.4 GRAP लागू करने में देरी
- AQI खराब होने के बाद उपाय लागू किए जाते हैं, पहले नहीं।
6. सुप्रीम कोर्ट के लिए ‘जादुई छड़ी’ क्यों संभव नहीं?— न्यायिक सीमाएँ
न्यायपालिका के पास न तो अधिकारी हैं, न पुलिस, न फंड।
अदालत: आदेश दे सकती है
सरकार: उसे लागू करती है
इसलिए कोर्ट ने कहा:
“हम आदेश देकर समाधान नहीं बना सकते, आपको जमीन पर काम करना पड़ेगा।”
7. क्या केवल अदालत पर निर्भर रहकर दिल्ली की हवा साफ हो सकती है?— नहीं
क्योंकि:
- अदालत रोज़मर्रा के संचालन नहीं कर सकती।
- अदालत प्रशासन का विकल्प नहीं है।
- अदालत वैज्ञानिक प्रबंधन या कृषि नीतियाँ लागू नहीं कर सकती।
- अदालत फसल चक्र नहीं बदल सकती।
- अदालत सड़कें नहीं बनाती या साफ नहीं करती।
- अदालत उद्योगों की जांच नहीं कर सकती।
इसलिए समस्याओं का हल विधायिका + कार्यपालिका + समाज मिलकर ही कर सकते हैं।
8. आगे का रास्ता— समन्वित नीति और दीर्घकालिक समाधान
8.1 पराली समस्या का वैज्ञानिक समाधान
- Happy Seeder जैसी मशीनें सब्सिडी पर देना।
- पराली को बायो-CNG प्लांटों में भेजना।
- किसानों को फसल अवशेष न जलाने के बदले प्रोत्साहन राशि।
8.2 दिल्ली में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा
- EV चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाना।
- डीज़ल गाड़ियों पर प्रतिबंध और कड़े मानक।
8.3 निर्माण धूल नियंत्रण
- Anti-smog guns
- सड़कों की वॉटर स्प्रिंकलिंग
- कवरिंग अनिवार्य
8.4 उद्योगों में स्वच्छ ईंधन
- PNG या बिजली आधारित यूनिट
- कोयला न चलने देना
8.5 वैज्ञानिक शहरी योजना
- Green buffer zones
- Cluster-wise air monitoring
- Green belt rejuvenation
8.6 नागरिकों की भूमिका
- निजी वाहनों का प्रयोग कम करना
- कचरा न जलाना
- कार-पूल, पब्लिक ट्रांसपोर्ट
9. निष्कर्ष : प्रदूषण नियंत्रण— न्यायपालिका की नहीं, पूरी व्यवस्था की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी—
“हमारे पास कोई जादुई छड़ी नहीं है”
वास्तव में एक चेतावनी है कि
- सरकारें अपनी जिम्मेदारी निभाएँ
- जनता सहयोग करे
- नीतियाँ जमीन पर लागू हों
- राजनीति के बजाय विज्ञान और सहयोग से समाधान खोजे जाएँ
दिल्ली की हवा को साफ करने की जिम्मेदारी केवल अदालत की नहीं बल्कि सरकारों, वैज्ञानिक संस्थानों, प्रशासन, उद्योगों, किसानों और नागरिकों— सभी की है।
अगर सब मिलकर काम करें तो दिल्ली फिर से साँस लेने लायक बन सकती है; लेकिन केवल अदालत के आदेशों से हवा साफ नहीं हो सकती।