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दिल्ली की खतरनाक वायु गुणवत्ता पर CJI सुर्या कांत की गंभीर चिंता: सुप्रीम कोर्ट में वर्चुअल सुनवाई की वापसी पर संकेत

दिल्ली की खतरनाक वायु गुणवत्ता पर CJI सुर्या कांत की गंभीर चिंता: सुप्रीम कोर्ट में वर्चुअल सुनवाई की वापसी पर संकेत

        दिल्ली–एनसीआर में वायु प्रदूषण का संकट वर्षों से बना हुआ है, परंतु 2024–25 की सर्दियों में स्थिति इतनी भयावह हो गई कि यह सीधे-सीधे आम नागरिकों, बच्चों, बुजुर्गों, कर्मचारियों और न्यायिक ढांचे पर भी असर डालने लगी है। राजधानी का AQI लगातार ‘Severe’ यानी अत्यंत गंभीर श्रेणी में बना हुआ है, जिससे सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। ऐसे माहौल में देश की सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख, मुख्य न्यायाधीश (CJI) सुर्या कांत ने अदालत की कार्यवाही के दौरान अपनी व्यक्तिगत असुविधा और चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि दिल्ली की हवा इतनी जहरीली है कि वे सुबह की सैर पर भी बाहर नहीं जा पा रहे।

       यह टिप्पणी केवल एक व्यक्तिगत अनुभव नहीं थी; यह उन हजारों लाखों नागरिकों की वास्तविकता को प्रतिबिंबित करती है, जिनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर प्रदूषण का गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, CJI ने संकेत दिया कि सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर वर्चुअल हियरिंग (Virtual Hearings) की अनुमति देने पर विचार कर सकता है, जिससे वकीलों, पक्षकारों और न्यायालय कर्मियों के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

      यह लेख इस महत्वपूर्ण टिप्पणी, उसके कानूनी व प्रशासनिक प्रभाव, प्रदूषण से जुड़े व्यापक मुद्दों, वर्चुअल सुनवाई की व्यवहार्यता, तथा न्याय प्रणाली पर इसके दीर्घकालिक प्रभावों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।


1. दिल्ली-NCR की हवा: ‘गंभीर’ से ‘आपातकालीन’ श्रेणी तक पहुँची प्रदूषण की स्थिति

       दिल्ली में हर वर्ष अक्टूबर से जनवरी के बीच AQI लगातार खराब होता है, लेकिन 2024–25 में हालात पहले से भी अधिक खतरनाक सिद्ध हुए। पिछले कुछ हफ्तों में कई बार AQI 450–500 के बीच दर्ज किया गया, जो सीधे “Severe Plus” अथवा “Emergency” श्रेणी में आता है। ऐसे स्तर पर:

  • बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के लिए बाहर निकलना हानिकारक माना जाता है,
  • अस्थमा तथा हृदय रोग के मरीजों के लिए स्थिति जानलेवा हो सकती है,
  • लंबे समय तक एक्सपोज़र स्वास्थ्य को स्थायी हानि पहुँचा सकता है।

        दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और विभिन्न एजेंसियों द्वारा कई उपाय किए जाने के बावजूद मौसमीय परिस्थितियों, पराली जलाने, औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण धूल और वाहनों से निकलने वाले धुएं ने समस्या को नियंत्रण से बाहर कर दिया है।

इसी पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट के भीतर प्रदूषण पर चर्चा होना स्वाभाविक है।


2. CJI सुर्या कांत की टिप्पणी: ‘हम सुबह की वॉक पर भी नहीं जा पाते’

सुनवाई के दौरान, एक मामले में वकीलों की उपस्थिति को लेकर हुई चर्चा में CJI ने कहा:

“दिल्ली की हवा इतनी खराब है कि मैं सुबह बाहर निकलकर वॉक पर भी नहीं जा पाता। प्रदूषण का स्तर काफी चिंताजनक है। हमें अदालत की कार्यवाही के बारे में उपायों पर पुनर्विचार करना होगा।”

उनकी यह बात सिर्फ पर्यावरणीय टिप्पणी नहीं, बल्कि न्याय के प्रशासनिक प्रबंधन से जुड़ी चेतावनी थी। CJI ने आगे यह भी संकेत दिया कि यदि हालात ऐसे ही बने रहे तो सुप्रीम कोर्ट फिर से वर्चुअल हियरिंग की व्यवस्था लागू कर सकता है।

यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि 2020–2022 के बीच COVID महामारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट और अनेक हाई कोर्ट व जिला अदालतें पूरी तरह वर्चुअल मोड में संचालित की गई थीं। उस अनुभव ने यह साबित किया कि तकनीकी माध्यमों के जरिए अदालतें व्यवस्थित रूप से चल सकती हैं, भले ही यह स्थायी समाधान न हो।


3. वर्चुअल सुनवाई की वापसी: क्यों यह विकल्प फिर से प्रासंगिक है?

वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था पहले भी उपयोग में रही है और न्यायालय ने इसके कई लाभ देखे हैं। प्रदूषण जैसी आपदा या स्वास्थ्य जोखिम वाली स्थिति में यह और अधिक उपयोगी साधन सिद्ध हो सकता है।

(A) स्वास्थ्य की सुरक्षा

वायु प्रदूषण का सबसे पहला प्रभाव अदालतों के अंदर आने-जाने वाले हजारों लोगों पर पड़ता है। इनमें वकील, क्लर्क, मुवक्किल, न्यायालय कर्मचारी, सुरक्षाकर्मी और अन्य स्टाफ शामिल हैं। वर्चुअल हियरिंग से इस जोखिम को कम किया जा सकता है।

(B) भीड़ नियंत्रण और परिवहन उत्सर्जन में कमी

अदालतों के आस-पास दैनिक यातायात बहुत बढ़ जाता है। वर्चुअल मोड अपनाने से वाहन कम चलेंगे, जिससे उत्सर्जन में भी कुछ हद तक कमी आएगी।

(C) अदालत के समय और संसाधनों की बचत

COVID काल में पाया गया कि कई मामलों को वर्चुअल तरीके से अधिक तेजी से निपटाया जा सकता है, जिससे न्यायिक प्रणाली पर दबाव कम होता है।

(D) तकनीकी अनुभव में सुधार

पिछले वर्षों में ई-कोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत हुआ है—

  • ई-फाइलिंग,
  • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग,
  • डिजिटल रिकॉर्ड एक्सेस,
  • ऑनलाइन कॉज़लिस्ट सिस्टम
    जैसी सुविधाओं ने वर्चुअल सुनवाई को अधिक व्यवहारिक बना दिया है।

4. क्या सुप्रीम कोर्ट नियमित रूप से वर्चुअल सुनवाई की ओर लौट सकता है?

यद्यपि CJI की टिप्पणी गंभीर थी, लेकिन यह स्पष्ट संकेत भी दिया गया कि यह निर्णय परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। अदालत प्रदूषण के स्तर, स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय, प्रशासनिक जरूरतों और तकनीकी क्षमता को देखकर अंतिम निर्णय लेगी।

संभावित विकल्प

  1. Hybrid mode: कुछ मामलों में वर्चुअल, कुछ में फिजिकल।
  2. Only urgent matters virtual: अत्यंत जरूरी मामलों को ऑनलाइन सुनना।
  3. Full virtual mode for a limited time: AQI अत्यधिक खराब रहने पर अस्थायी तौर पर पूर्ण वर्चुअल मोड।
  4. Optional attendance: वकील चाहें तो ऑनलाइन जुड़ सकें।

तत्काल विकल्पों में, “ओप्शनल वर्चुअल हियरिंग” बहुत अधिक व्यावहारिक माना जा रहा है।


5. प्रदूषण का न्याय व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव

यह केवल एक स्वास्थ्य पर आधारित चिंतन नहीं है। वायु प्रदूषण न्याय तंत्र को पाँच प्रमुख तरीकों से प्रभावित करता है:

(1) न्यायिक कार्यक्षमता घटती है

वकील, जज और कर्मचारी जब बीमार होते हैं या श्वसन समस्याओं से जूझते हैं, तो उनकी उपस्थिति और क्षमता दोनों प्रभावित होती हैं।

(2) मामलों की पेंडेंसी बढ़ सकती है

यदि सुनवाई स्थगित होती रही या कर्मियों की बीमारी बढ़ी, तो लंबित मामलों की संख्या बढ़ेगी।

(3) अदालत परिसर में स्वास्थ्य जोखिम

अत्यधिक प्रदूषण के समय अदालतों के भीतर भी हवा साफ नहीं रहती, जिससे अंदर काम करने वाले लोग प्रभावित होते हैं।

(4) यात्रा में कठिनाई

दिल्ली में ट्रैफिक और प्रदूषण का संयुक्त असर वकीलों और पक्षकारों की यात्रा को जोखिमपूर्ण बनाता है।

(5) न्याय तक पहुँच (Access to Justice) प्रभावित

जब शारीरिक रूप से उपस्थित होना जोखिमपूर्ण हो जाए, तो न्याय तक पहुंच बाधित होती है। वर्चुअल सुनवाई इस बाधा को कम करती है।


6. वर्चुअल हियरिंग: फायदे और चुनौतियों का संतुलन

फायदे:

  • लचीलापन और सुविधा
  • समय और ऊर्जा की बचत
  • यात्रा खर्च की बचत
  • दस्तावेजों की डिजिटल उपलब्धता
  • आपातकालीन स्थितियों में निरंतर न्यायिक कार्य

चुनौतियाँ:

  • इंटरनेट की गुणवत्ता
  • तकनीकी बाधाएं
  • ग्रामीण पक्षकारों के लिए पहुंच की समस्या
  • कुछ मामलों (विशेषकर साक्ष्य संबंधी) में फिजिकल उपस्थिति की आवश्यकता
  • वकीलों और अदालतों को निरंतर तकनीकी प्रशिक्षण की जरूरत

CJI का संकेत स्पष्ट करता है कि अदालत इन चुनौतियों को पहचानती है, लेकिन असामान्य परिस्थितियों में वर्चुअल मोड सर्वोत्तम समाधान साबित हो सकता है।


7. सुप्रीम कोर्ट बार और वकीलों की प्रतिक्रिया: मिश्रित लेकिन सकारात्मक संकेत

कई वकील स्वास्थ्य सुरक्षा के नाम पर वर्चुअल सुनवाई का समर्थन करते हैं, जबकि कुछ इसे स्थायी समाधान नहीं मानते।
बार का बड़ा हिस्सा Hybrid system को सबसे व्यावहारिक विकल्प बताता है। CJI की टिप्पणी के बाद कानूनी समुदाय में यह चर्चा और तेज हो गई है कि क्या न्यायालय को तकनीकी रूप से और मजबूत बनाया जा सकता है।


8. न्यायपालिका के डिजिटल भविष्य की ओर संकेत

CJI की टिप्पणी केवल मौजूदा प्रदूषण संकट तक सीमित नहीं। यह न्यायपालिका के डिजिटल संक्रमण की व्यापक आवश्यकता की ओर भी इशारा करती है।

  • सुप्रीम कोर्ट पहले ही National Judicial Data Grid,
  • ई-फाइलिंग,
  • ई-कोर्ट्स परियोजना (Phase III)
    जैसे तकनीकी प्रयासों को तेज कर चुका है।

वर्चुअल सुनवाई की वापसी इस डिजिटल बदलाव को और गति दे सकती है।


9. निष्कर्ष: प्रदूषण संकट और न्यायपालिका की संवेदनशील प्रतिक्रिया

       दिल्ली की हवा केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है। जब देश के मुख्य न्यायाधीश स्वयं यह कहें कि वे खतरनाक वायु गुणवत्ता के कारण नियमित दिनचर्या पूरी नहीं कर पा रहे, तो यह पूरे देश के लिए चेतावनी है।

     सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्चुअल सुनवाई पर विचार एक जिम्मेदार, संवेदनशील और दूरदर्शी कदम है। यह सुनिश्चित करता है कि:

  • न्यायपालिका रुके नहीं,
  • लोगों का स्वास्थ्य सुरक्षित रहे,
  • आधुनिक तकनीक का उपयोग बढ़े,
  • न्याय तक पहुंच में बाधाएं कम हों।

     आने वाले दिनों में अदालत द्वारा इस संबंध में औपचारिक आदेश जारी होने की संभावना है। फिलहाल इतना स्पष्ट है कि देश की सर्वोच्च अदालत प्रदूषण से उत्पन्न स्थिति को गंभीरता से देख रही है और न्याय प्रणाली को सुरक्षित और प्रभावी बनाए रखने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रही है।