प्रश्न:
“दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की प्रमुख धाराओं का वर्णन कीजिए एवं यह स्पष्ट कीजिए कि यह अधिनियम दहेज प्रथा को रोकने में कितना प्रभावशाली रहा है?”
उत्तर:
परिचय (Introduction):
दहेज प्रथा भारतीय समाज की एक गंभीर सामाजिक बुराई रही है, जो महिलाओं के शोषण, घरेलू हिंसा, मानसिक प्रताड़ना और यहाँ तक कि हत्या का कारण भी बनती रही है। इस कुप्रथा पर नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने “दहेज निषेध अधिनियम, 1961” लागू किया। इसका उद्देश्य विवाह के अवसर पर दिए जाने वाले दहेज को रोकना और उसके लेने-देने को दंडनीय बनाना है।
दहेज की परिभाषा (Definition of Dowry):
अधिनियम की धारा 2 के अनुसार, “दहेज” वह संपत्ति, मूल्यवान वस्तु या धन है जो विवाह से पहले, विवाह के समय या विवाह के बाद, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वर या वधु या उनके रिश्तेदारों को दी जाती है।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की प्रमुख धाराएं (Important Provisions):
- धारा 3 – दहेज देना या लेना (Penalty for giving or taking dowry):
- दहेज का लेना या देना एक अपराध है।
- सजा: न्यूनतम 5 वर्ष की कारावास और ₹15,000 या दहेज के मूल्य (जो अधिक हो) तक जुर्माना।
- धारा 4 – दहेज की मांग (Penalty for demanding dowry):
- यदि कोई व्यक्ति दहेज की मांग करता है, तो वह अपराध करेगा।
- सजा: 6 माह से 2 वर्ष तक की कारावास और ₹10,000 तक जुर्माना।
- धारा 5 – दहेज संबंधी अनुबंध अमान्य होगा (Agreement for giving or taking dowry to be void):
- दहेज को लेकर कोई भी समझौता या अनुबंध अमान्य (Void) होगा।
- धारा 6 – स्त्रीधन की सुरक्षा (Dowry to be for the benefit of the wife):
- विवाह के बाद पत्नी को दहेज के रूप में दी गई संपत्ति उसकी मानी जाएगी और पति या उसके परिजनों को उसे लौटा देना होगा।
- धारा 8 – अपराध को संज्ञेय (Cognizable) और गैर-जमानती (Non-bailable) बनाना:
- यह अपराध संज्ञेय व गैर-जमानती माना जाता है, यानी पुलिस बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकती है।
दहेज निषेध अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) के प्रावधान:
- धारा 498A IPC – यदि पति या उसके रिश्तेदार दहेज के लिए पत्नी को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं।
- धारा 304B IPC (दहेज मृत्यु) – यदि विवाह के 7 वर्ष के भीतर पत्नी की अप्राकृतिक मृत्यु हो और दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया गया हो, तो यह दहेज मृत्यु मानी जाती है।
दहेज निषेध अधिनियम की प्रभावशीलता (Effectiveness of the Act):
सकारात्मक पहलू (Positive Aspects):
- यह अधिनियम एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है जिससे दहेज प्रथा को रोकने की कोशिश की गई।
- इससे समाज में जागरूकता बढ़ी है।
- कई मामलों में दोषियों को सजा भी मिली है।
नकारात्मक पहलू (Limitations):
- समाज में आज भी दहेज एक “मानद उपहार” के रूप में दिया जाता है, जिससे इसकी शिकायत नहीं की जाती।
- महिलाएं और उनके परिवार सामाजिक दबाव या भय के कारण रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते।
- कई बार इस कानून का गलत उपयोग भी हुआ है जिससे इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion):
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 एक अत्यंत महत्वपूर्ण कानून है जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से लागू किया गया था। हालांकि इस कानून ने कुछ हद तक दहेज प्रथा को नियंत्रित किया है, लेकिन इसका पूर्ण प्रभाव तभी दिखाई देगा जब समाज स्वयं इस प्रथा के विरुद्ध जागरूक होकर आगे बढ़ेगा। कानूनी उपायों के साथ-साथ सामाजिक चेतना और शिक्षा का बढ़ावा ही दहेज प्रथा को जड़ से समाप्त कर सकता है।