“तेज न्याय और डिजिटल प्रक्रियाः भा.ना.सु.सं. 2023 की प्रमुख विशेषताएं”

“तेज न्याय और डिजिटल प्रक्रियाः भा.ना.सु.सं. 2023 की प्रमुख विशेषताएं”


परिचय:
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐतिहासिक सुधार के तहत केंद्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की जगह “भारतीय न्याय संहिता, 2023” (भा.ना.सु.सं. 2023) को लागू किया है। यह नया कानून न केवल आपराधिक न्याय की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और समयबद्ध बनाता है, बल्कि इसमें डिजिटलीकरण और तकनीकी नवाचारों को कानूनी प्रक्रिया में एकीकृत किया गया है। यह लेख भा.ना.सु.सं. 2023 की प्रमुख विशेषताओं, तेज न्याय की व्यवस्था, और डिजिटल प्रक्रियाओं पर विशेष ध्यान केंद्रित करता है।


1. तेज न्याय की दिशा में क्रांतिकारी कदम

(क) समयबद्ध न्याय प्रक्रिया:

भा.ना.सु.सं. 2023 में स्पष्ट प्रावधान है कि एफ.आई.आर. दर्ज होने के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर की जानी चाहिए और ट्रायल 2 वर्षों के भीतर पूरा हो। इससे वर्षों तक लटके मुकदमों पर अंकुश लगेगा।

(ख) वर्चुअल सुनवाई:

न्यायालयों में अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई का प्रावधान है, जिससे दूरदराज के क्षेत्रों में रह रहे व्यक्तियों को न्याय तक आसान पहुंच मिलेगी।

(ग) न्यायिक प्रक्रिया में उत्तरदायित्व:

न्यायिक अधिकारियों, पुलिस और अभियोजन पक्ष की समयबद्धता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए निगरानी तंत्र बनाया गया है।


2. डिजिटल प्रक्रिया का एकीकरण

(क) ई-एफआईआर:

अब ई-एफआईआर दर्ज करना संभव हो गया है, खासकर संज्ञेय अपराधों में, जिससे पीड़ित को थाने में भटकने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

(ख) डिजिटल साक्ष्य की मान्यता:

भा.ना.सु.सं. 2023 में इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल साक्ष्य (जैसे ईमेल, मैसेज, सीसीटीवी फुटेज, डिजिटल रिकॉर्ड) को कानूनी साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया है।

(ग) ट्रैकिंग और निगरानी प्रणाली:

पुलिस जांच, मेडिकल परीक्षण, कोर्ट की कार्यवाही आदि की डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली लागू की गई है, जिससे केस की प्रगति पर निगरानी संभव हो सके।


3. पीड़ित केंद्रित दृष्टिकोण

भा.ना.सु.सं. 2023 में पीड़ित को केंद्र में रखा गया है, जैसे—

  • पीड़ित को जांच की स्थिति की डिजिटल जानकारी देने का प्रावधान
  • पीड़ित की शिकायत का त्वरित पंजीकरण और
  • आवश्यकतानुसार मानसिक और विधिक सहायता उपलब्ध कराना

4. तकनीकी और डिजिटल साक्ष्य की सुरक्षा

डिजिटल साक्ष्य की सुरक्षा और प्रमाणिकता सुनिश्चित करने के लिए:

  • ब्लॉकचेन तकनीक जैसे उन्नत उपायों की ओर कदम
  • डिजिटल लॉग रिकॉर्ड बनाए रखने की व्यवस्था
  • इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से प्राप्त साक्ष्यों को प्रमाणिक रूप से प्रस्तुत करने हेतु विशेष दिशा-निर्देश

5. अपराधियों की पहचान और जांच में तकनीकी सहयोग

  • फेस रिकग्निशन, ड्रोन, बॉडी कैमरा और डिजिटल फोरेंसिक जैसे तकनीकी टूल्स की मदद से अपराधों की जांच में तेजी आई है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड पोर्टल से आरोपी की डिजिटल प्रोफाइलिंग संभव है।

6. अन्य प्रमुख विशेषताएं

  • समूहिक दुष्कर्म, भीड़ हिंसा, अत्याचार, साइबर अपराध जैसे नए किस्म के अपराधों के लिए विशेष प्रावधान।
  • पुनः अपराध करने वालों पर कठोर दंड का प्रावधान।
  • सजा के विकल्प के रूप में समुदाय सेवा, काउंसलिंग जैसी विधियों को अपनाना।

निष्कर्ष:

भारतीय न्याय संहिता, 2023 न्याय की गति, गुणवत्ता और सुलभता के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सुधार है। डिजिटल प्रौद्योगिकी के समावेश से न केवल भ्रष्टाचार और विलंब में कमी आएगी, बल्कि पीड़ित को समय पर न्याय भी मिलेगा। यह संहिता भारत को एक न्यायोचित, उत्तरदायी और डिजिटल-समर्थ न्याय व्यवस्था की ओर अग्रसर करती है।