“तलाकशुदा पत्नी को बढ़ा हुआ स्थायी भरण-पोषण और संपत्ति अधिकार – सुप्रीम कोर्ट ने कहा: वैवाहिक स्तर के अनुरूप जीवन सुनिश्चित किया जाए” (Supreme Court in Rakhi Sadhukhan v. Raja Sadhukhan, 2025)

लेख शीर्षक:
“तलाकशुदा पत्नी को बढ़ा हुआ स्थायी भरण-पोषण और संपत्ति अधिकार – सुप्रीम कोर्ट ने कहा: वैवाहिक स्तर के अनुरूप जीवन सुनिश्चित किया जाए”
(Supreme Court in Rakhi Sadhukhan v. Raja Sadhukhan, 2025)


भूमिका:

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि तलाकशुदा पत्नी को ऐसा भरण-पोषण (Alimony) मिलना चाहिए जो उसके वैवाहिक जीवन के स्तर को प्रतिबिंबित करे। यह निर्णय पति की आय, पत्नी की निर्भरता और भविष्य की वित्तीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दिया गया है।

प्रकरण: Rakhi Sadhukhan v. Raja Sadhukhan

  • विवाह: 1997
  • अलगाव: 2008
  • संतान: एक पुत्र (1998 में जन्म)
  • तलाक: उच्च न्यायालय द्वारा प्रदान किया गया

मूल निर्णय और विवाद:

  • उच्च न्यायालय ने स्थायी भरण-पोषण के रूप में ₹20,000 प्रतिमाह, प्रत्येक तीन वर्षों में 5% की वृद्धि के साथ, मंजूर किया था।
  • पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह तर्क दिया कि पति की मासिक आय ₹1.64 लाख है और उसे अधिक भरण-पोषण की आवश्यकता है क्योंकि वह पूर्ण रूप से उसी पर आश्रित है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

  1. भरण-पोषण में वृद्धि:
    • सुप्रीम कोर्ट ने भरण-पोषण को ₹50,000 प्रति माह कर दिया।
    • साथ ही, हर दो वर्षों में 5% की वृद्धि भी निर्धारित की गई।
  2. जीवन स्तर की निरंतरता:
    • अदालत ने यह रेखांकित किया कि पत्नी को ऐसा जीवन जीने का अधिकार है जो उसके वैवाहिक जीवन के स्तर के अनुरूप हो
    • भले ही दोनों पक्ष तलाकशुदा हों, वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना अदालत की जिम्मेदारी है।
  3. पति की वित्तीय क्षमता:
    • पति की आय ₹1.64 लाख प्रतिमाह होने के बावजूद वह पत्नी को कम भरण-पोषण दे रहा था।
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति की दूसरी पत्नी और परिवार की जिम्मेदारियाँ भरण-पोषण कम करने का पर्याप्त आधार नहीं बनतीं।
  4. संपत्ति अधिकार और आत्मनिर्भरता:
    • अदालत ने यह भी माना कि पत्नी की स्वतंत्र आय या संपत्ति नहीं है और वह पति की आय पर निर्भर है।
    • इसलिए, उसे भरण-पोषण में वृद्धि का पूरा अधिकार है।
  5. बच्चे की स्थिति:
    • चूंकि बेटा वयस्क हो चुका है, अतः उसे अनिवार्य भरण-पोषण का अधिकार नहीं है, हालांकि यदि पिता चाहे तो उसे स्वेच्छा से सहायता दे सकता है।

महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत (Legal Principles Reaffirmed):

  • S. 27 of Special Marriage Act: विवाह के विघटन के समय संपत्ति और भरण-पोषण का अधिकार।
  • S. 125 CrPC: भरण-पोषण के लिए पत्नी का अधिकार जब वह आत्मनिर्भर नहीं है।
  • भरण-पोषण निर्धारित करते समय पति की आय, मुद्रास्फीति (inflation), और पत्नी की पूर्ण निर्भरता को प्रमुखता दी जानी चाहिए।
  • भरण-पोषण केवल निर्वाह मात्र नहीं बल्कि सम्मानजनक जीवन यापन के लिए होना चाहिए।

निष्कर्ष:

यह निर्णय तलाकशुदा महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण न्यायिक मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण केवल “अस्तित्व” के लिए नहीं, बल्कि पत्नी के वैवाहिक गरिमा के अनुरूप जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए है।

➡️ इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि न्यायालय भरण-पोषण के मामलों में अब और अधिक व्यावहारिक, संवेदनशील और निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने को प्राथमिकता दे रहा है।