तमिलनाडु सरकार का सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका: 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्यता पर कानूनी और शैक्षिक विश्लेषण
प्रस्तावना
तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की है, जिसमें 1 सितंबर 2025 के आदेश को चुनौती दी गई है। उक्त आदेश के तहत सभी कार्यरत शिक्षकों के लिए टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (Teacher Eligibility Test – TET) पास करना अनिवार्य कर दिया गया था, चाहे उनकी नियुक्ति 2010 से पूर्व हुई हो या बाद में। यह याचिका केवल कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि शैक्षिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश, तमिलनाडु सरकार की याचिका, कानूनी विश्लेषण, शिक्षक समुदाय की प्रतिक्रिया, अन्य राज्यों की स्थिति और संभावित समाधान का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
1. सुप्रीम कोर्ट का 1 सितंबर 2025 का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर 2025 को एक ऐतिहासिक आदेश पारित किया, जिसके अनुसार सभी कार्यरत शिक्षकों को टीईटी पास करने की अनिवार्यता दी गई। आदेश में यह स्पष्ट किया गया कि यदि किसी शिक्षक की सेवा में पाँच वर्ष या उससे अधिक का समय शेष है, तो उसे आगामी दो वर्षों के भीतर टीईटी उत्तीर्ण करना होगा।
यह आदेश ‘द राइट ऑफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कम्पल्सरी एजुकेशन एक्ट, 2009’ (Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009 – RTE Act) की धारा 23 के आधार पर पारित किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से शिक्षकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने का उद्देश्य रखा।
हालांकि, इस आदेश ने तमिलनाडु जैसे राज्यों में कार्यरत हजारों शिक्षकों के लिए चिंता और अनिश्चितता पैदा कर दी है, क्योंकि इनमें से अधिकांश शिक्षक 2010 से पूर्व नियुक्त हुए थे।
2. तमिलनाडु सरकार की पुनर्विचार याचिका
तमिलनाडु सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। सरकार का मुख्य तर्क यह है कि टीईटी की अनिवार्यता केवल उन शिक्षकों पर लागू होनी चाहिए, जिनकी नियुक्ति 1 अप्रैल 2010 के बाद हुई, जब RTE एक्ट लागू हुआ।
सरकार का यह भी कहना है कि 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर टीईटी अनिवार्यता लागू करना अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। तमिलनाडु सरकार ने यह तर्क भी प्रस्तुत किया है कि मौजूदा शिक्षकों ने वर्षों तक बिना टीईटी के सेवा दी है और उनके अनुभव और योग्यता को नजरअंदाज करना अनुचित होगा।
3. कानूनी दृष्टिकोण: RTE एक्ट की धारा 23 का विश्लेषण
RTE एक्ट की धारा 23 में शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता और प्रशिक्षिण संबंधी प्रावधान दिए गए हैं।
- धारा 23(1): भविष्य में नियुक्त होने वाले शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता का निर्धारण।
- धारा 23(2): यदि शिक्षकों की संख्या में कमी हो, तो केंद्रीय सरकार पांच वर्षों तक न्यूनतम योग्यता में छूट देने का प्रावधान रख सकती है।
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि यह छूट केवल 2010 के बाद नियुक्त शिक्षकों पर लागू होनी चाहिए थी, न कि 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर। सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसे सभी पर लागू कर रहा है, जो संवैधानिक दृष्टिकोण से विवादित है।
अनुच्छेद 14 के अनुसार समान परिस्थितियों में समानता सुनिश्चित करनी चाहिए, जबकि अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी व्यक्ति के जीवन और आजीविका को अनुचित रूप से प्रभावित नहीं किया जा सकता। ऐसे में 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर टीईटी अनिवार्यता लागू करना संवैधानिक विवाद का विषय बन सकता है।
4. शैक्षिक और सामाजिक प्रभाव
तमिलनाडु में लगभग 4,49,850 सरकारी शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें से लगभग 3,90,458 टीईटी योग्य नहीं हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू होता है, तो इन शिक्षकों को सेवा से बाहर किया जा सकता है।
शैक्षिक दृष्टिकोण से यह निर्णय निम्नलिखित समस्याएं उत्पन्न कर सकता है:
- शिक्षकों की कमी: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षकों की संख्या पहले से कम है। आदेश लागू होने पर शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
- छात्रों का नुकसान: अनुभवी शिक्षकों के बाहर होने से बच्चों की गुणवत्ता शिक्षा प्रभावित होगी।
- सामाजिक असंतोष: शिक्षकों के परिवार और समुदायों में असंतोष और तनाव बढ़ सकता है।
शिक्षक समुदाय और अभिभावक संगठनों के लिए यह निर्णय संवेदनशील विषय बन गया है।
5. शिक्षक समुदाय की प्रतिक्रिया
शिक्षक संघों ने आदेश के खिलाफ व्यापक विरोध शुरू किया है। उनके मुख्य तर्क निम्नलिखित हैं:
- यह आदेश उनके वर्षों के सेवा अनुभव और योग्यता को नजरअंदाज करता है।
- टीईटी अनिवार्यता लागू होने पर उनके करियर को खतरा है।
- सरकार से मांग की जा रही है कि वे विशेष अध्यादेश या कानून बनाकर शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा करें।
संघों ने आंदोलन और विरोध प्रदर्शन के माध्यम से इसे राज्य और केंद्र सरकार के समक्ष प्रमुख मुद्दा बनाया है।
6. अन्य राज्यों की स्थिति
तमिलनाडु के अलावा, मेघालय और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया है।
इन राज्यों में भी बड़ी संख्या में शिक्षक कार्यरत हैं, जिनकी नियुक्ति 2010 से पूर्व हुई थी। सरकारें और शिक्षक संघ इस आदेश के दुष्परिणामों को देखते हुए सक्रिय कदम उठा रहे हैं।
7. संभावित समाधान और सुझाव
तमिलनाडु सरकार ने कुछ व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत किए हैं:
- भविष्य के शिक्षकों पर ही टीईटी लागू करना: 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों को छूट दी जाए।
- वैकल्पिक प्रशिक्षण कार्यक्रम: मौजूदा शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम और योग्यता सुधार योजनाएँ लागू की जाएं।
- विशेष अध्यादेश या कानून: ताकि शिक्षकों के अधिकार और करियर सुरक्षित रह सकें।
- अनुभव आधारित मूल्यांकन: टीईटी के अतिरिक्त अनुभव और कार्यकुशलता को मान्यता दी जाए।
इन उपायों से शिक्षा व्यवस्था में अस्थिरता कम होगी और शिक्षकों का मनोबल भी बना रहेगा।
8. निष्कर्ष
तमिलनाडु सरकार की सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है। टीईटी की अनिवार्यता का उद्देश्य शिक्षक गुणवत्ता सुनिश्चित करना है, लेकिन इसे लागू करते समय 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों के योगदान, अनुभव और अधिकारों को नजरअंदाज करना उचित नहीं होगा।
इस विवाद का समाधान संतुलित और न्यायपूर्ण होना चाहिए, जिसमें बच्चों की शिक्षा, शिक्षकों के अधिकार और राज्य की शैक्षिक जरूरतों का समान ध्यान रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट से अपेक्षा की जाती है कि वह इस मामले में व्यापक दृष्टिकोण अपनाए और सभी पक्षों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करे।
संभावना है कि अदालत टीईटी की अनिवार्यता को केवल भविष्य में नियुक्त शिक्षकों पर लागू करे, मौजूदा शिक्षकों के लिए वैकल्पिक प्रशिक्षण और अनुभव आधारित मूल्यांकन का प्रावधान करे। इस तरह निर्णय सभी पक्षों के हितों और शिक्षा प्रणाली की स्थिरता को बनाए रखेगा।