लेख शीर्षक:
“ड्राइविंग लाइसेंस की समाप्ति: तकनीकी चूक मात्र से बीमा दायित्व पर प्रभाव नहीं – दिल्ली उच्च न्यायालय का नवीनतम निर्णय”
भूमिका:
बीमा विवादों में “ड्राइविंग लाइसेंस की वैधता” एक संवेदनशील और बार-बार उठने वाला प्रश्न रहा है। कई बार बीमा कंपनियाँ केवल इस आधार पर मुआवज़ा देने से इनकार कर देती हैं कि दुर्घटना के समय ड्राइवर का लाइसेंस समाप्त हो चुका था। परंतु दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2025 में The New India Assurance Company Ltd. v. Karu Yadav etc. [CM Appl. 72141/2024] के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि केवल तकनीकी रूप से ड्राइविंग लाइसेंस के समाप्त हो जाने से बीमा कंपनी स्वतः दायित्व से मुक्त नहीं हो सकती।
मामले का संक्षिप्त विवरण:
बीमा कंपनी ने यह तर्क दिया कि चूंकि वाहन चालक का ड्राइविंग लाइसेंस दुर्घटना के समय वैध नहीं था (लाइसेंस की वैधता समाप्त हो चुकी थी), अतः बीमा कंपनी पर मुआवज़ा देने का कोई दायित्व नहीं बनता। इसके विपरीत, उत्तरदाताओं (यानी क्षतिग्रस्त पक्ष) ने दावा किया कि यह महज़ एक तकनीकी चूक थी, और ड्राइवर सक्षम तथा प्रशिक्षित था।
अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- तकनीकी चूक मात्र से दायित्व से मुक्ति नहीं:
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर दुर्घटना के कारण और ड्राइविंग लाइसेंस की समाप्ति के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, तो केवल समाप्त लाइसेंस के आधार पर बीमा कंपनी दायित्व से नहीं बच सकती। - दुर्घटना का कारण बनना ज़रूरी:
यदि बीमा कंपनी यह सिद्ध नहीं कर पाती कि ड्राइविंग लाइसेंस का वैध न होना ही दुर्घटना का कारण बना, तो उस स्थिति में बीमा कंपनी को मुआवज़ा देने से छूट नहीं मिल सकती। - प्रशिक्षण और दक्षता पर बल:
यदि यह प्रमाणित हो जाए कि चालक योग्य और प्रशिक्षित था, तो लाइसेंस की तकनीकी वैधता की समाप्ति के बावजूद भी बीमा दायित्व बना रहता है।
पूर्ववर्ती न्यायिक दृष्टांतों का उल्लेख:
अदालत ने National Insurance Co. Ltd. v. Swaran Singh (2004) और Pepsu Road Transport Corporation v. National Insurance Co. Ltd. जैसे मामलों का उल्लेख किया, जिनमें यह स्थापित किया गया कि “मूल रूप से सक्षम चालक द्वारा ड्राइविंग की स्थिति में तकनीकी उल्लंघन मात्र” बीमा कंपनी को दायित्व से मुक्त नहीं करता।
न्यायालय का निर्णय:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि:
“मात्र इस आधार पर कि ड्राइविंग लाइसेंस की अवधि समाप्त हो चुकी थी, और यदि दुर्घटना का इससे कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, तो बीमा कंपनी को दायित्व से पूर्ण रूप से मुक्त नहीं किया जा सकता।”
निष्कर्ष:
यह निर्णय बीमा कानून की व्यावहारिक व्याख्या का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह स्पष्ट करता है कि न्याय केवल तकनीकी आधारों पर नहीं, बल्कि तथ्यों की वास्तविकता और न्याय के मूल सिद्धांतों के आधार पर किया जाना चाहिए। बीमा कंपनियों को इस प्रकार के मामलों में सावधानीपूर्वक तथ्यों की समीक्षा करनी चाहिए, और पीड़ित पक्षों को अनुचित रूप से मुआवज़ा देने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।