डोपिंग नियंत्रण और भारतीय खेलों में निष्पक्षता की चुनौती (Doping Control and the Challenge of Fair Play in Indian Sports)
🔶 प्रस्तावना
खेलों का मूल उद्देश्य शारीरिक फिटनेस, मानसिक संतुलन और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना है। किंतु जब खेलों में धोखाधड़ी, विशेषकर डोपिंग (Doping) जैसी अमैथुन प्रवृत्तियाँ प्रवेश करती हैं, तो यह न केवल प्रतियोगिता की निष्पक्षता को प्रभावित करती हैं, बल्कि खिलाड़ी की सेहत, नैतिकता, और देश की साख को भी नुकसान पहुँचाती हैं। भारत में हाल के वर्षों में डोपिंग मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिससे यह आवश्यक हो गया है कि डोपिंग नियंत्रण के लिए ठोस कानूनी एवं संस्थागत व्यवस्था की जाए।
🔶 डोपिंग क्या है?
डोपिंग का आशय ऐसे प्रतिबंधित रसायनों या तकनीकों के प्रयोग से है जो खिलाड़ी के प्रदर्शन को कृत्रिम रूप से बढ़ाते हैं। यह कार्य अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार निषिद्ध (Prohibited) है और इसका उल्लंघन खेल नैतिकता और नियमों का उल्लंघन माना जाता है।
WADA (World Anti-Doping Agency) के अनुसार डोपिंग के तीन मुख्य तत्व होते हैं:
- प्रतिबंधित पदार्थों का प्रयोग
- ऐसे पदार्थों का खिलाड़ी के शरीर में पाया जाना
- जांच से बचने के लिए धोखाधड़ी या मैनिपुलेशन करना
🔶 भारत में डोपिंग का परिदृश्य
भारत विश्व में डोपिंग के मामलों में शीर्ष देशों में आता है। नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (NADA) की रिपोर्टों के अनुसार हर साल सैकड़ों खिलाड़ी डोपिंग टेस्ट में फेल होते हैं, जिनमें एथलेटिक्स, कुश्ती, भारोत्तोलन, और बॉडीबिल्डिंग जैसे खेल प्रमुख हैं।
प्रमुख कारणः
- कोचिंग संस्थानों में सही मार्गदर्शन का अभाव
- दवाओं की जानकारी की कमी
- परिणाम की तीव्रता पाने की मानसिकता
- दवाओं और सप्लीमेंट्स के दुरुपयोग की संस्कृति
🔶 डोपिंग नियंत्रण हेतु संस्थागत ढांचा
⚫ WADA (World Anti-Doping Agency)
1999 में स्थापित यह एजेंसी डोपिंग नियंत्रण की वैश्विक संस्था है। यह प्रतिबंधित दवाओं की सूची, जांच मानदंड, और वैश्विक संहिताएं तय करती है।
⚫ NADA (National Anti-Doping Agency)
भारत सरकार द्वारा 2005 में स्थापित, यह संस्था भारत में डोपिंग नियंत्रण, जांच, शिक्षा और अनुशासनात्मक कार्यवाही हेतु उत्तरदायी है।
- NADA ने WADA कोड को स्वीकार किया है
- देशभर में टेस्टिंग लैब्स, जागरूकता अभियान, और डोपिंग विरोधी नीति का क्रियान्वयन करती है
🔶 राष्ट्रीय डोपिंग रोधी अधिनियम, 2022
भारत सरकार ने 2022 में The National Anti-Doping Act, 2022 लागू किया, जिसका उद्देश्य था:
- NADA को विधिक दर्जा देना
- डोपिंग के मामलों में दंडात्मक और अनुशासनात्मक प्रावधान लागू करना
- एंटी-डोपिंग अपीलीय पैनल और परीक्षण प्रयोगशालाओं को मान्यता देना
- खिलाड़ियों के अधिकारों और संरक्षण को सुनिश्चित करना
यह अधिनियम खिलाड़ियों को कानूनी सहायता का अवसर भी देता है और अनुचित दंड से सुरक्षा भी प्रदान करता है।
🔶 भारतीय खिलाड़ियों के लिए निष्पक्षता की चुनौती
⚫ समान अवसर का अभाव:
जब कुछ खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाओं का प्रयोग करते हैं, तो स्वच्छ और नैतिक खिलाड़ी पीछे रह जाते हैं।
⚫ नैतिक मूल्यों का ह्रास:
डोपिंग न केवल प्रतियोगिता को प्रभावित करता है, बल्कि युवा खिलाड़ियों के आदर्श भी दूषित करता है।
⚫ देश की प्रतिष्ठा पर प्रभाव:
अंतरराष्ट्रीय मंच पर डोपिंग के मामले देश की छवि को धूमिल करते हैं। राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के डोपिंग प्रकरणों ने चिंता बढ़ाई है।
🔶 न्यायिक दृष्टिकोण और विवाद निवारण
- NADA द्वारा गठित अनुशासनात्मक पैनल खिलाड़ियों के विरुद्ध डोपिंग आरोपों की सुनवाई करता है।
- अंतरराष्ट्रीय मामलों में CAS (Court of Arbitration for Sport) अंतिम निर्णय देता है।
- खिलाड़ी के पास जांच के नमूने (A और B सैंपल) की पुनः जांच का अधिकार होता है।
🔶 समाधान और सुझाव
- खिलाड़ियों में जागरूकता बढ़ाना – विद्यालय और अकादमियों में प्रशिक्षण
- सख्त निगरानी प्रणाली – प्रशिक्षण शिविरों और प्रतियोगिताओं में रैंडम टेस्टिंग
- वैज्ञानिक परीक्षण लैब्स का विकास – WADA द्वारा मान्यता प्राप्त भारत की टेस्टिंग प्रयोगशालाओं का विस्तार
- कोच और ट्रेनर्स की जवाबदेही तय करना – उन्हें भी कानून के अंतर्गत लाया जाए
- डोप-मुक्त प्रमाणन अभियान – “Clean Sports” जैसी मुहिम चलाकर नैतिक खेल को प्रोत्साहन देना
🔶 निष्कर्ष
डोपिंग के बढ़ते खतरे ने भारतीय खेलों में निष्पक्षता को एक गहन चुनौती बना दिया है। डोपिंग नियंत्रण केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह नैतिक, स्वास्थ्य और सामाजिक जिम्मेदारी का विषय भी है। इसके लिए सरकार, खेल संगठन, कोच, प्रशिक्षक और स्वयं खिलाड़ी—सभी को मिलकर एक डोप-मुक्त, स्वच्छ और ईमानदार खेल संस्कृति को अपनाना होगा।