डेटा जासूसी और डिजिटल गोपनीयता सुरक्षा: तकनीकी युग में नागरिक अधिकारों की कानूनी रक्षा

शीर्षक: डेटा जासूसी और डिजिटल गोपनीयता सुरक्षा: तकनीकी युग में नागरिक अधिकारों की कानूनी रक्षा


🔷 भूमिका:
21वीं सदी में मनुष्य का व्यक्तिगत जीवन तेजी से डिजिटल होता जा रहा है। सोशल मीडिया, मोबाइल एप्स, ऑनलाइन लेन-देन और सरकारी डिजिटल सेवाओं के प्रसार के साथ नागरिकों की डिजिटल गोपनीयता (Digital Privacy) पर खतरे भी बढ़े हैं। इसके समानांतर, डेटा जासूसी (Data Surveillance / Snooping) जैसे कृत्य—जहां सरकारी या निजी संस्थाएँ नागरिकों की जानकारी को उनकी जानकारी या सहमति के बिना ट्रैक करती हैं—नागरिक स्वतंत्रता के लिए गंभीर चुनौती बन चुके हैं। भारत में इस क्षेत्र में कानूनी ढांचा अभी विकासशील है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता को मौलिक अधिकार घोषित कर दिया है।


🔷 1. डेटा जासूसी क्या है?
डेटा जासूसी वह प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति, समूह या संस्था की डिजिटल गतिविधियों की निगरानी की जाती है—जैसे कि कॉल रिकॉर्ड, ईमेल, लोकेशन, सोशल मीडिया या ब्राउज़िंग हिस्ट्री—बिना उसकी स्पष्ट सहमति के।
उदाहरण:

  • मोबाइल फोन की निगरानी
  • पेगासस जैसे स्पाइवेयर के माध्यम से डिवाइस हैक करना
  • इंटरनेट सेवा प्रदाताओं द्वारा वेब ट्रैकिंग
  • कैमरा या माइक्रोफोन के ज़रिए निगरानी

🔷 2. डिजिटल गोपनीयता क्या है?
डिजिटल गोपनीयता व्यक्ति के उस अधिकार को दर्शाती है जिसमें उसकी ऑनलाइन जानकारी, पहचान, संप्रेषण और गतिविधियाँ गोपनीय, सुरक्षित, और उसकी अनुमति के अनुसार रहती हैं।

डिजिटल गोपनीयता में शामिल हैं:

  • व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा
  • वित्तीय जानकारी की गोपनीयता
  • संवाद (चैट/कॉल) की निजता
  • डिजिटल पहचान जैसे आधार, मोबाइल, IP, आदि

🔷 3. भारत में कानूनी ढांचा:

(क) सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act):

  • धारा 43A – यदि कोई कंपनी डेटा की सुरक्षा में विफल रहती है तो उसे मुआवजा देना पड़ सकता है।
  • धारा 72 – किसी भी व्यक्ति द्वारा अनधिकृत रूप से जानकारी उजागर करना दंडनीय अपराध है।
  • IT Rules 2021 (Intermediary Guidelines) – सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों की जिम्मेदारी तय करता है।

(ख) भारतीय दंड संहिता (IPC):

  • गोपनीय जानकारी को गलत तरीके से पाने या फैलाने पर धोखाधड़ी, जालसाजी या आपराधिक विश्वासघात के तहत कार्रवाई हो सकती है।

(ग) निजता पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Puttaswamy Case, 2017):

  • सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार घोषित किया।
  • किसी भी निगरानी या डेटा संग्रहण को कानूनी, आवश्यक और आनुपातिक (proportionate) होना आवश्यक बताया गया।

(घ) डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (DPDP Act):

  • भारत का पहला व्यापक डाटा सुरक्षा कानून, जो व्यक्तिगत डेटा की सहमति-आधारित प्रोसेसिंग को अनिवार्य बनाता है।
  • डेटा फिडूशियरी, डाटा प्रिंसिपल, सेंसिटिव डेटा, अभिगम अधिकार, आदि की अवधारणाओं को परिभाषित करता है।

🔷 4. निगरानी के वैध और अवैध माध्यम:

निगरानी का प्रकार वैध अवैध
कोर्ट या सरकार की मंजूरी से टेलीफोन टैपिंग ✔️
स्पाइवेयर या हैकिंग टूल्स से अनधिकृत निगरानी ✔️
कानून व्यवस्था बनाए रखने हेतु सीमित जासूसी ✔️
पत्रकारों, एक्टिविस्टों या विपक्षियों पर राजनीतिक निगरानी ✔️

🔷 5. पेगासस विवाद और डेटा जासूसी पर बहस:
2021 में “पेगासस” स्पाइवेयर के जरिए भारत में पत्रकारों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के फोन की निगरानी की खबरें सामने आईं। इससे डेटा जासूसी और डिजिटल गोपनीयता को लेकर भारी विवाद हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी न्यायिक जांच करवाई और कहा कि “निगरानी का अधिकार असीमित नहीं हो सकता”।


🔷 6. डिजिटल युग की चुनौतियाँ:

  • डेटा संग्रह और निगरानी का नियमन न होना
  • तकनीकी जानकारी की कमी के कारण नागरिकों को खतरे की पहचान नहीं होती
  • सरकारी एजेंसियों की पारदर्शिता का अभाव
  • बड़े कॉर्पोरेट द्वारा डेटा का वाणिज्यिक शोषण

🔷 7. सुधार के सुझाव:

  • डिजिटल निगरानी के लिए न्यायिक स्वीकृति अनिवार्य हो
  • डेटा सुरक्षा प्राधिकरण (DPA) की स्थापना
  • डिजिटल साक्षरता को स्कूली शिक्षा में शामिल किया जाए
  • सोशल मीडिया कंपनियों पर कानूनी जिम्मेदारी तय की जाए
  • ह्विसलब्लोअर और डिजिटल पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए

🔷 निष्कर्ष:
डिजिटल दुनिया में नागरिकों की गोपनीयता और स्वतंत्रता की रक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी भौतिक दुनिया में। डेटा जासूसी और अनधिकृत निगरानी, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की आत्मा पर प्रहार हैं। भारत ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जैसे DPDP अधिनियम, लेकिन जब तक मजबूत कार्यान्वयन, जवाबदेही, और जन-जागरूकता नहीं होगी, तब तक डिजिटल गोपनीयता केवल कानूनी शब्दों तक सीमित रह जाएगी।