“डी फार्मा काउंसिलिंग प्रक्रिया असंवैधानिक घोषित: हाईकोर्ट ने पांच कॉलेजों की याचिकाओं पर सुनाया बड़ा फैसला”
भूमिका:
शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और समान अवसर सुनिश्चित करना संवैधानिक व्यवस्था का आधार है। इसी सिद्धांत का पालन करते हुए हाल ही में एक हाईकोर्ट ने डिप्लोमा इन फार्मेसी (D. Pharma) कोर्स में पूरा काउंसिलिंग प्रोसेस रद्द कर दिया। यह फैसला उन पांच फार्मेसी कॉलेजों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर सुनाया गया, जिन्होंने चयन प्रक्रिया में अनियमितताओं और मनमाने नियमों का आरोप लगाया था।
यह निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ (Lucknow Bench of Allahabad High Court) द्वारा सुनाया गया है।
🔹 पूर्ण विवरण:
📍 हाईकोर्ट का नाम: इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court)
🏛 खंडपीठ: लखनऊ खंडपीठ (Lucknow Bench)
👨⚖️ न्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया (Justice Pankaj Bhatia)
Pvt. College of Pharmacy, Mau & Others vs State of U.P. & Others
मामले की पृष्ठभूमि:
वर्ष 2024-25 के लिए D. Pharma कोर्स में प्रवेश हेतु राज्य स्तरीय काउंसिलिंग प्रक्रिया एक प्राइवेट एजेंसी और सरकारी समिति की देखरेख में आयोजित की गई थी। लेकिन कई कॉलेजों को न तो काउंसिलिंग में शामिल होने का पूरा मौका दिया गया, न ही उनकी मान्यता/संस्थागत स्थिति को ठीक से प्रदर्शित किया गया।
पांच निजी संस्थानों ने आरोप लगाया कि:
- काउंसिलिंग में पारदर्शिता का अभाव था।
- कुछ कॉलेजों को अनावश्यक तकनीकी कारणों से बाहर कर दिया गया।
- छात्रों को जानबूझकर सरकारी या कुछ चुनिंदा निजी संस्थानों में प्रवेश दिलवाने की कोशिश की गई।
- पूरे पोर्टल और प्रक्रिया में तकनीकी खामियां थीं, जिन्हें नजरअंदाज किया गया।
हाईकोर्ट की सुनवाई:
याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने माना कि:
- काउंसिलिंग प्रक्रिया भेदभावपूर्ण और एकतरफा नियमों के आधार पर चलाई गई।
- छात्रों और संस्थानों, दोनों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
- शिक्षा का अधिकार केवल नामांकन की संख्या से नहीं, बल्कि समान अवसर और निष्पक्ष चयन प्रणाली से तय होता है।
कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ:
“शिक्षा क्षेत्र में किसी भी चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्यायसंगत अवसर अनिवार्य हैं। यदि काउंसिलिंग प्रक्रिया मनमानी और पूर्वाग्रहपूर्ण हो, तो वह पूरी प्रक्रिया अवैध और अमान्य हो जाती है।”
“यह केवल संस्थाओं के अधिकार की बात नहीं है, बल्कि छात्रों के भविष्य से भी जुड़ा प्रश्न है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।”
कोर्ट का आदेश:
- पूरी काउंसिलिंग प्रक्रिया को रद्द किया गया।
- राज्य सरकार और संबंधित एजेंसी को निर्देश दिया गया कि वे नए सिरे से निष्पक्ष काउंसिलिंग आयोजित करें, जिसमें सभी मान्यता प्राप्त संस्थाओं को समान अवसर दिया जाए।
- काउंसिलिंग पोर्टल और तकनीकी प्रक्रिया को पुनः डिज़ाइन करने और समीक्षा करने के निर्देश भी दिए गए।
न्यायिक विश्लेषण और प्रभाव:
यह निर्णय न केवल फार्मेसी शिक्षा संस्थानों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह भारत के समस्त पेशेवर कोर्सों की काउंसिलिंग प्रक्रिया के लिए एक मिसाल बन सकता है।
प्रभाव:
- छात्रों को नए सिरे से आवेदन का अवसर मिलेगा।
- कॉलेजों को मान्यता के अनुसार प्रतिनिधित्व मिलेगा।
- भविष्य में शिक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी।
- सरकार और तकनीकी एजेंसियों की जवाबदेही तय होगी।
निष्कर्ष:
हाईकोर्ट का यह फैसला एक स्पष्ट संदेश देता है कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में किसी भी प्रकार की अनियमितता, पक्षपात या तकनीकी लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
छात्रों के भविष्य और संस्थानों के अधिकारों की रक्षा करना न्यायपालिका की प्राथमिकता है, और यह निर्णय उसी उद्देश्य की पूर्ति करता है।