“डीएनए डेटा प्राइवेसी और बायोमेट्रिक सुरक्षा: व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम निगरानी यंत्रणा”
🔍 प्रस्तावना
21वीं सदी की सबसे संवेदनशील और मूल्यवान सूचनाओं में डीएनए डेटा और बायोमेट्रिक पहचान प्रमुख हैं। यह डेटा न केवल व्यक्ति की पहचान का दर्पण है, बल्कि उसकी वंशानुगत जानकारी, स्वास्थ्य प्रवृत्तियाँ, और आपराधिक प्रवृत्तियों तक का आकलन करने में सक्षम है। परंतु, इसी डेटा का गलत प्रयोग या दुरुपयोग किसी भी नागरिक की निजता, स्वतंत्रता और गरिमा को सीधे प्रभावित कर सकता है।
यह लेख डीएनए डेटा प्राइवेसी और बायोमेट्रिक सुरक्षा से जुड़े कानूनी, तकनीकी, और नैतिक पहलुओं की गहराई से समीक्षा करता है।
🧬 1. डीएनए और बायोमेट्रिक डेटा क्या है?
- डीएनए डेटा – किसी व्यक्ति का आनुवंशिक ब्लूप्रिंट, जिसमें उसके पूर्वज, स्वास्थ्य जोखिम, जैविक लक्षण आदि की जानकारी होती है।
- बायोमेट्रिक डेटा – व्यक्ति की शारीरिक या व्यवहारगत पहचान, जैसे फिंगरप्रिंट, रेटिना स्कैन, चेहरे की पहचान, आवाज़ का पैटर्न आदि।
दोनों प्रकार के डेटा को आधुनिक निगरानी, स्वास्थ्य सेवाओं, पुलिस जांच, और नागरिक पहचान प्रणालियों में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
⚖️ 2. भारत में डीएनए और बायोमेट्रिक डेटा का विधिक ढांचा
✅ 1. आधार अधिनियम, 2016
- UIDAI के माध्यम से बायोमेट्रिक डेटा का संग्रह।
- सुप्रीम कोर्ट (Puttaswamy केस, 2017) ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया, और आधार डेटा उपयोग पर सीमाएँ तय कीं।
✅ 2. डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019
- पुलिस, न्यायालयों, और सरकारी एजेंसियों को डीएनए प्रोफाइलिंग की अनुमति देने हेतु प्रस्तावित।
- आलोचना – पर्याप्त गोपनीयता सुरक्षा की कमी, अनियंत्रित पहुंच की संभावना।
✅ 3. डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023
- आनुवंशिक और बायोमेट्रिक डेटा को “संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा” की श्रेणी में रखता है।
- संग्रहीत डेटा के लिए स्पष्ट सहमति, उपयोग की पारदर्शिता और डेटा प्रबंधकों की जवाबदेही तय करता है।
🚨 3. प्रमुख खतरे और गोपनीयता उल्लंघन
खतरा | विवरण |
---|---|
अनुचित निगरानी | सरकार या निजी कंपनियाँ डीएनए/बायोमेट्रिक डेटा का प्रयोग व्यक्ति पर नजर रखने हेतु कर सकती हैं। |
डेटा लीक | यदि डीएनए या बायोमेट्रिक डेटा चोरी होता है, तो व्यक्ति का जीवनभर की पहचान खतरे में पड़ सकती है। |
बायो-भेदभाव | बीमा कंपनियाँ या नियोक्ता आनुवंशिक जोखिम के आधार पर भेदभाव कर सकते हैं। |
पारिवारिक गोपनीयता पर खतरा | डीएनए डेटा एक व्यक्ति का नहीं, पूरे वंश का प्रतिनिधित्व करता है। |
🌍 4. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
- GDPR (यूरोप) – बायोमेट्रिक और आनुवंशिक डेटा को “Sensitive Personal Data” की श्रेणी में रखता है।
- USA – GINA (Genetic Information Nondiscrimination Act) – आनुवंशिक आधार पर भेदभाव को रोकता है।
- Interpol & UN Guidelines – फॉरेंसिक डेटा के सीमित और नियंत्रित प्रयोग की वकालत।
🛡️ 5. बायोमेट्रिक सुरक्षा के कानूनी और तकनीकी उपाय
- एन्क्रिप्शन तकनीक – डेटा संग्रहण और ट्रांसफर के समय पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करें।
- सीमित पहुंच (Access Control) – केवल अधिकृत अधिकारी ही डेटा तक पहुंच सकें।
- डाटा उपयोग की पारदर्शिता – नागरिक को यह जानने का अधिकार कि उसका डेटा कहां और कैसे उपयोग हो रहा है।
- डेटा मिटाने का अधिकार (Right to be Forgotten) – व्यक्ति अपने डेटा को हटवाने की मांग कर सके।
- सहमति आधारित संग्रह – बिना स्वैच्छिक सहमति, कोई बायोमेट्रिक/डीएनए डेटा न लिया जाए।
📚 6. नीति और कानून संबंधी सुझाव
- एक स्वतंत्र डीएनए व बायोमेट्रिक डेटा नियामक प्राधिकरण की स्थापना।
- डेटा संग्रह की समयसीमा – असंबंधित मामलों में डेटा संग्रह को जल्द नष्ट करने का प्रावधान।
- सामूहिक निगरानी पर प्रतिबंध, जिससे लोकतांत्रिक अधिकार सुरक्षित रहें।
- नागरिक शिक्षा अभियान, जिससे लोग अपनी डिजिटल पहचान और जैविक गोपनीयता के प्रति सजग बनें।
✅ निष्कर्ष
डीएनए और बायोमेट्रिक डेटा, व्यक्तिगत पहचान का सबसे निजी रूप है। यदि इसे उचित सुरक्षा और कानूनी नियंत्रण के बिना रखा गया, तो यह निजता के उल्लंघन, सत्तावादी निगरानी, और मानवाधिकारों के क्षरण का कारण बन सकता है। भारत को चाहिए कि वह इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय विकास और मानव गरिमा के संतुलन को बनाए रखते हुए, एक सशक्त, पारदर्शी और उत्तरदायी कानूनी ढांचा तैयार करे।