डिजिटल साक्ष्य का न्यायालय में प्रस्तुतिकरण और इसकी वैधानिक स्वीकृति — भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के अंतर्गत विस्तृत विश्लेषण
प्रस्तावना:
तकनीकी युग में न्यायिक प्रणाली में डिजिटल साक्ष्य (Digital Evidence) का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। ईमेल, व्हाट्सएप चैट, सीसीटीवी फुटेज, सोशल मीडिया पोस्ट, सर्वर लॉग, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड आज अपराधों, दीवानी विवादों और प्रशासनिक मामलों में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। न्यायालय अब केवल पारंपरिक दस्तावेज़ों पर निर्भर नहीं रहते, बल्कि सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्राप्त डिजिटल रिकॉर्ड को भी समान रूप से मान्यता देते हैं। इस लेख में हम Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023 (BSA 2023) के अंतर्गत डिजिटल साक्ष्य के संग्रह, संरक्षण, प्रमाण और न्यायालय में प्रस्तुतीकरण की संपूर्ण प्रक्रिया का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
1. डिजिटल साक्ष्य का संग्रहण और संरक्षण (Collection & Preservation)
डिजिटल साक्ष्य को न्यायालय में प्रस्तुत करने से पहले उसका सही ढंग से संग्रहण और संरक्षण आवश्यक है।
- किसी कंप्यूटर, मोबाइल, सीसीटीवी या सर्वर से प्राप्त रिकॉर्ड को बिना परिवर्तन के संरक्षित किया जाना चाहिए।
- डिजिटल डेटा की hash value या checksum तैयार की जाती है ताकि बाद में उसकी अखंडता (integrity) प्रमाणित की जा सके।
- जांच अधिकारी या अधिवक्ता यह सुनिश्चित करते हैं कि डेटा को write-protect माध्यम में संग्रहीत किया गया है और उसकी chain of custody का उचित रिकॉर्ड रखा गया है।
यह प्रक्रिया यह सिद्ध करती है कि साक्ष्य में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
2. प्रतिलिपि या आउटपुट की तैयारी (Preparation of Copy/Output)
एकत्र किए गए डिजिटल साक्ष्य को न्यायालय में प्रस्तुत करने योग्य रूप में बदलना आवश्यक होता है। इसके लिए—
- डेटा को printout, CD/DVD, pen-drive, या server copy के रूप में सुरक्षित किया जाता है।
- Section 63, BSA 2023 के अनुसार, किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दस्तावेज़ (document) के समान माना जाता है।
- यदि मूल डिवाइस (जैसे मोबाइल या कंप्यूटर) न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, तो authentic copy प्रस्तुत की जा सकती है, बशर्ते उसकी सत्यता प्रमाणित हो।
इस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को वैधानिक रूप से दस्तावेज़ की श्रेणी में स्वीकार किया जाता है।
3. इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की ग्राह्यता (Admissibility of Electronic Record)
डिजिटल साक्ष्य की वैधानिक स्वीकार्यता Sections 61 और 62, BSA 2023 में निहित है।
- Section 61 कहता है कि केवल इस आधार पर कि साक्ष्य इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में है, उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
- Section 62 में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को सिद्ध करने के विशेष नियम बताए गए हैं, जैसे—
- साक्ष्य की उत्पत्ति का विवरण,
- डेटा संग्रह के समय प्रयुक्त सिस्टम की विश्वसनीयता,
- और रिकॉर्ड के निर्माण की प्रक्रिया का उल्लेख।
इस प्रकार, किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को अन्य दस्तावेज़ों के समान कानूनी महत्व दिया गया है।
4. प्रमाणन और अनुपालन (Proof & Supporting Compliance)
डिजिटल साक्ष्य को न्यायालय में स्वीकार कराने के लिए उसके प्रमाणन की प्रक्रिया भी आवश्यक है।
- Section 64, BSA 2023 के अनुसार यदि किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की secondary evidence (जैसे CD या printout) प्रस्तुत की जाती है, तो विरोधी पक्ष को मूल रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का नोटिस दिया जा सकता है।
- Sections 65 और 66 में हस्ताक्षर, लेखन या इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर (digital signature) को सिद्ध करने के नियम दिए गए हैं।
- यदि डिजिटल हस्ताक्षर मौजूद है, तो वह proof of authenticity का मजबूत माध्यम बनता है।
इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड विश्वसनीय और प्रमाणिक हो।
5. न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत करने की प्रक्रिया (Filing in Court)
जब डिजिटल साक्ष्य तैयार हो जाता है, तो उसे न्यायालय में निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है—
- मूल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड या computer output को न्यायालय में जमा किया जाता है।
- इसके साथ आवश्यक affidavit या certificate of authenticity संलग्न किया जाता है।
- साक्ष्य प्रस्तुत करते समय यह बताया जाता है कि डेटा किस प्रणाली से, किस तिथि को, और किस माध्यम से प्राप्त हुआ।
- यदि यह किसी सरकारी जांच एजेंसी या मान्यता प्राप्त forensic expert द्वारा संकलित किया गया है, तो उसकी रिपोर्ट भी साथ लगाई जाती है।
इस प्रक्रिया के माध्यम से न्यायालय के सामने साक्ष्य की विश्वसनीयता प्रमाणित होती है।
6. न्यायालय द्वारा सत्यापन (Court Verification if Authenticity Disputed)
यदि किसी पक्ष द्वारा डिजिटल साक्ष्य की प्रामाणिकता पर विवाद किया जाता है, तो न्यायालय के पास विशेष अधिकार होते हैं—
- न्यायालय संबंधित पक्ष को निर्देश दे सकता है कि मूल उपकरण या सर्वर प्रस्तुत किया जाए।
- Forensic Laboratory से रिपोर्ट मंगाई जा सकती है।
- साक्ष्य की metadata, hash value और time stamps का परीक्षण किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई बदलाव नहीं हुआ।
यह कदम न्यायिक निष्पक्षता और सत्यता बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
7. डिजिटल साक्ष्य को दस्तावेज़ के रूप में मान्यता (Digital Evidence as Document)
BSA 2023 में यह स्पष्ट किया गया है कि डिजिटल साक्ष्य को पारंपरिक दस्तावेज़ों के समान माना जाएगा।
- चाहे वह ईमेल हो, व्हाट्सएप चैट, कॉल रिकॉर्डिंग, सीसीटीवी फुटेज या कोई ऑनलाइन ट्रांजैक्शन — सभी को दस्तावेज़ की श्रेणी में रखा गया है।
- यह परिवर्तन भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 से एक बड़ा सुधार है, क्योंकि अब तकनीकी युग की वास्तविकताओं के अनुसार साक्ष्य प्रणाली विकसित हुई है।
- Section 63 इस दृष्टि से क्रांतिकारी है, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड “deemed document” है।
8. न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Approach)
भारत के कई न्यायालयों ने डिजिटल साक्ष्य की ग्राह्यता पर महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं।
- Anvar P.V. vs. P.K. Basheer (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को स्वीकार करने के लिए उचित प्रमाणपत्र आवश्यक है।
- Arjun Panditrao Khotkar vs. Kailash Kushanrao Gorantyal (2020) में यह दोहराया गया कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की ग्राह्यता तभी संभव है जब उसकी प्रामाणिकता सिद्ध की जाए।
- अब BSA 2023 ने इन न्यायिक सिद्धांतों को विधिक रूप से संहिताबद्ध कर दिया है।
9. निष्कर्ष (Conclusion)
डिजिटल साक्ष्य अब आधुनिक न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग बन चुका है। Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023 ने इस क्षेत्र में स्पष्टता और विश्वास प्रदान किया है।
डिजिटल रिकॉर्ड को अब केवल सहायक प्रमाण नहीं बल्कि प्राथमिक साक्ष्य के रूप में भी स्वीकार किया जा सकता है।
न्यायालयों, अधिवक्ताओं और जांच एजेंसियों के लिए यह आवश्यक है कि वे डिजिटल साक्ष्य के संग्रहण, संरक्षण और प्रमाणन की तकनीकी और कानूनी प्रक्रियाओं का पूर्ण पालन करें।
इस प्रकार डिजिटल साक्ष्य न केवल दस्तावेज़ के रूप में माना जाता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में सत्य और न्याय की खोज का एक सशक्त साधन बन गया है।
1. डिजिटल साक्ष्य का अर्थ और महत्व
डिजिटल साक्ष्य (Digital Evidence) वह साक्ष्य है जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों जैसे कंप्यूटर, मोबाइल, ईमेल, सीसीटीवी, या सर्वर से प्राप्त होता है। यह साक्ष्य आधुनिक न्यायिक प्रक्रिया में अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि आज अधिकांश अपराध और लेनदेन डिजिटल माध्यम से होते हैं। भारतीय न्यायालय अब ऐसे साक्ष्यों को पारंपरिक दस्तावेज़ों के समान मान्यता देते हैं। Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023 की धारा 63 के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को “दस्तावेज़” माना गया है। इसलिए ईमेल, चैट, कॉल रिकॉर्डिंग या डिजिटल हस्ताक्षरित फाइलें न्यायालय में वैध साक्ष्य हैं। यह सुधार तकनीकी युग की आवश्यकताओं के अनुरूप है, जिससे न्याय व्यवस्था और अधिक सटीक और पारदर्शी बनी है।
2. डिजिटल साक्ष्य के संग्रहण की प्रक्रिया
साक्ष्य की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए उसका सही संग्रहण (collection) सबसे आवश्यक कदम है। किसी अपराध या विवाद की जांच के दौरान जब इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्राप्त किया जाता है, तो उसकी original hash value या checksum तैयार की जाती है ताकि बाद में यह साबित किया जा सके कि उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त, chain of custody को बनाए रखना भी जरूरी होता है—अर्थात् कौन-कौन व्यक्ति इस साक्ष्य को संभाल रहा था, उसका पूरा रिकॉर्ड। जांच अधिकारी को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि साक्ष्य को write-protect माध्यम में सुरक्षित किया जाए। यह प्रक्रिया न्यायालय में साक्ष्य की प्रामाणिकता सिद्ध करने में अत्यंत सहायक होती है।
3. साक्ष्य के संरक्षण (Preservation) का महत्व
सिर्फ डिजिटल साक्ष्य प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि उसका संरक्षण भी महत्वपूर्ण है। डिजिटल डेटा अत्यंत संवेदनशील होता है और आसानी से बदल सकता है। इसलिए इसे सुरक्षित सर्वर, read-only डिवाइस या फ़ॉरेंसिक लैब में संग्रहीत किया जाता है। BSA 2023 के अंतर्गत, साक्ष्य की अखंडता बनाए रखना आवश्यक है ताकि न्यायालय यह मान सके कि डेटा में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई। साक्ष्य को मूल स्वरूप में रखने के लिए उसकी बैकअप कॉपी बनाई जाती है और metadata को सुरक्षित किया जाता है। यह सावधानी न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास पैदा करती है और सत्य की खोज को सुनिश्चित करती है।
4. डिजिटल साक्ष्य की प्रतिलिपि तैयार करना
जब किसी डिजिटल साक्ष्य को न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना होता है, तो उसकी प्रतिलिपि तैयार करना आवश्यक होता है। यह printout, CD, DVD, pen drive, या server copy के रूप में हो सकती है। Section 63, BSA 2023 यह स्पष्ट करता है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दस्तावेज़ की श्रेणी में रखा जाएगा। इसलिए यदि मूल डिवाइस (जैसे कंप्यूटर या मोबाइल) न्यायालय में लाना संभव न हो, तो प्रमाणित प्रतिलिपि (certified copy) प्रस्तुत की जा सकती है। प्रतिलिपि के साथ यह प्रमाण देना आवश्यक होता है कि यह मूल रिकॉर्ड से बिना किसी बदलाव के तैयार की गई है। इससे न्यायालय साक्ष्य को स्वीकार करने में सक्षम होता है।
5. डिजिटल साक्ष्य की ग्राह्यता (Admissibility)
Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023 की धारा 61 यह कहती है कि किसी डिजिटल रिकॉर्ड को केवल इस कारण अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि वह इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में है। साथ ही, धारा 62 के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को सिद्ध करने के विशेष नियम दिए गए हैं। इसमें यह आवश्यक है कि साक्ष्य का स्रोत, उसकी तैयारी की प्रक्रिया, और सिस्टम की विश्वसनीयता न्यायालय को स्पष्ट रूप से बताई जाए। यदि यह सिद्ध किया जाता है कि रिकॉर्ड किसी विश्वसनीय प्रणाली से उत्पन्न हुआ है, तो उसकी ग्राह्यता सुनिश्चित हो जाती है। यह प्रावधान डिजिटल युग में साक्ष्य कानून की एक महत्वपूर्ण प्रगति है।
6. साक्ष्य के प्रमाणन और सत्यापन की प्रक्रिया
डिजिटल साक्ष्य को प्रमाणित करना न्यायिक प्रक्रिया का आवश्यक भाग है। Section 64, 65, और 66, BSA 2023 के अंतर्गत यह बताया गया है कि यदि किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की secondary evidence (जैसे CD या printout) प्रस्तुत की जाती है, तो उसकी सत्यता प्रमाणित की जानी चाहिए। इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर, डिजिटल सर्टिफिकेट या तकनीकी विशेषज्ञ की रिपोर्ट का प्रयोग किया जा सकता है। यदि किसी साक्ष्य की प्रामाणिकता पर विवाद होता है, तो न्यायालय forensic verification का आदेश दे सकता है। यह प्रक्रिया न्यायालय को यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि साक्ष्य वास्तविक और विश्वसनीय है।
7. न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत करने की विधि
न्यायालय में डिजिटल साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। अधिवक्ता या पक्षकार को मूल रिकॉर्ड या उसका प्रमाणित computer output प्रस्तुत करना होता है। इसके साथ एक affidavit भी देना होता है जिसमें यह स्पष्ट किया जाता है कि साक्ष्य कब, किस सिस्टम से और किस व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया गया। यदि साक्ष्य किसी सरकारी एजेंसी द्वारा एकत्र किया गया है, तो उसकी forensic report भी संलग्न की जाती है। न्यायालय साक्ष्य की ग्राह्यता तय करने के लिए इन दस्तावेज़ों की जांच करता है। यह प्रक्रिया साक्ष्य की वैधता स्थापित करने के लिए अनिवार्य है।
8. न्यायालय द्वारा सत्यापन (Court Verification)
जब किसी पक्ष द्वारा डिजिटल साक्ष्य की प्रामाणिकता पर प्रश्न उठाया जाता है, तो न्यायालय के पास जांच के कई अधिकार होते हैं। न्यायालय उस पक्ष को मूल डिवाइस या सर्वर प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है। साथ ही, न्यायालय विशेषज्ञों से forensic examination करवाने के लिए भी स्वतंत्र है। hash value, metadata, और timestamps का विश्लेषण करके यह निर्धारित किया जाता है कि साक्ष्य में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। यह प्रक्रिया न्यायालय को निष्पक्ष निर्णय देने में सहायता करती है और साक्ष्य के दुरुपयोग को रोकती है।
9. न्यायिक दृष्टिकोण और प्रमुख निर्णय
भारत के न्यायालयों ने डिजिटल साक्ष्य की ग्राह्यता पर कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। Anvar P.V. v. P.K. Basheer (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब उसका प्रमाणपत्र (certificate) प्रस्तुत किया गया हो। बाद में Arjun Panditrao Khotkar v. Kailash Kushanrao Gorantyal (2020) में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रामाणिकता सिद्ध करना आवश्यक है। BSA 2023 ने इन न्यायिक सिद्धांतों को विधिक रूप से शामिल कर लिया है, जिससे अब न्यायालयों को डिजिटल साक्ष्य को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश प्राप्त हैं।
10. निष्कर्ष: डिजिटल साक्ष्य का बढ़ता प्रभाव
डिजिटल साक्ष्य अब भारतीय न्याय व्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023 ने इसे कानूनी मान्यता देकर न्याय प्रणाली को आधुनिक तकनीकी आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया है। डिजिटल रिकॉर्ड अब केवल सहायक प्रमाण नहीं, बल्कि मुख्य साक्ष्य के रूप में भी मान्य है। यह बदलाव न्यायिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, विश्वसनीय और तकनीकी रूप से उन्नत बनाता है। अधिवक्ताओं, पुलिस अधिकारियों और न्यायाधीशों के लिए यह आवश्यक है कि वे डिजिटल साक्ष्य की प्रक्रिया, प्रमाणन और कानून के प्रावधानों को भली-भांति समझें ताकि न्यायिक प्रक्रिया में सत्य की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।