डिजिटल युग में RTI की प्रासंगिकता बनाए रखने पर ज़ोर: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नियमों में संशोधन के दिए निर्देश

शीर्षक: डिजिटल युग में RTI की प्रासंगिकता बनाए रखने पर ज़ोर: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नियमों में संशोधन के दिए निर्देश


प्रस्तावना
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की आधारशिला मानी जाती है, जिसने शासन में पारदर्शिता और नागरिक सहभागिता को नया आयाम दिया। लेकिन डिजिटल युग की तीव्र गति और तकनीकी विकास के साथ RTI प्रणाली में कई व्यावहारिक चुनौतियाँ उभर आई हैं। इसी संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश में केंद्र सरकार को RTI नियमों में आवश्यक संशोधन करने के निर्देश दिए हैं, ताकि सूचना का अधिकार डिजिटल युग में भी प्रासंगिक, सुलभ और प्रभावी बना रह सके।


मामले की पृष्ठभूमि
यह याचिका एक नागरिक द्वारा दायर की गई थी, जिसमें आरोप था कि RTI पोर्टल पर कुछ मंत्रालयों या विभागों की जानकारी अपलोड नहीं है, जिससे नागरिकों को सूचना प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है। याचिकाकर्ता का कहना था कि सरकार की ओर से डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन RTI की प्रक्रिया अभी भी कई स्तरों पर पुरानी पद्धतियों पर आधारित है, जैसे मैनुअल फाइलिंग, ऑफलाइन जवाब, और पारदर्शिता की कमी।


दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी और निर्देश
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्ण की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा:

RTI अधिनियम को तकनीकी दृष्टि से सशक्त और नागरिकों के लिए अधिक सुलभ बनाने की आवश्यकता है। जब प्रशासन डिजिटल हो गया है, तो सूचना का अधिकार भी डिजिटल रूप से ही सक्रिय और उत्तरदायी होना चाहिए।

कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि वह—

  1. RTI नियमों की डिजिटल युग के अनुरूप समीक्षा करे
  2. ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म को सार्वभौमिक और अद्यतन बनाए
  3. RTI आवेदनों और उत्तरों की ट्रैकिंग और समयसीमा प्रणाली को मजबूत करे
  4. सूचना आयोगों के आदेश और अपीलों की उपलब्धता पोर्टल पर सुनिश्चित करे

डिजिटल युग में RTI की चुनौतियाँ
आज अधिकांश सरकारी कार्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर हो रहे हैं, लेकिन RTI प्रणाली में निम्न समस्याएं बनी हुई हैं:

  • कई विभाग अब भी केवल ऑफलाइन आवेदन स्वीकार करते हैं।
  • उत्तर समय पर नहीं मिलते या टालमटोल किया जाता है।
  • जानकारी अस्पष्ट, अधूरी या जटिल भाषा में दी जाती है।
  • ट्रैकिंग प्रणाली पारदर्शी नहीं है।
  • अधिकांश वेबसाइटें नागरिकों के अनुकूल नहीं हैं।

इस परिप्रेक्ष्य में अदालत का हस्तक्षेप नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक और स्वागतयोग्य कदम है।


RTI और लोकतंत्र का संबंध
RTI केवल सूचना प्राप्त करने का अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक लोकतांत्रिक नियंत्रण प्रणाली है जो सरकारी कामकाज की जवाबदेही तय करती है। यदि नागरिक समय पर सटीक जानकारी प्राप्त नहीं कर पाते, तो न तो पारदर्शिता संभव है और न ही जवाबदेही।

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर RTI को प्रभावी बनाना केवल तकनीकी नहीं, बल्कि संवैधानिक और नैतिक आवश्यकता है।


कानूनी और प्रशासनिक परिणाम
इस फैसले के बाद केंद्र सरकार को RTI नियमों की व्यापक समीक्षा करनी होगी। इसके अतिरिक्त:

  • सभी विभागों को RTI से संबंधित डिजिटल ढांचे को अद्यतन करना होगा।
  • नागरिकों को पोर्टल के माध्यम से आसानी से सूचना प्राप्त करने की सुविधा मिल सकेगी।
  • अपील, शिकायत और आयोग के आदेश भी ऑनलाइन उपलब्ध होंगे।

यह फैसला सूचना आयोगों की कार्यशैली पर भी दबाव डालेगा कि वे अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी बनें।


निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय डिजिटल युग में सशक्त नागरिक और उत्तरदायी शासन के बीच सेतु का कार्य करेगा। इससे RTI की आत्मा – “सरकार लोगों को जवाबदेह हो” – को और अधिक मजबूती मिलेगी। यदि सरकार समय रहते नियमों में आवश्यक संशोधन करती है, तो RTI भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में और अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा सकेगा।