डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम साइबर अपराध
(Freedom of Expression vs Cybercrime in the Digital Age)
🔷 प्रस्तावना
आज का युग डिजिटल युग कहलाता है, जहां इंटरनेट, सोशल मीडिया, मोबाइल एप्लिकेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने मानव जीवन को एक नये आयाम पर पहुँचा दिया है। इस युग में प्रत्येक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखने, विचार साझा करने और सरकार, समाज तथा संस्थाओं की नीतियों की आलोचना करने की अद्वितीय स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा मानी जाती है।
परंतु, इस डिजिटल अभिव्यक्ति ने एक नई चुनौती को भी जन्म दिया है – साइबर अपराध। इंटरनेट पर अश्लील सामग्री, नफरत फैलाना, ट्रोलिंग, साइबर धमकी, फर्जी खबरें और हैकिंग जैसी घटनाएँ आज सामान्य हो गई हैं। सवाल यह है कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर साइबर अपराधों को जायज ठहराया जा सकता है?
इस लेख में हम इस टकराव का विश्लेषण करेंगे कि कैसे डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग साइबर अपराधों को बढ़ावा दे रहा है, और कानून इन दोनों के बीच संतुलन कैसे बना रहा है।
🔷 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: संवैधानिक अधिकार
✅ भारतीय संविधान में स्थिति
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) प्रत्येक नागरिक को “विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का अधिकार देता है।
यह स्वतंत्रता निम्नलिखित रूपों में है:
- सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का अधिकार
- लेखन, भाषण, पेंटिंग, फिल्म आदि के माध्यम से विचार प्रकट करना
- सरकार, समाज या संस्थानों की आलोचना करना
- सूचना प्राप्त करने और साझा करने का अधिकार
✅ परंतु अनुच्छेद 19(2) में सीमाएँ भी
यह स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है। राज्य इस पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है यदि:
- यह राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ हो
- राज्य की सुरक्षा को खतरा पहुँचाए
- सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करे
- नैतिकता या शालीनता का उल्लंघन करे
- मानहानि या न्यायालय की अवमानना हो
🔷 साइबर अपराध: परिभाषा और स्वरूप
साइबर अपराध वह अवैध कृत्य है जो कंप्यूटर, इंटरनेट या डिजिटल नेटवर्क की सहायता से किया जाता है।
👉 प्रमुख साइबर अपराध:
- साइबर बुलीइंग (Cyber Bullying): इंटरनेट पर अपमानजनक या धमकी भरे संदेश भेजना
- साइबर स्टॉकिंग (Cyber Stalking): बार-बार किसी व्यक्ति को ऑनलाइन परेशान करना
- डेटा चोरी (Data Theft): किसी के डिवाइस या प्रोफाइल से जानकारी चुराना
- हैकिंग: अनधिकृत रूप से कंप्यूटर या वेबसाइट में प्रवेश करना
- फेक न्यूज: झूठी और भ्रामक खबरें फैलाना
- मॉर्फिंग और डीपफेक: किसी की छवि या वीडियो से छेड़छाड़
- साइबर आतंकवाद: देश की सुरक्षा या महत्वपूर्ण संस्थाओं पर साइबर हमले
🔷 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम साइबर अपराध: एक जटिल संतुलन
🔹 “स्वतंत्रता” का दुरुपयोग
सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले भाषण, फर्जी खबरें, धार्मिक/जातिगत विद्वेष, व्यक्तिगत हमले और ट्रोलिंग — इन सभी कृत्यों को कई बार लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहकर सही ठहराने का प्रयास करते हैं।
उदाहरण:
- किसी नेता या धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी
- महिला पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं को ट्रोल करना
- अफवाहों से सांप्रदायिक तनाव
🔹 संविधान की सीमाएँ महत्वपूर्ण हैं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार लाइसेंस नहीं है कि कोई भी कुछ भी कहे। जब यह स्वतंत्रता किसी व्यक्ति की गरिमा, सार्वजनिक व्यवस्था, या देश की सुरक्षा को चोट पहुँचाए, तो वह अपराध बन जाती है।
🔷 भारत में लागू प्रमुख कानून जो संतुलन बनाते हैं
1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000)
- धारा 66C: पहचान की चोरी
- धारा 66D: धोखाधड़ी से जानकारी प्राप्त करना
- धारा 67: अश्लील सामग्री प्रकाशित करना
- धारा 69A: वेबसाइट/URL को ब्लॉक करने की शक्ति
2. भारतीय न्याय संहिता, 2023 (पूर्व में IPC, 1860)
- मानहानि (Defamation)
- धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना
- सांप्रदायिक विद्वेष फैलाना
- महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाना (Section 74, BNS)
3. आईटी नियम 2021 (IT Rules, 2021)
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर “ग्रेसिव जवाबदेही”
- शिकायत अधिकारी की नियुक्ति
- 72 घंटे के भीतर आपत्तिजनक कंटेंट हटाना
🔷 न्यायपालिका की भूमिका
⚖️ Shreya Singhal v. Union of India (2015)
- सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A को निरस्त किया
- कहा: “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अस्पष्ट और व्यापक प्रतिबंध असंवैधानिक हैं”
⚖️ Puttaswamy v. Union of India (2017)
- निजता का अधिकार भी मौलिक अधिकार घोषित किया गया
- किसी की निजी जानकारी शेयर करना स्वतंत्रता नहीं, अपराध है
⚖️ Tehseen Poonawalla Case (2018)
- फर्जी खबरों से फैली भीड़ हिंसा के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को जिम्मेदार ठहराया
🔷 वैश्विक दृष्टिकोण
- यूरोप में GDPR (General Data Protection Regulation) के तहत डेटा गोपनीयता पर कठोर नियम
- अमेरिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अत्यधिक संरक्षित, परंतु सोशल मीडिया कंपनियाँ ‘Community Guidelines’ लागू करती हैं
- चीन में अभिव्यक्ति की सख्त निगरानी, सेंसरशिप का बोलबाला
भारत को इन देशों से संतुलन का रास्ता सीखने की आवश्यकता है — ना तो पूरी सेंसरशिप, ना ही निरंकुश स्वतंत्रता।
🔷 डिजिटल साक्षरता और नागरिक जिम्मेदारी
- डिजिटल व्यवहार को समझना – इंटरनेट पर की गई कोई भी अभिव्यक्ति स्थायी होती है
- फर्जी खबरों से सावधानी – स्रोत की जांच करें, साझा करने से पहले सोचें
- घृणा और अश्लीलता से बचना – स्वतंत्रता का दायरा दूसरों की गरिमा से टकरा न जाए
- शिकायत प्रक्रिया का प्रयोग – साइबर अपराध की रिपोर्ट CERT-In, साइबर सेल या सोशल मीडिया शिकायत प्रकोष्ठ में करें
🔷 सुधार और भविष्य की दिशा
✅ डिजिटल भारत के लिए ठोस साइबर कानून
✅ निजता और डाटा संरक्षण पर विशेष अधिनियम
✅ AI/Deepfake जैसी नई तकनीकों के लिए नीतियाँ
✅ सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की जवाबदेही स्पष्ट हो
✅ स्कूल और कॉलेजों में डिजिटल साक्षरता अनिवार्य
🔷 निष्कर्ष
डिजिटल युग ने जहाँ अभिव्यक्ति की शक्ति को अभूतपूर्व ऊँचाई दी है, वहीं यह अपराधों का एक नया मंच भी बन चुका है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक है, लेकिन वह तब तक ही मूल्यवान है जब तक वह दूसरों के अधिकारों, गरिमा और कानून का उल्लंघन न करे।
एक प्रबुद्ध, जागरूक और उत्तरदायी नागरिक समाज ही इस संतुलन को बनाए रख सकता है। सरकार, न्यायपालिका, सोशल मीडिया कंपनियाँ और हम सभी – यदि अपनी जिम्मेदारी समझें, तो यह अभिव्यक्ति का युग अपराधों के युग में नहीं बदलेगा।