डिजिटल निजता और डेटा सुरक्षा: समकालीन युग में अधिकार, चुनौतियाँ और समाधान

शीर्षक: डिजिटल निजता और डेटा सुरक्षा: समकालीन युग में अधिकार, चुनौतियाँ और समाधान


भूमिका:

21वीं सदी को डिजिटल क्रांति का युग कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इंटरनेट, स्मार्टफोन, सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स और डिजिटल सेवाओं के अभूतपूर्व विस्तार ने जीवन को सुविधाजनक तो बनाया है, लेकिन इसके साथ ही निजता (Privacy) और डेटा सुरक्षा (Data Protection) को लेकर कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। डिजिटल निजता अब केवल एक तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार का विषय बन चुका है।


डिजिटल निजता की परिभाषा:

डिजिटल निजता का तात्पर्य उस अधिकार से है जिसके अंतर्गत व्यक्ति को यह नियंत्रण प्राप्त होता है कि उसकी व्यक्तिगत जानकारी (Personal Information) किस प्रकार, किस उद्देश्य से और किस हद तक एकत्र, उपयोग या साझा की जा सकती है। यह निजता व्यक्ति के डिजिटल जीवन से जुड़ी सूचनाओं पर आधारित होती है, जैसे—

  • नाम, पता, मोबाइल नंबर
  • आधार संख्या या पैन कार्ड
  • लोकेशन डेटा
  • ब्राउज़िंग हिस्ट्री
  • सोशल मीडिया पर गतिविधियाँ आदि।

डेटा सुरक्षा का आशय:

डेटा सुरक्षा वह प्रणाली और उपाय है जो व्यक्ति की डिजिटल जानकारी को अनधिकृत पहुंच, दुरुपयोग, हैकिंग, चोरी और क्षति से बचाने के लिए अपनाई जाती है। यह साइबर सुरक्षा का एक अनिवार्य भाग है और इसमें शामिल हैं:

  • एन्क्रिप्शन (Encryption)
  • पासवर्ड सुरक्षा
  • दोहरी प्रमाणीकरण (Two-Factor Authentication)
  • फायरवॉल और साइबर निगरानी तंत्र।

डिजिटल निजता से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ:

  1. अनियंत्रित डेटा संग्रहण:
    मोबाइल ऐप्स, वेबसाइट्स और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म उपयोगकर्ता की जानकारी लगातार एकत्र करते हैं, अक्सर बिना स्पष्ट सहमति के।
  2. डेटा चोरी और हैकिंग:
    बैंक, ई-कॉमर्स वेबसाइट्स और सरकारी पोर्टल्स अक्सर साइबर हमलों का शिकार बनते हैं, जिससे लाखों लोगों का निजी डेटा लीक हो जाता है।
  3. सरकारी निगरानी (Surveillance):
    कुछ सरकारें आंतरिक सुरक्षा या कानून-व्यवस्था के नाम पर नागरिकों की डिजिटल गतिविधियों की निगरानी करती हैं, जिससे निजता पर प्रश्नचिह्न लगता है।
  4. मंजूरी (Consent) की अस्पष्टता:
    अधिकतर उपयोगकर्ता नियम और शर्तें पढ़े बिना “I Agree” पर क्लिक कर देते हैं, जिससे कंपनियाँ उनकी जानकारी का मनमाना उपयोग करती हैं।
  5. डेटा लोकलाइजेशन की जटिलता:
    डेटा कहाँ संग्रहित होगा — देश के भीतर या बाहर? यह एक बड़ा संवैधानिक और व्यावसायिक मुद्दा बन चुका है।

भारत में डेटा सुरक्षा का कानूनी परिदृश्य:

  1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000):
    भारत में डेटा सुरक्षा से संबंधित मूलभूत कानून, जो साइबर अपराधों और जानकारी के इलेक्ट्रॉनिक रूप में संरक्षण की बात करता है।
  2. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21:
    सुप्रीम कोर्ट ने Puttaswamy v. Union of India (2017) केस में निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया।
  3. डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (Digital Personal Data Protection Act, 2023):
    यह अधिनियम व्यक्तियों के व्यक्तिगत डिजिटल डेटा की सुरक्षा, पारदर्शिता, और जिम्मेदारी को सुनिश्चित करने हेतु बनाया गया है। इसमें शामिल हैं:

    • डेटा सिद्धांत (Data Fiduciary) की जिम्मेदारी
    • उपयोगकर्ता की सहमति आधारित डेटा संग्रहण
    • डेटा संरक्षण बोर्ड की स्थापना
    • दंडात्मक प्रावधान (50 करोड़ तक का जुर्माना)

अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य:

  1. GDPR (General Data Protection Regulation), यूरोप:
    सबसे सख्त और प्रभावी डेटा संरक्षण कानून, जो उपयोगकर्ता को “Right to be Forgotten”, डेटा पोर्टेबिलिटी और सहमति पर आधारित संग्रहण का अधिकार देता है।
  2. अमेरिका में क्षेत्रीय कानून:
    जैसे California Consumer Privacy Act (CCPA), जो उपभोक्ताओं को अपनी जानकारी तक पहुंच और उसे हटवाने का अधिकार देता है।

डेटा सुरक्षा के लिए संभावित समाधान:

  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा:
    आम नागरिकों को यह सिखाना जरूरी है कि वे किस प्रकार अपनी डिजिटल जानकारी की रक्षा कर सकते हैं।
  • कंपनियों की जवाबदेही तय करना:
    कंपनियों को डेटा लीक या गलत प्रयोग की स्थिति में जवाबदेह ठहराना आवश्यक है।
  • सुरक्षा तकनीकों का प्रयोग:
    जैसे एन्क्रिप्शन, मल्टी फैक्टर ऑथेंटिकेशन, बायोमैट्रिक सुरक्षा आदि।
  • प्रभावी विनियामक संस्था का निर्माण:
    डेटा संरक्षण बोर्ड जैसे स्वायत्त निकाय को पर्याप्त शक्तियाँ और संसाधन देना।

निष्कर्ष:

डिजिटल युग में निजता और डेटा सुरक्षा मात्र तकनीकी या कानूनी विषय नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक, मानवाधिकार और लोकतंत्र का प्रश्न भी बन चुका है। जबतक नागरिकों की सूचनात्मक स्वायत्तता सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक “डिजिटल इंडिया” का सपना अधूरा रहेगा। अतः यह आवश्यक है कि सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक — तीनों मिलकर डिजिटल निजता की रक्षा करें और डेटा संरक्षण को सशक्त बनाएं।