“डिजिटल अरेस्ट में डॉक्टरः 70 वर्षीय महिला से 3 करोड़ की साइबर ठगी, मुंबई में हाईटेक अपराध का खुलासा”
परिचय
तेजी से बढ़ती तकनीकी दुनिया में जहां डिजिटल सेवाएं हमारे जीवन को आसान बनाती हैं, वहीं साइबर अपराधी भी इनका दुरुपयोग कर लोगों को ठगने के नए-नए तरीके अपना रहे हैं। मई 2025 में मुंबई की एक 70 वर्षीय महिला डॉक्टर को “डिजिटल अरेस्ट” में रखकर उनसे 3 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई। यह मामला न केवल साइबर अपराध की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे पढ़े-लिखे और अनुभवी लोग भी ठगी का शिकार बन सकते हैं।
1. क्या है ‘डिजिटल अरेस्ट’?
“डिजिटल अरेस्ट” एक नई तरह की साइबर ठगी है जिसमें पीड़ित को मानसिक और साइबर कैद में रखकर, उसे किसी अपराध में फंसा देने की धमकी देकर, उसकी गतिविधियों को वीडियो कॉल के जरिए मॉनिटर किया जाता है।
इस केस में पीड़िता को:
- लगातार 8 दिनों तक वीडियो निगरानी में रखा गया
- हर घंटे रिपोर्ट करने को कहा गया
- धमकी दी गई कि वे मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंस चुकी हैं
2. घटना की पूरी कहानी
फर्जी कॉल की शुरुआत:
- एक दिन महिला डॉक्टर को कॉल आया।
- कॉल करने वाले ने खुद को दूरसंचार विभाग का कर्मचारी ‘अमित कुमार’ बताया।
- कहा गया कि उनके नाम से एक सिम कार्ड खरीदा गया है, जिसका इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों में हो रहा है।
क्राइम ब्रांच अधिकारी का रूप:
- दूसरे कॉलर ने खुद को क्राइम ब्रांच अधिकारी समाधान पवार बताया।
- उसने कहा कि एक एयरलाइंस कंपनी के मालिक के घर छापे के दौरान उनके बैंक खाते और डेबिट कार्ड की डिटेल मिली है।
फर्जी दस्तावेज और वीडियो कॉल:
- आरोपियों ने नकली पहचान पत्र, कोर्ट नोटिस और एजेंसी लेटरहेड भेजे।
- एक व्यक्ति ने पुलिस की वर्दी पहनकर वीडियो कॉल पर उनके पति से बात की, जिससे पीड़िता को विश्वास हो गया कि मामला गंभीर है।
मानसिक दबाव और डर का फायदा उठाकर ठगी:
- उन्हें कहा गया कि वे घर से बाहर न जाएं और पूरी तरह “डिजिटल निगरानी” में रहें।
- इस बीच, उनसे विभिन्न बैंक खातों में लगातार ट्रांजैक्शन करवाए गए, जिससे कुल ₹3 करोड़ रुपये की ठगी की गई।
3. साइबर अपराधियों की रणनीति (Modus Operandi)
- फर्जी पहचान और सरकारी अधिकारियों का नाम लेना
- नकली दस्तावेजों और कोर्ट नोटिसों का प्रयोग
- वीडियो कॉल के जरिए विश्वास पैदा करना
- मानसिक दबाव, डर और शर्मिंदगी का भाव पैदा कर, निर्णय क्षमता को कमजोर करना
- बैंक खातों और ट्रांजैक्शन पर नियंत्रण पाना
4. पुलिस की जांच और कानूनी पहल
- पीड़िता की शिकायत के बाद मुंबई साइबर पुलिस ने मामला दर्ज किया है।
- IPC की धारा 419, 420 (धोखाधड़ी और छल), 465, 468 (जालसाजी), और IT Act की धाराएं लगाई गई हैं।
- बैंक खातों को ट्रैक किया जा रहा है, जिनमें राशि ट्रांसफर हुई।
- कुछ खातों को फ्रीज किया गया है और साइबर फ्रॉड नेटवर्क की तलाश जारी है।
5. ऐसे मामलों में आम नागरिकों को क्या करना चाहिए?
सावधानी के उपाय:
✅ किसी भी अनजान कॉल पर व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें
✅ सरकारी अधिकारी या पुलिस कभी फोन पर पैसे नहीं मांगते
✅ कॉल या वीडियो कॉल पर कोर्ट, बैंक या पुलिस दस्तावेज मांगने पर सतर्क हो जाएं
✅ किसी साइबर अपराध के शिकार होने पर तुरंत:
- राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (www.cybercrime.gov.in) पर शिकायत दर्ज करें
- स्थानीय पुलिस थाने या साइबर सेल में FIR दर्ज करवाएं
6. निष्कर्ष
मुंबई की इस घटना ने यह साफ कर दिया है कि साइबर अपराधी न केवल तकनीकी रूप से दक्ष हैं, बल्कि वे मानसिक दबाव और मनोवैज्ञानिक चालों के जरिये भी लोगों को अपने जाल में फंसा रहे हैं। यह मामला डिजिटल सुरक्षा जागरूकता की बेहद जरूरत को उजागर करता है। यदि ऐसे मामलों में समय पर कार्रवाई न हो, तो यह जीवनभर की कमाई को छीन सकते हैं।
सभी नागरिकों को चाहिए कि वे सतर्क रहें, जागरूक रहें और किसी भी अनजाने डिजिटल संपर्क को आंख मूंदकर न स्वीकारें।