लेख शीर्षक:
“ठग लाइफ फिल्म पर न्यायेतर प्रतिबंधों को सुप्रीम कोर्ट की चुनौती: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सार्वजनिक शांति”
परिचय:
भारतीय संविधान की धारा 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार नागरिकों को प्राप्त है, लेकिन यह स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है। फिल्मों और कला के अन्य रूपों पर प्रतिबंध, विशेषकर न्यायेतर प्रतिबंध (extra-judicial bans), इस स्वतंत्रता के दायरे को सीमित कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ‘ठग लाइफ’ फिल्म की स्क्रीनिंग पर कर्नाटक सरकार द्वारा लगाए गए न्यायेतर प्रतिबंधों के खिलाफ दायर याचिका पर संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
मामले की पृष्ठभूमि:
तमिल सिनेमा के दो दिग्गज – अभिनेता कमल हासन और निर्देशक मणिरत्नम – की बहुप्रतीक्षित फिल्म ठग लाइफ को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ है। फिल्म की स्क्रीनिंग को लेकर कर्नाटक में कुछ राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने विरोध जताया और सरकार ने स्क्रीनिंग रोकने के निर्देश दिए। यह प्रतिबंध कोई न्यायिक आदेश नहीं था, बल्कि प्रशासनिक स्तर पर लागू किया गया।
याचिका की मुख्य बातें:
- याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि फिल्म पर लगाए गए न्यायेतर प्रतिबंध को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
- यह दलील दी गई कि एक वैध प्रमाणपत्र प्राप्त फिल्म को केवल लॉ एंड ऑर्डर के डर से रोका जाना अनुचित है।
- याचिका में कहा गया कि यदि किसी व्यक्ति या समूह को फिल्म से आपत्ति है, तो वह सेंसर बोर्ड या न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है, न कि स्वयं रोकथाम कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया:
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने 13 जून 2025 को सुनवाई करते हुए कहा कि “सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कानून का पालन कराए, न कि फिल्म पर प्रतिबंध लगाए।”
कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
न्यायेतर प्रतिबंधों का कानूनी विश्लेषण:
- न्यायेतर प्रतिबंध वे होते हैं जो न्यायालय द्वारा नहीं बल्कि राजनीतिक दबाव, प्रशासनिक आदेश या भीड़ के डर के कारण लागू होते हैं।
- Supreme Court के विभिन्न निर्णयों – जैसे S. Rangarajan v. P. Jagjivan Ram (1989) और F.A. Picture International v. CBFC – में यह स्पष्ट किया गया है कि फिल्में वैध सेंसर प्रमाणपत्र प्राप्त कर लेने के बाद, किसी भी अप्रत्याशित प्रतिबंध से संरक्षित हैं।
- सरकार को कानून व्यवस्था के नाम पर फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की बजाय, कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
लोकतंत्र और कला की स्वतंत्रता:
भारत जैसे लोकतंत्र में कलात्मक अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाना न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों को भी कमजोर करता है।
यदि न्यायेतर प्रतिबंधों को प्रोत्साहन मिला तो इसका दुरुपयोग कर कला, साहित्य, पत्रकारिता और फिल्मों को चुप कराया जा सकता है।
निष्कर्ष:
ठग लाइफ विवाद न केवल एक फिल्म की रिलीज़ का मुद्दा है, बल्कि यह एक बड़ी संवैधानिक बहस का हिस्सा बन चुका है – क्या सरकारें भीड़ के डर से कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन सकती हैं?
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इस मामले में न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम है और यह आने वाले समय में फिल्मों पर लगने वाले अघोषित प्रतिबंधों के खिलाफ एक मिसाल बन सकता है।