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टोल देने वाले को अच्छी सड़क पर चलने का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

टोल देने वाले को अच्छी सड़क पर चलने का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

भारत में सड़क अवसंरचना और यातायात व्यवस्था को लेकर समय-समय पर न्यायालयों के समक्ष कई प्रश्न उठते रहे हैं। सड़कें किसी भी देश की प्रगति की धुरी होती हैं, क्योंकि इनके माध्यम से न केवल व्यापार और परिवहन को गति मिलती है बल्कि आम नागरिकों के जीवनस्तर में भी सुधार आता है। ऐसे में टोल टैक्स का मुद्दा हमेशा से विवादित रहा है। टोल टैक्स वह शुल्क है जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग अथवा किसी विशेष पुल, सुरंग अथवा एक्सप्रेस-वे के उपयोग के लिए यात्रियों से लिया जाता है।

हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि –

👉 यदि हाई-वे की स्थिति अत्यंत खराब है और वह निर्धारित मानकों पर खरा नहीं उतरता, तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) यात्रियों को टोल भुगतान के लिए बाध्य नहीं कर सकता।

यह निर्णय नागरिकों के हितों और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक मील का पत्थर है।


मामले की पृष्ठभूमि

केरल के त्रिशूर जिले के पलियेक्कारा टोल प्लाजा को लेकर यह विवाद सामने आया था। वहां की सड़कों की स्थिति खराब होने के कारण केरल हाईकोर्ट ने टोल वसूली पर रोक लगा दी थी। इस आदेश के खिलाफ एनएचएआई और टोल वसूली ठेकेदार कंपनी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की पीठ जिसमें चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन शामिल थे, ने हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा कि नागरिकों से खराब सड़क का उपयोग करने के लिए टोल टैक्स वसूलना अन्यायपूर्ण है।


सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की मुख्य बातें

  1. अच्छी सड़क का अधिकार
    • जब कोई नागरिक पहले ही मोटर वाहन टैक्स चुका चुका है, तो उसे खराब और गड्ढों से भरी सड़क पर चलने के लिए अतिरिक्त शुल्क नहीं देना चाहिए।
    • टोल का मूल उद्देश्य बेहतर सड़क सुविधा उपलब्ध कराना है, न कि लोगों को परेशान करना।
  2. टोल बूथों पर व्यवहार और त्रासदी
    • कोर्ट ने यह भी कहा कि टोल बूथों पर अक्सर कर्मचारियों की कमी और अधिक दबाव के कारण नागरिकों को घंटों कतार में खड़ा रहना पड़ता है।
    • इससे न केवल नागरिकों का समय और धैर्य नष्ट होता है, बल्कि पेट्रोल/डीजल जलने से पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ता है।
  3. न्यायिक दृष्टिकोण
    • कोर्ट ने माना कि यदि सरकार और एनएचएआई नागरिकों से टोल के रूप में शुल्क वसूलते हैं, तो यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे गुणवत्तापूर्ण सड़क सुविधा उपलब्ध कराएं।
    • खराब सड़क के लिए नागरिकों को दंडित नहीं किया जा सकता।

नागरिक अधिकार और टोल टैक्स

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार” प्राप्त है। जीवन के अधिकार में गरिमामय और सुरक्षित यात्रा का अधिकार भी निहित है। यदि नागरिकों को खराब सड़कों पर चलना पड़े, तो यह उनके मौलिक अधिकार का हनन है।

इसके अतिरिक्त, उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत भी नागरिक को उचित सेवाएँ प्राप्त करने का अधिकार है। टोल टैक्स चुकाने के बाद खराब सड़क देना “सेवा में कमी” (Deficiency in Service) की श्रेणी में आता है।


टोल प्रणाली की चुनौतियाँ

  1. खराब सड़कों के बावजूद टोल वसूली
    • कई राज्यों में देखा गया है कि सड़कें गड्ढों से भरी रहती हैं, फिर भी टोल वसूली बंद नहीं होती।
  2. बूथों पर अव्यवस्था
    • कर्मचारियों की कमी और तकनीकी खामियों के कारण घंटों तक लंबी लाइन लग जाती है।
  3. नागरिकों पर आर्थिक बोझ
    • नागरिक पहले ही रोड टैक्स, मोटर वाहन टैक्स और ईंधन पर भारी टैक्स चुकाते हैं। इसके बावजूद बार-बार टोल देना दोहरा बोझ है।
  4. पारदर्शिता की कमी
    • टोल से प्राप्त राशि का उपयोग सड़क निर्माण और रखरखाव में कितनी हुई, इसका स्पष्ट विवरण जनता को नहीं मिलता।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?

  • यह फैसला सरकार और एनएचएआई को स्पष्ट संदेश देता है कि नागरिक उपभोक्ता हैं, उन पर बोझ डालने से पहले उन्हें सुविधा देना अनिवार्य है।
  • यह निर्णय भविष्य में टोल वसूली की प्रणाली को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाएगा।
  • इससे उन क्षेत्रों के नागरिकों को राहत मिलेगी, जहां सड़कें खराब होने के बावजूद टोल वसूला जा रहा है।

आलोचना और सुझाव

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सराहनीय है, परंतु इसे प्रभावी बनाने के लिए कुछ कदम उठाए जाने आवश्यक हैं –

  1. निगरानी प्रणाली
    • टोल से प्राप्त राशि और सड़क की गुणवत्ता की नियमित जाँच हो।
    • यदि सड़क मानक पर खरा न उतरे, तो तुरंत टोल वसूली पर रोक लगे।
  2. तकनीकी सुधार
    • फास्टैग जैसी डिजिटल प्रणाली को और प्रभावी बनाया जाए ताकि कतार और समय की बर्बादी न हो।
  3. जवाबदेही तय करना
    • टोल ठेकेदार कंपनियों और एनएचएआई अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।
    • खराब सड़क की स्थिति में जिम्मेदार अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई हो।
  4. जन भागीदारी
    • नागरिकों को शिकायत करने और कार्रवाई सुनिश्चित कराने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जाए।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल टोल प्रणाली की खामियों को उजागर करता है, बल्कि नागरिक अधिकारों को भी सशक्त बनाता है। अब यह जरूरी है कि सरकार और संबंधित एजेंसियाँ इस आदेश की भावना को आत्मसात करते हुए सुनिश्चित करें कि टोल टैक्स वसूली केवल वहीं हो जहां नागरिकों को सुरक्षित, सुगम और उच्च गुणवत्ता वाली सड़क सुविधा उपलब्ध हो।

इस फैसले से स्पष्ट संदेश गया है कि टोल केवल शुल्क नहीं बल्कि नागरिक और सरकार के बीच एक अनुबंध है – नागरिक पैसे देगा और बदले में सरकार उसे अच्छी सड़क सुविधा प्रदान करेगी। यदि सुविधा नहीं मिली, तो टोल भी नहीं।