शीर्षक: झूठे वैवाहिक मुकदमों पर सख्त रुख: इलाहाबाद हाईकोर्ट का परिवार कल्याण समिति मॉडल
भूमिका
भारत में वैवाहिक विवादों को लेकर अक्सर देखा गया है कि पति और उसके परिवार को झूठे मुकदमों में फंसा दिया जाता है। दहेज उत्पीड़न (IPC 498A), हत्या के प्रयास (IPC 307) और यहां तक कि बलात्कार (IPC 376) जैसे गंभीर आरोपों का दुरुपयोग कर वैवाहिक रिश्तों को आपराधिक मुकदमों में तब्दील कर दिया जाता है। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लिया गया हालिया निर्णय एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि परिवार कल्याण समिति (Family Welfare Committee – FWC) के प्रयासों से पति-पत्नी के बीच समझौता हो जाता है, तो जिला एवं सत्र न्यायाधीश तथा उनके द्वारा नियुक्त अन्य वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी मामले का निपटारा करने और यहां तक कि आपराधिक मुकदमे बंद करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
मामले की पृष्ठभूमि
हाईकोर्ट के समक्ष एक ऐसा प्रकरण आया जिसमें महिला ने अपने पति और ससुर पर IPC की धारा 498A, 307 और 376 जैसी गंभीर धाराओं के तहत फर्जी मुकदमे दायर किए। फलस्वरूप पति को 109 दिन और उसके पिता को 103 दिन जेल में रहना पड़ा। जांच और साक्ष्यों के अभाव में यह साफ हुआ कि आरोप निराधार थे।
इस मामले में अदालत ने दोनों पक्षों के बीच तलाक को स्वीकार कर लिया और निर्देश दिए कि भविष्य में इस तरह के मामलों में समझौता होने पर मामले को रद्द किया जा सकता है।
परिवार कल्याण समिति (FWC) की स्थापना और कार्य प्रणाली
हाईकोर्ट ने FWC के गठन, उद्देश्य और कार्यप्रणाली को लेकर विस्तृत दिशा-निर्देश दिए हैं:
1. समिति का गठन
- प्रत्येक जिले में एक या अधिक FWC का गठन होगा, जो जिले की जनसंख्या और भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार निर्धारित होगी।
- प्रत्येक समिति में कम से कम तीन सदस्य होंगे।
2. सदस्यता के लिए पात्र लोग
- पांच वर्ष तक की वकालत करने वाले युवा अधिवक्ता या मध्यस्थता केंद्र से जुड़ा युवा मध्यस्थ।
- एनएलयू या सरकारी लॉ कॉलेज के अंतिम वर्ष के मेधावी छात्र।
- सामाजिक कार्यकर्ता जिसका रिकॉर्ड स्वच्छ हो।
- जिले में या निकटवर्ती क्षेत्र में रहने वाले सेवानिवृत्त न्यायाधीश, जो समय दे सकें।
3. कार्यप्रणाली
- जब IPC की धारा 498A या संबंधित धाराओं में शिकायत दर्ज होती है, तो दो महीने की कूलिंग अवधि के लिए पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करेगी।
- शिकायत तुरंत FWC को भेज दी जाएगी, जो दोनों पक्षों से व्यक्तिगत बातचीत कर समझौता कराने की कोशिश करेगी।
- बातचीत में सहायता के लिए चार वरिष्ठ बुजुर्गों को भी शामिल किया जाएगा।
- FWC दो महीने के भीतर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को भेजेगी, जो आगे की कार्रवाई करेंगे।
FWC से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण निर्देश
- FWC केवल ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करेगी जिनमें 10 वर्ष से कम की सजा का प्रावधान हो।
- समिति के सदस्य गवाह के रूप में अदालत में नहीं बुलाए जा सकेंगे, जिससे उनकी निष्पक्षता बनी रहे।
- समिति के कार्यों की निगरानी और समीक्षा जिला एवं सत्र न्यायाधीश या पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश द्वारा की जाएगी।
महत्व और प्रभाव
इस निर्णय से निम्नलिखित प्रभाव पड़ने की संभावना है:
- झूठे मुकदमों पर अंकुश लगेगा और निर्दोष व्यक्तियों को मानसिक, सामाजिक और आर्थिक क्षति से राहत मिलेगी।
- वैवाहिक विवादों को पारिवारिक और सामंजस्यपूर्ण तरीके से सुलझाने को बढ़ावा मिलेगा।
- न्यायालयों पर अनावश्यक मुकदमों का भार कम होगा।
- पुलिस और न्यायिक प्रणाली में न्यायिक संतुलन और मानवीय दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल झूठे मुकदमों से त्रस्त लोगों को राहत देने वाला है, बल्कि यह भारतीय न्याय व्यवस्था में एक सुधारात्मक कदम के रूप में देखा जा सकता है। परिवार कल्याण समिति के मॉडल को यदि पूरे देश में लागू किया जाए तो वैवाहिक विवादों की जटिलता और उनके दुष्परिणामों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
संदेश: न्यायिक प्रणाली का उद्देश्य केवल सजा देना नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और मानवता को भी संरक्षण देना है – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस निर्णय से यही सिद्ध किया है।