लेख शीर्षक:
“झूठे आरोप और मानसिक प्रताड़ना वैवाहिक क्रूरता है: सुप्रीम कोर्ट द्वारा तलाक की स्वीकृति”
लेख:
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि पति या पत्नी एक-दूसरे पर बार-बार झूठे आरोप लगाकर मानसिक उत्पीड़न करते हैं, तो यह आचरण वैवाहिक क्रूरता (Marital Cruelty) की श्रेणी में आता है, जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के अंतर्गत तलाक का वैध आधार बनता है।
🔍 मामला संक्षेप में:
एक पति ने अपनी पत्नी के विरुद्ध तलाक की याचिका दायर की थी। आरोप थे कि:
- पत्नी लगातार उन पर झूठे और गंभीर आरोप लगाती रही है।
- वह उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है।
- उनके विरुद्ध सामाजिक स्तर पर बदनामी फैलाती है।
- घर के माहौल को विषैला और असहनीय बना चुकी है।
🏛️ निचली अदालत का फैसला:
निचली अदालत ने इन आरोपों को तलाक के लिए पर्याप्त नहीं माना और तलाक की याचिका खारिज कर दी।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि:
“वैवाहिक जीवन का उद्देश्य शांति, प्रेम, सहयोग और सम्मान पर आधारित होता है, न कि क्रूरता, झूठे आरोप और मानसिक उत्पीड़न पर।”
कोर्ट ने आगे कहा:
- यदि जीवनसाथी द्वारा किया गया व्यवहार दूसरे को लगातार तनाव, शर्मिंदगी और सामाजिक कष्ट दे रहा है, तो यह वैवाहिक क्रूरता है।
- जब विवाह एक नरक में बदल जाए, और साथ रहना मात्र औपचारिकता और पीड़ा बन जाए, तो उसे जबरन जीवित रखने का कोई औचित्य नहीं।
- कोर्ट ने यह भी कहा:
“ऐसे रिश्ते को जबरन ज़िंदा रखना, न्याय के साथ अन्याय है।”
📜 निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पति के आरोपों को पर्याप्त रूप से सिद्ध किया गया है और पत्नी का व्यवहार क्रूरता की श्रेणी में आता है। अतः:
✅ तलाक को मंज़ूरी दी गई।
📚 कानूनी प्रावधान:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
- धारा 13(1)(ia) – यदि जीवनसाथी द्वारा किया गया व्यवहार क्रूरता का रूप ले ले, तो तलाक का आधार बनता है।
🔎 निष्कर्ष:
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण सिद्धांत दोहराया कि:
“विवाह एक पवित्र बंधन है, लेकिन जब वह लगातार झूठ, अपमान और मानसिक उत्पीड़न में बदल जाए, तो उसे समाप्त करना ही न्याय का सही रूप है।”
यह निर्णय ऐसे कई मामलों के लिए मिसाल बनता है जहाँ एक जीवनसाथी अन्य को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रताड़ित कर रहा हो, भले ही वह शारीरिक हिंसा में प्रकट न हो।