“झूठी एफआईआर के बढ़ते मामले: इलाहाबाद हाईकोर्ट की चेतावनी – कानून के दुरुपयोग पर न्यायिक सजगता आवश्यक”

“झूठी एफआईआर के बढ़ते मामले: इलाहाबाद हाईकोर्ट की चेतावनी – कानून के दुरुपयोग पर न्यायिक सजगता आवश्यक”


भूमिका:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक गंभीर सामाजिक और न्यायिक चिंता की ओर इशारा करते हुए कहा है कि लंबे समय तक सहमति से संबंधों के बाद लड़कियों या महिलाओं द्वारा झूठी प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराना एक चिंताजनक प्रवृत्ति बनती जा रही है। अदालत ने साफ किया कि कानून द्वारा महिलाओं को दी गई सुरक्षा का दुरुपयोग हो रहा है, जिससे पुरुष वर्ग के अधिकारों का हनन हो रहा है।


प्रकरण का संक्षिप्त विवरण:

  • मामला: ओम नारायण पांडेय बनाम राज्य सरकार
  • अदालत: इलाहाबाद हाईकोर्ट
  • न्यायाधीश: न्यायमूर्ति सिद्धार्थ
  • आरोप: नाबालिग से विवाह का झूठा वादा और शारीरिक संबंध, पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर
  • पक्ष: याची ने कहा कि दोनों के बीच सहमति से संबंध थे।

अदालत की प्रमुख टिप्पणियाँ:

  1. कानून का दुरुपयोग:
    • कोर्ट ने कहा कि महिलाएं या लड़कियां, कानूनी सुरक्षा के आधार पर अब पुरुषों को आसानी से फंसा लेती हैं
    • ऐसे कई मामले आ रहे हैं जिनमें लंबे समय तक लिव-इन या सहमति से संबंध के बाद झूठे आरोप लगाए जाते हैं।
  2. एफआईआर और मजिस्ट्रेट के बयान में विरोधाभास:
    • कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पीड़िता का बयान एफआईआर के आरोपों का समर्थन नहीं करता, जिससे मामला झूठा प्रतीत होता है।
  3. न्यायिक अधिकारियों को चेतावनी:
    • अदालतों और न्यायिक अधिकारियों को सतर्क और जमीनी हकीकत से जुड़े रहने की सलाह दी गई।
    • कहा गया कि न्यायाधीशों को ऐसे मामलों में कानून के वास्तविक उद्देश्य और सामाजिक संरचना को ध्यान में रखकर निर्णय करना चाहिए।
  4. सोशल मीडिया और खुलेपन की संस्कृति:
    • कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया, टीवी और फिल्मों ने एक ऐसी संस्कृति जन्म दी है, जहां युवा बिना सामाजिक जिम्मेदारी के संबंधों में प्रवेश कर रहे हैं।
    • लेकिन जब मामला बिगड़ता है तो कानून का सहारा लेकर पुरुषों को झूठे केस में फंसाया जाता है।
  5. एफआईआर दर्ज करने की प्रणाली में दोष:
    • एफआईआर विशेषज्ञों या मुंशी द्वारा तैयार की जाती है, जो कानूनी भाषा में ऐसे आरोप लिखते हैं जिससे आरोपी को जमानत मिलना मुश्किल हो जाए।
    • थाना प्रभारी को स्वयं रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए, जिससे झूठे मामलों में कमी आ सके।
  6. कानून की गतिशीलता:
    • कोर्ट ने कहा कि कानून एक गतिशील अवधारणा है, और समय-समय पर उसकी समीक्षा आवश्यक है
    • वर्तमान सामाजिक परिवेश में लिव-इन रिलेशनशिप, सहमति से संबंध और झूठे आरोपों की स्थितियों पर पुनर्विचार अनिवार्य है।

न्यायिक सलाह और प्रभाव:

  • न्यायालय ने साफ संकेत दिया कि पुरुषों के अधिकारों की रक्षा भी उतनी ही आवश्यक है जितनी महिलाओं की।
  • झूठी एफआईआर से केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र पर असर पड़ता है।
  • जमानत मामलों में न्यायालयों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

संबंधित प्रकरण – अनंत कुमार मिश्र का मामला:

  • कोर्ट ने पूर्व मंत्री अनंत कुमार मिश्र को सीबीआई के प्रत्युत्तर पर हलफनामा दाखिल करने का समय दिया है।
  • एनआरएचएम घोटाले से जुड़ी दो मुकदमों को एक साथ चलाने की याचिका पर सुनवाई फिलहाल टाल दी गई है।
  • मामला सीबीआई विशेष अदालत, गाज़ियाबाद में लंबित है।

निष्कर्ष:

यह निर्णय और टिप्पणियाँ केवल एक मामले तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह समाज में बढ़ती न्यायिक असंतुलन और कानून के दुरुपयोग पर एक बड़ा संकेत देती हैं। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

“कानून का उद्देश्य संरक्षण है, शस्त्र नहीं। यदि यह हथियार बन जाए, तो न्याय व्यवस्था असंतुलित हो जाती है।”

➡️ समय आ गया है जब झूठी एफआईआर की वैधता की जांच, मुकदमेबाज़ी में संतुलन और कानून की नवीन सामाजिक व्याख्या सुनिश्चित की जाए।