जैव संसाधनों के व्यापार और उनके लाभों के समान वितरण (Access and Benefit Sharing – ABS) की अवधारणा पर प्रकाश डालिए। भारतीय जैव विविधता कानून में इसका क्या महत्व है?

जैव संसाधनों के व्यापार और उनके लाभों के समान वितरण (Access and Benefit Sharing – ABS) की अवधारणा जैव विविधता के संरक्षण, उसके सतत उपयोग, और जैव संसाधनों से प्राप्त लाभों के न्यायसंगत और समान वितरण से संबंधित है। यह अवधारणा विशेष रूप से ‘नागोया प्रोटोकॉल’ (Nagoya Protocol) से प्रेरित है, जो कि संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (CBD – Convention on Biological Diversity) के अंतर्गत 2010 में अपनाया गया था।

ABS की मूल अवधारणा:

  1. Access (पहुँच): जैविक संसाधनों जैसे पौधे, जीव-जंतु, सूक्ष्मजीव आदि की वैज्ञानिक, वाणिज्यिक या अनुसंधान हेतु पहुँच को विनियमित करना।
  2. Benefit Sharing (लाभों का वितरण): इन संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों (जैसे औषधीय खोज, कृषि विकास आदि) को स्थानीय समुदायों, पारंपरिक ज्ञान धारकों या राज्य के साथ न्यायसंगत और समान रूप से बाँटना।

भारतीय संदर्भ में ABS का महत्व:

भारत में “जैव विविधता अधिनियम, 2002” जैव संसाधनों की रक्षा और उनके न्यायसंगत उपयोग को सुनिश्चित करने वाला प्रमुख कानून है। इसके अंतर्गत:

1. राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA):

  • विदेशियों को भारतीय जैव संसाधनों तक पहुँच के लिए NBA से अनुमति लेनी होती है।
  • जैव संसाधनों के वाणिज्यिक उपयोग से उत्पन्न लाभों को स्थानीय समुदायों के साथ बाँटने की व्यवस्था होती है।

2. राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBB) और जैव विविधता प्रबंधन समिति (BMC):

  • स्थानीय स्तर पर जैव विविधता की निगरानी और संरक्षण की जिम्मेदारी निभाते हैं।
  • लाभ वितरण के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।

3. पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा:

  • पारंपरिक ज्ञान को बौद्धिक संपदा के रूप में मान्यता देते हुए उसका दुरुपयोग रोकने हेतु ABS व्यवस्था का उपयोग किया जाता है।

उदाहरण:

यदि कोई विदेशी कंपनी भारतीय पौधे से औषधि विकसित करती है, तो उसे भारत सरकार और उस क्षेत्र के समुदाय (जहाँ से वह पौधा प्राप्त हुआ) को लाभ का हिस्सा देना होगा। यह “प्री-एग्रीड टर्म्स (Prior Informed Consent)” और “म्यूचुअली एग्रीड टर्म्स (MAT)” के आधार पर होता है।


निष्कर्ष:

ABS जैव विविधता संरक्षण, स्थानीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा, और जैविक संसाधनों के टिकाऊ उपयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत ने इस अवधारणा को अपनाकर स्थानीय हितों और वैश्विक प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया है।

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