“जैव विविधता अधिनियम, 2002: भारत की पारिस्थितिक विरासत की रक्षा का संवैधानिक प्रयास”

शीर्षक: “जैव विविधता अधिनियम, 2002: भारत की पारिस्थितिक विरासत की रक्षा का संवैधानिक प्रयास”

भूमिका:
भारत जैव विविधता की दृष्टि से विश्व के सर्वाधिक समृद्ध देशों में से एक है, जिसमें हजारों प्रजातियों के पौधे, जीव-जंतु, सूक्ष्मजीव और समुद्री जीवन पाये जाते हैं। इन संसाधनों की रक्षा और सतत उपयोग के उद्देश्य से भारत सरकार ने ‘जैव विविधता अधिनियम, 2002’ (Biological Diversity Act, 2002) पारित किया। यह अधिनियम संयुक्त राष्ट्र के Convention on Biological Diversity (CBD), 1992 के भारत द्वारा अनुसमर्थन के पश्चात अस्तित्व में आया।


अधिनियम का उद्देश्य:
इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य जैव विविधता के संरक्षण, उसके सतत उपयोग, तथा जैविक संसाधनों से प्राप्त लाभों के न्यायसंगत बंटवारे को सुनिश्चित करना है। यह कानून पारंपरिक ज्ञान और देशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करते हुए जैविक संसाधनों के व्यापार और अनुसंधान पर नियंत्रण करता है।


प्रमुख प्रावधान:

  1. राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) – केंद्रीय स्तर पर गठित यह संस्था विदेशी संस्थाओं द्वारा जैव संसाधनों के उपयोग को नियंत्रित करती है।
  2. राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBB) – प्रत्येक राज्य में इसकी स्थापना की गई है जो स्थानीय उपयोग और अनुसंधान गतिविधियों की निगरानी करता है।
  3. स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समिति (BMC) – ग्राम पंचायत स्तर पर गठित समितियाँ स्थानीय संसाधनों का दस्तावेजीकरण करती हैं और जैव विविधता रजिस्टर तैयार करती हैं।
  4. लाभों का साझा करना (Benefit Sharing) – जो भी अनुसंधानकर्ता या कंपनी जैविक संसाधनों से लाभ प्राप्त करती है, उसे संबंधित समुदायों के साथ लाभ साझा करना होता है।

पर्यावरणीय एवं सामाजिक महत्व:
यह अधिनियम ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को अधिकार देता है कि वे अपने पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों के उपयोग पर नियंत्रण रख सकें। इससे जैव विविधता का संरक्षण तो होता ही है, साथ ही आर्थिक और सामाजिक न्याय को भी बढ़ावा मिलता है।


चुनौतियाँ:

  • अधिनियम के कार्यान्वयन में कई स्थानों पर संसाधनों की कमी देखी जाती है।
  • कई समुदायों को उनके पारंपरिक ज्ञान के लाभों से वंचित कर दिया जाता है।
  • बायो-पायरेसी (Bio-piracy) जैसे मुद्दों पर कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है।

न्यायपालिका की भूमिका:
भारतीय न्यायपालिका ने जैव विविधता के संरक्षण में कई निर्णयों द्वारा मार्गदर्शन किया है। विशेष रूप से “Godavarman Case” और “Niyamgiri Hills Case” में आदिवासी अधिकारों और पारिस्थितिकी के संरक्षण को सर्वोच्चता दी गई।


निष्कर्ष:
जैव विविधता अधिनियम, 2002 भारत की जैविक विरासत को सुरक्षित रखने का एक सशक्त कानूनी साधन है। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करता है, बल्कि देशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा भी करता है। हालांकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सरकार, न्यायपालिका और आम नागरिकों को मिलकर प्रयास करने होंगे, तभी हम अपनी जैव विविधता को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रख पाएंगे।