जैव विविधता अधिनियम, 2002 के अंतर्गत राज्य जैव विविधता बोर्ड (State Biodiversity Boards) की भूमिका एवं शक्तियों की चर्चा
परिचय
भारत जैव विविधता के मामले में विश्व के समृद्ध देशों में से एक है। इस प्राकृतिक संपदा की रक्षा और उचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने Biological Diversity Act, 2002 पारित किया। इस अधिनियम के अंतर्गत जैव विविधता के संरक्षण और उसके न्यायसंगत उपयोग के लिए तीन स्तरीय संरचना स्थापित की गई:
- राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) – राष्ट्रीय स्तर पर
- राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBBs) – राज्य स्तर पर
- जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (BMCs) – स्थानीय स्तर पर
इनमें से राज्य जैव विविधता बोर्ड (State Biodiversity Boards – SBBs), अधिनियम के कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं जो राज्य स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण, प्रलेखन और सतत उपयोग से संबंधित कार्यों को देखती हैं।
SBBs की स्थापना और कानूनी स्थिति
राज्य जैव विविधता बोर्ड की स्थापना जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 22 के अंतर्गत की जाती है। प्रत्येक राज्य सरकार एक बोर्ड गठित करती है जिसमें:
- एक अध्यक्ष (राज्य सरकार द्वारा नामित)
- विशेषज्ञ सदस्य (जैवविज्ञान, पारिस्थितिकी, पर्यावरण, पारंपरिक ज्ञान आदि के क्षेत्र में)
- सरकारी अधिकारी सदस्य
राज्य जैव विविधता बोर्ड की भूमिका और कार्य
- जैव संसाधनों का विनियमन (Regulation of Access)
राज्य के भीतर कार्यरत भारतीय नागरिक, संस्थाएं, या कंपनियाँ यदि जैव संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग करना चाहें, तो उन्हें SBB से पूर्व अनुमति लेनी होती है। - अनुमोदन और प्रतिबंध (Approval & Restrictions)
SBB यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी गतिविधि जैव विविधता के लिए हानिकारक न हो। यदि कोई प्रस्ताव जैविक प्रणाली को नुकसान पहुँचा सकता है, तो बोर्ड उसे अस्वीकार कर सकता है। - जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) का मार्गदर्शन और समन्वय
SBB स्थानीय निकायों में गठित BMCs के साथ मिलकर कार्य करता है। यह उन्हें People’s Biodiversity Registers (PBRs) तैयार करने में मार्गदर्शन देता है और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। - लाभों के न्यायसंगत वितरण की व्यवस्था (Benefit Sharing Mechanism)
जब राज्य की जैव संपदा का वाणिज्यिक उपयोग किया जाता है, तो उससे प्राप्त लाभों को स्थानीय समुदायों के साथ साझा करने की व्यवस्था SBB सुनिश्चित करता है। - परामर्शदाता की भूमिका (Advisory Role)
SBB राज्य सरकार को नीति निर्माण में सलाह देता है कि कैसे जैव विविधता का संरक्षण हो, किस क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया जाए, और किन गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। - प्रचार और जागरूकता (Awareness and Capacity Building)
यह बोर्ड जैव विविधता के महत्व के बारे में जन जागरूकता फैलाने, कार्यशालाएँ आयोजित करने, और शोध को प्रोत्साहन देने का भी कार्य करता है। - वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहन
बोर्ड राज्य में अनुसंधान परियोजनाओं की समीक्षा करता है और सुनिश्चित करता है कि जैव विविधता से जुड़े अनुसंधान नियमानुसार हों।
राज्य जैव विविधता बोर्ड की शक्तियाँ (Powers of SBBs)
- अनुज्ञा देने और मना करने की शक्ति – राज्य के भीतर जैव संसाधनों के उपयोग के लिए अनुमोदन देना या उसे मना करना।
- जानकारी एकत्र करना और निगरानी करना – राज्य के भीतर जैव संसाधनों के उपयोग की निगरानी करना और जानकारी एकत्र करना।
- दंडात्मक कार्रवाई की सिफारिश – अधिनियम के उल्लंघन पर राज्य सरकार को दंडात्मक कदम उठाने की सिफारिश करना।
- पंजीकरण और दस्तावेजीकरण की शक्ति – स्थानीय स्तर पर जैव संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान का रिकॉर्ड रखने की प्रक्रिया को लागू करना।
महत्त्वपूर्ण योगदान
- SBBs ने भारत के अनेक राज्यों में People’s Biodiversity Registers (PBRs) तैयार करवाए हैं।
- स्थानीय जैव विविधता को पहचानने और संरक्षित क्षेत्र घोषित करने में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
- जैव संसाधनों पर समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने की प्रक्रिया को गति दी है।
चुनौतियाँ
- संसाधनों और विशेषज्ञों की कमी
- स्थानीय निकायों के साथ समन्वय में कठिनाई
- लाभ-साझेदारी तंत्र का प्रभावी क्रियान्वयन
- जैव चोरी (Biopiracy) की निगरानी में कठिनाई
निष्कर्ष
राज्य जैव विविधता बोर्ड जैव विविधता अधिनियम, 2002 की भावना के अनुरूप राज्य स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण, प्रबंधन और सतत उपयोग का प्रमुख आधार हैं। ये बोर्ड स्थानीय समुदायों को शामिल करके जैव विविधता को समृद्ध रखने में सहयोग करते हैं। हालांकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, लेकिन यदि इनकी क्षमताओं को मजबूत किया जाए, तो ये भारत की जैव विविधता को सुरक्षित रखने में एक अत्यंत प्रभावशाली इकाई सिद्ध हो सकते हैं।