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जीएसटी रिटर्न्स की गोपनीयता और आरटीआई अधिनियम की सीमाएँ : बॉम्बे हाई कोर्ट

बॉम्बे हाई कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: जीएसटी रिटर्न्स की गोपनीयता और आरटीआई अधिनियम की सीमाएँ

प्रस्तावना

सूचना का अधिकार (Right to Information – RTI) अधिनियम, 2005, भारत में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने वाला एक महत्वपूर्ण कानून है। इसके माध्यम से नागरिक सरकारी तंत्र से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जिससे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को नियंत्रित किया जा सके। हालांकि, सभी सूचनाओं का खुलासा नहीं किया जा सकता; कुछ सूचनाएँ संवेदनशील और गोपनीय मानी जाती हैं। इसी क्रम में, 14 अक्टूबर 2025 को बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया कि कंपनियों के जीएसटी रिटर्न्स (Goods and Services Tax Returns) को RTI अधिनियम के तहत सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति अरुण पेडनेकर ने अपने निर्णय में जीएसटी अधिनियम की धारा 158(1) और RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि संवेदनशील कर संबंधी दस्तावेज़ों की गोपनीयता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। यह निर्णय केवल करदाता कंपनियों के हित में नहीं, बल्कि व्यापक अर्थव्यवस्था और कारोबारी विश्वास की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है।


मामले का विवरण

इस मामले में आदर्श गौतम पिंपरे नामक याचिकाकर्ता ने लातूर जिले के उदगीर स्थित छह कंपनियों के जीएसटी रिटर्न्स की जानकारी प्राप्त करने के लिए RTI आवेदन दायर किया था। याचिकाकर्ता का दावा था कि इन कंपनियों ने सरकारी टेंडरों में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की है, और इस जानकारी के माध्यम से आरोपों की सत्यता की जांच की जा सकेगी।

RTI आवेदन के बाद, सूचना अधिकारी ने इस आवेदन को तीसरे पक्ष की जानकारी मानते हुए RTI अधिनियम की धारा 11 के तहत संबंधित कंपनियों को नोटिस जारी किया। कंपनियों ने आपत्ति जताई और सूचना अधिकारी ने अंततः जानकारी प्रदान करने से इंकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने सूचना अधिकारी के इस निर्णय के खिलाफ अपील की, लेकिन यह अपील भी असफल रही। इसके पश्चात मामला हाई कोर्ट पहुंचा।

याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क था कि भ्रष्टाचार और सरकारी टेंडर में अनियमितताओं की जांच के लिए सार्वजनिक हित में इस जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए। दूसरी ओर, कंपनियों का तर्क था कि उनके जीएसटी रिटर्न्स संवेदनशील व्यावसायिक जानकारी हैं और इसका खुलासा उनके व्यापारिक हितों और गोपनीयता के अधिकार का हनन करेगा।


न्यायालय का निर्णय

बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया:

1. जीएसटी अधिनियम की धारा 158(1) की व्याख्या

जीएसटी अधिनियम की धारा 158(1) स्पष्ट रूप से कहती है कि जीएसटी रिटर्न्स, बहीखाते और अन्य दस्तावेज़ों की जानकारी तीसरे पक्ष को नहीं दी जा सकती। यह गोपनीयता केवल करदाता की सुरक्षा और वित्तीय जानकारी के दुरुपयोग को रोकने के लिए है।

न्यायालय ने कहा कि RTI अधिनियम के अनुरोधों के बावजूद, यह विशेष कानून (जीएसटी अधिनियम) प्राथमिकता रखता है। केवल धारा 158(3) में वर्णित विशेष परिस्थितियों में ही जानकारी साझा की जा सकती है, जैसे कि न्यायालय के आदेश या कराधान से संबंधित अन्य कानूनी जांच।


2. RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j)

धारा 8(1)(j) किसी भी व्यक्तिगत या संवेदनशील जानकारी के गोपनीयता अधिकार की रक्षा करती है। इसका खुलासा केवल तब किया जा सकता है जब सार्वजनिक हित में ठोस और स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत किए जाएँ।

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए धोखाधड़ी के आरोप साक्ष्य विहीन और असंगत थे। इसलिए, सार्वजनिक हित के नाम पर जीएसटी रिटर्न्स को साझा करना उचित नहीं माना गया।

यह निर्णय RTI अधिनियम के उद्देश्य और सीमा को भी स्पष्ट करता है: RTI का दुरुपयोग संवेदनशील व्यावसायिक जानकारी प्राप्त करने के लिए नहीं किया जा सकता।


3. विशेष कानून की प्राथमिकता

न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि जब कोई विशेष कानून (जैसे जीएसटी अधिनियम) और सामान्य कानून (जैसे RTI अधिनियम) में टकराव हो, तो विशेष कानून को प्राथमिकता दी जाती है।

यह कानूनी सिद्धांत व्यापक रूप से अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में भी लागू होता है, जैसे बैंकिंग गोपनीयता, चिकित्सा रिकॉर्ड और कराधान। विशेष कानून का उद्देश्य किसी विशिष्ट क्षेत्र में गोपनीयता बनाए रखना होता है, और यह सार्वजनिक हित की सामान्य धारा से ऊपर होता है।


4. न्यायालय का तात्त्विक दृष्टिकोण

न्यायालय ने निर्णय में यह भी कहा कि RTI अधिनियम के तहत किसी भी जानकारी का खुलासा सावधानीपूर्वक और जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए।

  • यदि बिना ठोस प्रमाण के संवेदनशील जानकारी साझा की जाती है, तो यह व्यापारिक विश्वास और वित्तीय गोपनीयता को नुकसान पहुंचा सकती है।
  • न्यायालय ने कहा कि RTI अधिनियम का उद्देश्य केवल पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, न कि व्यावसायिक या करदाता की गोपनीय जानकारी का सार्वजनिक दुरुपयोग।

निर्णय का महत्व

यह निर्णय कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है:

  1. व्यावसायिक गोपनीयता की सुरक्षा: जीएसटी रिटर्न्स जैसी संवेदनशील जानकारी केवल वैध और कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से ही साझा की जा सकती है।
  2. RTI अधिनियम का सीमित दायरा: RTI का दुरुपयोग किसी कंपनी की गोपनीय जानकारी प्राप्त करने के लिए नहीं किया जा सकता।
  3. विशेष कानून का महत्व: विशेष कानून, जैसे जीएसटी अधिनियम, सामान्य कानूनों पर प्राथमिकता रखते हैं।
  4. नागरिक और सरकारी हित का संतुलन: न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि पारदर्शिता और गोपनीयता दोनों का संतुलन बना रहे।

यह निर्णय व्यापारिक समुदाय और करदाताओं के लिए एक सकारात्मक संकेत है कि उनकी वित्तीय जानकारी सुरक्षित है और बिना उचित कानूनी आधार के इसका खुलासा नहीं किया जाएगा।


निष्कर्ष

बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि जीएसटी रिटर्न्स जैसी संवेदनशील जानकारी की गोपनीयता बनाए रखना आवश्यक है। RTI अधिनियम के तहत जानकारी तभी साझा की जा सकती है जब सार्वजनिक हित में ठोस और प्रमाणित साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएँ।

यह निर्णय न केवल RTI अधिनियम और जीएसटी अधिनियम के बीच संतुलन स्थापित करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि सूचना के अधिकार का दुरुपयोग न हो। न्यायालय ने व्यावसायिक गोपनीयता, करदाता की सुरक्षा और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

इस निर्णय से स्पष्ट हो गया कि:

  • संवेदनशील कर संबंधी जानकारी की सुरक्षा सर्वोपरि है।
  • RTI अधिनियम का प्रयोग केवल पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है।
  • बिना ठोस साक्ष्य के किसी भी तीसरे पक्ष की जानकारी साझा करना न्यायालय के दृष्टिकोण में अनुचित है।

इस प्रकार, यह निर्णय भारत में सूचना अधिकार और व्यावसायिक गोपनीयता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बन गया है।