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जानबूझकर संबंध बनाने वाली शिक्षित महिला को नहीं माना जा सकता शोषित: दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय

जानबूझकर संबंध बनाने वाली शिक्षित महिला को नहीं माना जा सकता शोषित: दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण जेंडर और यौन अपराध से संबंधित मामला में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि एक शिक्षित और स्वतंत्र महिला, जो जानबूझकर किसी विवाहित पुरुष के साथ संबंध बनाए रखती है, उसे कानूनन शोषित नहीं माना जा सकता। यह निर्णय यौन अपराध कानूनों और आपराधिक न्याय प्रणाली में असंगत दुष्कर्म आरोपों के बढ़ते बोझ पर ध्यान केंद्रित करता है।

इस मामले में एक व्यक्ति के खिलाफ दुष्कर्म, धोखाधड़ी और शादी का झूठा वादा करके यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया था। याचिका में कहा गया था कि आरोपी ने शादी का झूठा वादा कर महिला के साथ यौन संबंध बनाए, और बाद में उसे धोखा दिया। हालांकि, अदालत ने ध्यान दिया कि महिला ने जानबूझकर और स्वेच्छा से संबंध बनाए रखे, और इस आधार पर उसे शोषित नहीं माना जा सकता।

फैसले का विवरण और न्यायालय की टिप्पणी

न्यायमूर्ति डॉ. स्वर्ण कांता शर्मा ने अपने 3 सितंबर के फैसले में कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली पर ऐसे मामलों का भारी बोझ बढ़ रहा है, जहां लंबे समय तक सहमति से चल रहे रिश्तों के बाद, रिश्ता असफल होने पर दुष्कर्म और धोखाधड़ी के आरोप लगाए जाते हैं।

कोर्ट ने कहा कि:

  • वयस्क लोग स्वेच्छा से यौन संबंध बनाते हैं, और रिश्तों की विफलता किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अपराध का प्रमाण नहीं बन सकती।
  • हर असफल रिश्ते को बलात्कार के लिए आपराधिक मुकदमे में बदलना संवैधानिक न्याय के खिलाफ होगा।
  • यह यौन अपराध कानूनों के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा, जो वास्तविक बलात्कार और उत्पीड़न के मामलों की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि शिक्षित और स्वतंत्र महिलाओं के मामले में यह देखना आवश्यक है कि क्या वे वास्तविक रूप से शोषित हुई हैं या जानबूझकर संबंध में शामिल हुई हैं।

सहमति और यौन अपराध कानून

भारत में यौन अपराध कानून (IPC Sections 375 और 376) का उद्देश्य बलात्कार और यौन शोषण के मामलों में न्याय सुनिश्चित करना है। हालांकि, अदालत ने कहा कि:

  1. सहमति का तत्व महत्वपूर्ण है: यदि महिला स्वेच्छा से और समझदारी से संबंध में शामिल होती है, तो उसे शोषित मानना उचित नहीं।
  2. लंबे समय तक संबंध: लंबे समय तक चले संबंध के बाद, यदि रिश्ता टूटता है, तो किसी भी व्यक्ति को अपराधी मानना गलत होगा।
  3. झूठा विवाह वादा: केवल शादी के झूठे वादे के आधार पर सिर्फ यौन संबंध होने पर दुष्कर्म का आरोप लगाना, कानून और न्याय की भावना के खिलाफ है।

कोर्ट ने क्यों रद्द की प्राथमिकी?

कोर्ट ने प्राथमिकी रद्द करने के पीछे कई तर्क दिए:

  • स्वेच्छा और स्वतंत्रता: महिला ने जानबूझकर और स्वेच्छा से यौन संबंध बनाए।
  • आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझ: ऐसे मामलों में मुकदमे चलाने से न्यायपालिका पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है, और वास्तविक बलात्कार पीड़ितों के मामलों की सुनवाई में देरी होती है।
  • कानून के उद्देश्य का पालन: यौन अपराध कानून का उद्देश्य वास्तविक बलात्कार और शोषण के मामलों में सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करना है, न कि असफल व्यक्तिगत रिश्तों को आपराधिक बनाना।

सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण

इस निर्णय का समाज और कानून पर गहरा प्रभाव पड़ेगा:

  1. असली बलात्कार और उत्पीड़न के मामलों की सुरक्षा: अदालत ने सुनिश्चित किया कि कानून केवल वास्तविक शोषण और बलात्कार के मामलों में लागू हो।
  2. आपराधिक मामलों में संतुलन: कोर्ट ने लंबे समय तक सहमति से संबंध बनाने वाले मामलों में उचित संतुलन बनाए रखा।
  3. महिला स्वतंत्रता और जिम्मेदारी: अदालत ने यह भी संदेश दिया कि स्वतंत्र और शिक्षित महिलाएं अपने निर्णय के लिए जिम्मेदार हैं, और केवल रिश्ते टूटने के कारण किसी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता।

लंबे समय तक रिश्तों में सहमति का महत्व

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि:

  • लंबे समय तक संबंध बनाए रखना यह दिखाता है कि महिला ने जानबूझकर और सहमति से संबंध बनाए रखे।
  • ऐसे मामलों में भावनात्मक या व्यक्तिगत मतभेदों के कारण आरोप लगाना, न्याय के दृष्टिकोण से उचित नहीं।
  • न्यायपालिका का ध्यान सच्चे शोषण और उत्पीड़न की घटनाओं पर होना चाहिए।

कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भारत में यौन अपराध कानूनों की व्याख्या में नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

  • विशेषज्ञ कहते हैं कि कानून का उद्देश्य वास्तविक बलात्कार पीड़ितों की सुरक्षा है, न कि असफल निजी रिश्तों की वजह से मुकदमा चलाना।
  • यह फैसला महिलाओं की स्वतंत्रता और स्वेच्छा को सम्मान देने का संदेश भी देता है।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यौन संबंधों में सहमति और जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

भविष्य की दिशा

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला भविष्य में यौन अपराधों के मामलों की सुनवाई में दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करेगा। अदालत ने यह संदेश दिया कि:

  • स्वेच्छा से यौन संबंध बनाए रखने वाली महिलाओं को शोषित नहीं माना जाएगा।
  • लंबे समय तक सहमति से संबंध बनाने वाले मामलों में प्राथमिकी रद्द की जा सकती है।
  • न्यायपालिका केवल वास्तविक बलात्कार और उत्पीड़न के मामलों पर ध्यान केंद्रित करेगी।

समाज और कानून के लिए संदेश

यह निर्णय समाज और कानूनी दृष्टिकोण दोनों के लिए महत्वपूर्ण है:

  1. कानूनी स्पष्टता: अदालत ने स्पष्ट किया कि सहमति, स्वतंत्रता और स्वेच्छा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
  2. असली शोषण पर ध्यान: न्यायपालिका का ध्यान वास्तविक उत्पीड़न और बलात्कार पर होगा।
  3. समाज में चेतना: यह निर्णय समाज को स्वतंत्र और जिम्मेदार निर्णय लेने वाली महिलाओं का सम्मान करने का संदेश देता है।

निष्कर्ष

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला यौन अपराध कानूनों की व्याख्या में ऐतिहासिक और संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि:

  • शिक्षित और स्वतंत्र महिलाएं अपने निर्णयों के लिए जिम्मेदार हैं।
  • लंबे समय तक सहमति से संबंध बनाए रखने वाले मामलों में दुष्कर्म के आरोप गलत हैं।
  • कानून का उद्देश्य वास्तविक बलात्कार और उत्पीड़न की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

इस फैसले से न्यायपालिका ने यह संदेश दिया कि कानून केवल सच्चे शोषण और बलात्कार के मामलों में लागू होगा, न कि असफल व्यक्तिगत रिश्तों के कारण। यह निर्णय कानून, समाज और महिला स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


  1. सवाल: दिल्ली हाईकोर्ट ने किस मामले में फैसला सुनाया?
    उत्तर: हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ दुष्कर्म की प्राथमिकी रद्द की, जिसमें महिला ने विवाहित पुरुष के साथ जानबूझकर संबंध बनाए थे।
  2. सवाल: न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने क्या टिप्पणी की?
    उत्तर: उन्होंने कहा कि शिक्षित और स्वतंत्र महिला, जो जानबूझकर संबंध बनाए रखती है, उसे शोषित नहीं माना जा सकता।
  3. सवाल: याचिका में व्यक्ति पर कौन से आरोप थे?
    उत्तर: शादी का झूठा वादा करके यौन उत्पीड़न, धोखाधड़ी और छल करने का आरोप लगाया गया था।
  4. सवाल: अदालत ने लंबी अवधि तक सहमति से संबंध बनाए रखने वाले मामलों पर क्या कहा?
    उत्तर: ऐसे मामलों में रिश्ता टूटने पर दुष्कर्म का आरोप लगाने से आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझ बढ़ता है।
  5. सवाल: अदालत ने हर असफल रिश्ते को आपराधिक मुकदमे में बदलने के बारे में क्या कहा?
    उत्तर: ऐसा करना संवैधानिक न्याय और यौन अपराध कानूनों के उद्देश्य के खिलाफ होगा।
  6. सवाल: इस फैसले का उद्देश्य क्या है?
    उत्तर: न्यायपालिका का उद्देश्य वास्तविक बलात्कार और शोषण के मामलों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  7. सवाल: कोर्ट ने सहमति के महत्व पर क्या जोर दिया?
    उत्तर: कोर्ट ने कहा कि महिला की स्वेच्छा और समझदारी से संबंध में शामिल होना, शोषण के आरोप को अस्वीकार करने का आधार है।
  8. सवाल: लंबी अवधि के संबंधों और आपराधिक मुकदमे में क्या संबंध है?
    उत्तर: यदि संबंध स्वेच्छा से लंबे समय तक चले, तो टूटने पर मुकदमा चलाना न्याय के खिलाफ होगा।
  9. सवाल: इस फैसले से समाज को क्या संदेश गया?
    उत्तर: यह महिलाओं की स्वतंत्रता, निर्णय की जिम्मेदारी और वास्तविक शोषण पर ध्यान देने का संदेश देता है।
  10. सवाल: इस फैसले का कानूनी महत्व क्या है?
    उत्तर: यह फैसला यौन अपराध कानूनों की व्याख्या में संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है और कानून केवल वास्तविक शोषण मामलों में लागू होगा