जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए तथा इसके उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 1: जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए तथा इसके उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

परिचय:

जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 भारत में जल प्रदूषण को रोकने और जल स्रोतों की गुणवत्ता को बनाए रखने हेतु एक महत्वपूर्ण विधिक प्रावधान है। यह अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य जल स्रोतों को प्रदूषण से बचाना तथा जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध कराना है। यह अधिनियम केंद्र और राज्य सरकारों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की स्थापना और संचालन की शक्ति प्रदान करता है।


अधिनियम के उद्देश्य (Objectives of the Act):

  1. जल स्रोतों की सुरक्षा: इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य नदियों, झीलों, जलाशयों, भूमिगत जल आदि को प्रदूषण से मुक्त रखना है।
  2. प्रदूषण की रोकथाम: किसी भी प्रकार के अपशिष्ट जल या हानिकारक रसायनों को जल स्रोतों में प्रवाहित करने पर नियंत्रण स्थापित करना।
  3. प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की स्थापना: केंद्र तथा राज्य स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का गठन कर प्रभावी नियंत्रण सुनिश्चित करना।
  4. उद्योगों पर नियंत्रण: उद्योगों द्वारा जल प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों को नियमित करना एवं उन्हें जल शोधन प्रणाली अपनाने हेतु बाध्य करना।
  5. जन स्वास्थ्य की रक्षा: स्वच्छ जल सुनिश्चित करके जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करना।

मुख्य विशेषताएँ (Key Features):

  1. जल का परिभाषा विस्तार: अधिनियम के अंतर्गत “जल” में न केवल बहता हुआ जल, बल्कि स्थायी जल, भूमिगत जल, समुद्र जल, और जलाशय आदि भी सम्मिलित हैं।
  2. प्रदूषण की परिभाषा: अधिनियम के अनुसार कोई भी ऐसा कार्य जिससे जल की भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में हानि हो और मानव जीवन, पशु या पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े, प्रदूषण कहलाता है।
  3. प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की स्थापना:
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB): पूरे देश में जल प्रदूषण की रोकथाम हेतु नीति निर्माण और समन्वय करता है।
    • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB): राज्य स्तर पर नियंत्रण, निगरानी और अनुमति प्रदान करने का कार्य करता है।
  4. उद्योगों को अनुमति लेना आवश्यक: कोई भी उद्योग या संस्था जो जल स्रोतों में अपशिष्ट डालती है, उसे राज्य बोर्ड से पूर्व अनुमति लेनी होती है।
  5. निरीक्षण और नमूना संग्रहण: बोर्ड के अधिकारी किसी भी समय निरीक्षण कर सकते हैं और जल के नमूने परीक्षण हेतु एकत्र कर सकते हैं।
  6. दंडात्मक प्रावधान: अधिनियम का उल्लंघन करने पर जुर्माना और कारावास दोनों का प्रावधान है। प्रथम दोष पर अधिकतम 3 महीने की सजा और 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  7. न्यायालय की भूमिका: इस अधिनियम के अंतर्गत विशेष न्यायालयों की स्थापना की गई है जो केवल पर्यावरणीय अपराधों की सुनवाई करेंगे।

निष्कर्ष:

जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 भारत में पर्यावरण संरक्षण हेतु एक आधारभूत कानूनी उपाय है। यह न केवल जल स्रोतों की शुद्धता बनाए रखने हेतु कारगर है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल संसाधनों के संरक्षण का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यदि इस अधिनियम का प्रभावी रूप से पालन हो, तो जल प्रदूषण की समस्या में भारी कमी लाई जा सकती है।