IndianLawNotes.com

जलवायु परिवर्तन कानून : एक व्यापक अध्ययन

जलवायु परिवर्तन कानून : एक व्यापक अध्ययन

प्रस्तावना

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) आज विश्व के सामने खड़ी सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है। यह केवल पर्यावरणीय संकट नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य और कानूनी संकट भी है। ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse Gases) के अत्यधिक उत्सर्जन, वनों की कटाई, औद्योगिकरण और शहरीकरण ने जलवायु असंतुलन को तेज कर दिया है। इस संकट से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर अनेक कानून, नीतियाँ और समझौते बनाए गए हैं। भारत जैसे विशाल देश के लिए जलवायु परिवर्तन कानूनों का महत्व और भी अधिक है क्योंकि यहाँ की अर्थव्यवस्था, कृषि, जल स्रोत और मानव जीवन पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है।


जलवायु परिवर्तन और कानून का संबंध

कानून किसी भी सामाजिक समस्या का समाधान और दिशा देने वाला साधन होता है। जब बात जलवायु परिवर्तन की हो तो कानून का कार्य केवल प्रदूषण रोकने तक सीमित नहीं रहता बल्कि यह सतत विकास (Sustainable Development), पर्यावरण न्याय (Environmental Justice) और भावी पीढ़ियों के अधिकारों की रक्षा से भी जुड़ा होता है।
जलवायु परिवर्तन कानूनों का उद्देश्य –

  1. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करना।
  2. अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
  3. प्रदूषणकारी उद्योगों पर नियंत्रण रखना।
  4. जलवायु न्याय और क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करना।
  5. अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पालन करना।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन कानून

वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई समझौते और कानून बनाए गए हैं –

  1. स्टॉकहोम सम्मेलन (1972) – पर्यावरण संरक्षण पर पहला अंतरराष्ट्रीय प्रयास।
  2. रियो सम्मेलन (1992) – इसमें सतत विकास और जलवायु परिवर्तन पर ध्यान दिया गया।
  3. क्योटो प्रोटोकॉल (1997) – विकसित देशों के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती की बाध्यता तय की गई।
  4. पेरिस समझौता (2015) – यह जलवायु परिवर्तन पर सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक समझौता है। इसमें सभी देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और 1.5 डिग्री तक सीमित करने का संकल्प लिया।
  5. ग्लासगो समझौता (COP-26, 2021) – कोयले के उपयोग में कमी, वित्तीय सहयोग और तकनीकी हस्तांतरण पर बल दिया गया।

भारत में जलवायु परिवर्तन कानून और नीतियाँ

भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई संवैधानिक प्रावधान, कानून और नीतियाँ अपनाई हैं –

(1) संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 21 – जीवन के अधिकार में स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार शामिल है।
  • अनुच्छेद 48-ए – राज्य का दायित्व है कि वह पर्यावरण और वनों की रक्षा करे।
  • अनुच्छेद 51-ए (g) – प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण की रक्षा करे।

(2) प्रमुख कानून

  1. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 – यह व्यापक कानून है जिसके तहत प्रदूषण नियंत्रण, उत्सर्जन मानक और पर्यावरणीय न्याय का प्रावधान है।
  2. वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 – वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए।
  3. जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 – जल स्रोतों को संरक्षित करने हेतु।
  4. राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 (NGT) – पर्यावरणीय विवादों और क्षतिपूर्ति से संबंधित मामलों को सुलझाने के लिए विशेष न्यायाधिकरण।
  5. ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 – ऊर्जा दक्षता और अक्षय ऊर्जा को प्रोत्साहन।

(3) नीतियाँ और योजनाएँ

  • राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन (NAPCC, 2008) – इसमें 8 राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं, जैसे कि सौर मिशन, ऊर्जा दक्षता मिशन, सतत कृषि मिशन आदि।
  • राज्य कार्य योजनाएँ – प्रत्येक राज्य ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी कार्य योजनाएँ बनाई हैं।
  • राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक वाहन नीति – स्वच्छ परिवहन को बढ़ावा।
  • राष्ट्रीय अनुकूलन कोष – जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों और समुदायों के लिए।

न्यायपालिका और जलवायु परिवर्तन

भारतीय न्यायपालिका ने भी पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं।

  • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण को जीवन के अधिकार से जोड़ा।
  • सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) – स्वच्छ पर्यावरण को मौलिक अधिकार माना गया।
  • वेल्लोर सिटीजंस वेलफेयर फोरम मामला (1996) – सतत विकास और “प्रदूषक भुगतान करे” सिद्धांत को मान्यता दी।

चुनौतियाँ

  1. कानूनों का कमजोर प्रवर्तन – कानून तो बने हैं लेकिन उनका सही पालन नहीं होता।
  2. आर्थिक विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण – औद्योगिक विकास और पर्यावरण सुरक्षा में टकराव।
  3. तकनीकी और वित्तीय संसाधनों की कमी – अक्षय ऊर्जा और स्वच्छ तकनीक में भारी निवेश की आवश्यकता।
  4. गरीबी और असमानता – जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर गरीब वर्ग पर पड़ता है।
  5. वैश्विक सहयोग की कमी – विकसित और विकासशील देशों के बीच वित्त और तकनीक को लेकर मतभेद।

समाधान और आगे की राह

  1. सख्त प्रवर्तन – पर्यावरण कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना।
  2. अक्षय ऊर्जा पर निवेश – सौर, पवन और जल विद्युत को बढ़ावा देना।
  3. हरित न्यायपालिका – NGT जैसे संस्थानों को अधिक सशक्त बनाना।
  4. जनभागीदारी – नागरिकों को जलवायु संरक्षण में शामिल करना।
  5. अंतरराष्ट्रीय सहयोग – तकनीकी हस्तांतरण, वित्तीय सहायता और साझा अनुसंधान।
  6. ग्रीन रोजगार – हरित उद्योगों में रोजगार सृजन।
  7. शिक्षा और जागरूकता – विद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर जलवायु शिक्षा को बढ़ावा।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन कानून केवल कागज पर बने नियम नहीं हैं बल्कि यह हमारे अस्तित्व और आने वाली पीढ़ियों के जीवन से जुड़े हैं। भारत ने संवैधानिक, विधिक और नीतिगत स्तर पर कई कदम उठाए हैं लेकिन इनका वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब सरकार, न्यायपालिका, उद्योग और नागरिक सभी मिलकर जिम्मेदारी निभाएँ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की भूमिका अहम है क्योंकि यह एक विकासशील देश होते हुए भी जलवायु संरक्षण में वैश्विक नेतृत्व कर सकता है। इसलिए आवश्यक है कि जलवायु परिवर्तन कानूनों को केवल औपचारिकता न मानकर इन्हें सख्ती से लागू किया जाए और सतत विकास को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया जाए।


1. जलवायु परिवर्तन कानून का उद्देश्य क्या है?

जलवायु परिवर्तन कानून का मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय असंतुलन को रोकना, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना और सतत विकास को प्रोत्साहित करना है। यह कानून उद्योगों, परिवहन और ऊर्जा क्षेत्रों पर नियंत्रण रखते हुए प्रदूषण को कम करने का प्रयास करता है। साथ ही, यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करने और जलवायु न्याय प्रदान करने का साधन है।


2. पेरिस समझौते (2015) का महत्व लिखिए।

पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन पर एक ऐतिहासिक वैश्विक समझौता है। इसमें देशों ने यह संकल्प लिया कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और संभव हो तो 1.5 डिग्री तक सीमित किया जाए। यह समझौता सभी देशों पर लागू होता है और उन्हें अपने-अपने “Nationally Determined Contributions (NDCs)” प्रस्तुत करने होते हैं। भारत ने भी इसके अंतर्गत अक्षय ऊर्जा और कार्बन कटौती के लक्ष्य तय किए हैं।


3. भारत के संविधान में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कौन-कौन से अनुच्छेद हैं?

संविधान में पर्यावरण संरक्षण हेतु कई प्रावधान हैं।

  • अनुच्छेद 21: जीवन के अधिकार में स्वच्छ पर्यावरण शामिल है।
  • अनुच्छेद 48-ए: राज्य को पर्यावरण और वनों की रक्षा करनी चाहिए।
  • अनुच्छेद 51-ए(g): नागरिकों का कर्तव्य है कि वे प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें।
    ये अनुच्छेद जलवायु परिवर्तन कानूनों के संवैधानिक आधार को मजबूत करते हैं।

4. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की भूमिका क्या है?

राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत NGT की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य पर्यावरणीय विवादों का शीघ्र निपटारा करना और पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिलाना है। यह संस्था पर्यावरण न्यायालय के रूप में कार्य करती है और प्रदूषण रोकने, पर्यावरणीय क्षति की भरपाई और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय देती है।


5. राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन (NAPCC) क्या है?

भारत सरकार ने 2008 में NAPCC शुरू की। इसके अंतर्गत आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं जैसे – सौर मिशन, ऊर्जा दक्षता मिशन, सतत कृषि मिशन, जल मिशन आदि। इन मिशनों का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना, अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना है। यह योजना भारत की जलवायु नीति की रीढ़ है।


6. “प्रदूषक भुगतान करे” सिद्धांत क्या है?

यह सिद्धांत कहता है कि जो व्यक्ति या उद्योग पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है, उसे उसकी क्षति की भरपाई करनी चाहिए। भारतीय न्यायपालिका ने कई मामलों में इस सिद्धांत को लागू किया है, जैसे – वेल्लोर सिटीजंस वेलफेयर फोरम मामला (1996)। यह सिद्धांत जलवायु परिवर्तन कानूनों में उत्तरदायित्व तय करने का महत्वपूर्ण आधार है।


7. जलवायु परिवर्तन से भारत को क्या चुनौतियाँ हैं?

भारत को जलवायु परिवर्तन से अनेक चुनौतियाँ हैं जैसे – मानसून में असंतुलन, सूखा और बाढ़ की घटनाएँ, समुद्र स्तर में वृद्धि, कृषि उत्पादन में गिरावट और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव। गरीब और हाशिए पर रहने वाले वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। साथ ही, ऊर्जा की बढ़ती मांग और औद्योगिकरण पर्यावरण संकट को और गहरा करते हैं।


8. न्यायपालिका ने जलवायु परिवर्तन मामलों में क्या भूमिका निभाई है?

भारतीय न्यायपालिका ने जलवायु संरक्षण को मौलिक अधिकारों से जोड़ा। सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) में सुप्रीम कोर्ट ने स्वच्छ पर्यावरण को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना। एम.सी. मेहता मामलों में भी प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण सुरक्षा पर कई ऐतिहासिक आदेश दिए गए। इस तरह न्यायपालिका ने जलवायु कानूनों को लागू करने में सक्रिय भूमिका निभाई है।


9. अक्षय ऊर्जा का जलवायु परिवर्तन कानूनों में क्या महत्व है?

अक्षय ऊर्जा (सौर, पवन, जल विद्युत, बायोमास) कार्बन उत्सर्जन को कम करने का सबसे प्रभावी साधन है। जलवायु परिवर्तन कानून अक्षय ऊर्जा के विकास को प्रोत्साहित करते हैं ताकि कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भरता घटे। भारत ने 2030 तक 50% बिजली अक्षय स्रोतों से उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है। यह सतत विकास और जलवायु न्याय की दिशा में बड़ा कदम है।


10. जलवायु परिवर्तन कानूनों के सफल कार्यान्वयन के लिए क्या उपाय आवश्यक हैं?

सफल कार्यान्वयन हेतु सख्त प्रवर्तन, स्वच्छ तकनीक पर निवेश, जन-जागरूकता, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और “ग्रीन रोजगार” का सृजन जरूरी है। साथ ही, राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर योजनाएँ लागू करनी चाहिए। नागरिकों की सक्रिय भागीदारी और न्यायपालिका का समर्थन भी उतना ही आवश्यक है। इससे जलवायु परिवर्तन कानून वास्तविक प्रभाव डाल पाएंगे।