जमानत पर छूटे विदेशी नागरिकों की फरारी रोकने के लिए नीति आवश्यक : सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
प्रस्तावना
भारत में न्याय व्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है—किसी भी आरोपी को न्यायालय द्वारा निष्पक्ष सुनवाई और न्याय मिलने तक “निर्दोष” मानना। इसी सिद्धांत के तहत जमानत व्यवस्था बनाई गई है, ताकि आरोपी को अनावश्यक कारावास से बचाया जा सके। लेकिन जब विदेशी नागरिक भारत में अपराध करते हैं और फिर जमानत पर छूटकर फरार हो जाते हैं, तो यह न केवल न्याय व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और अंतर्राष्ट्रीय छवि के लिए भी गंभीर खतरा बन जाता है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर ठोस नीति बनाने पर विचार करने को कहा। यह मामला एक नाइजीरियाई नागरिक एलेक्स डेविड से जुड़ा है, जिस पर धोखाधड़ी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत अपराध का आरोप था। हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद वह देश छोड़कर फरार हो गया। इस घटना ने न्यायपालिका को गहन चिंता में डाल दिया और शीर्ष अदालत ने सख्त टिप्पणी की कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नीति बनाना अनिवार्य है।
मामला : एलेक्स डेविड का फरार होना
एलेक्स डेविड नामक नाइजीरियाई नागरिक पर भारत में धोखाधड़ी और आईटी अधिनियम से जुड़े कई आरोप लगे थे। झारखंड हाईकोर्ट ने मई 2022 में उसे जमानत दे दी। लेकिन आरोपी ने इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया और जमानत की शर्तों का उल्लंघन करते हुए फरार हो गया।
बाद में जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तो अदालत को बताया गया कि डेविड भारत छोड़ चुका है और उसकी तलाश संभव नहीं है। अदालत ने केंद्र से पूछा कि ऐसे मामलों में क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है और विदेशी नागरिकों को न्याय से भागने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि विदेशों में जांच और अपराधियों को पकड़ने के लिए “अनुरोध पत्र”, “आपसी कानूनी सहायता अनुरोध” (MLATs) और न्यायिक दस्तावेजों की तामील जैसी व्यवस्थाएं मौजूद हैं। लेकिन चूँकि भारत और नाइजीरिया के बीच कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है, इसलिए आरोपी को वापस लाना लगभग असंभव है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और आदेश
26 अगस्त को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह स्थिति बेहद गंभीर है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि—
- भारत और नाइजीरिया के बीच प्रत्यर्पण संधि न होने से आरोपी को वापस लाना कठिन है।
- ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए केंद्र सरकार को नीति बनानी चाहिए।
- विदेशी नागरिकों को भारत में अपराध करने के बाद जमानत पर छूटकर फरार होने का मौका नहीं मिलना चाहिए।
- 4 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही झारखंड हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत को रद्द कर दिया था और केंद्र को आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया था।
जमानत और विदेशी नागरिक : कानूनी चुनौती
विदेशी नागरिकों को जमानत देने में भारतीय न्यायालय कई बार “मानवाधिकार” और “निष्पक्ष सुनवाई” के सिद्धांत को ध्यान में रखते हैं। लेकिन समस्या यह है कि विदेशी नागरिकों का स्थायी पता, पहचान और भारत में उनकी जड़ें स्पष्ट नहीं होतीं। ऐसे में यदि वे फरार हो जाएँ तो उन्हें पकड़ना लगभग असंभव हो जाता है।
भारतीय नागरिकों के मामले में तो पुलिस, अदालत और स्थानीय तंत्र आरोपी को पकड़ सकते हैं, लेकिन विदेशी नागरिक के मामले में यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रक्रिया बन जाती है।
प्रत्यर्पण संधि की कमी
भारत ने कई देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियाँ की हैं, लेकिन अब भी अनेक देशों के साथ ऐसी संधियाँ नहीं हैं। नाइजीरिया और भारत के बीच भी कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है।
- प्रत्यर्पण संधि होने पर : यदि कोई विदेशी आरोपी भाग जाए तो भारत औपचारिक रूप से संबंधित देश से उसकी वापसी का अनुरोध कर सकता है।
- प्रत्यर्पण संधि न होने पर : आरोपी को वापस लाना लगभग असंभव हो जाता है।
एलेक्स डेविड का मामला इसी वजह से गंभीर बन गया।
केंद्र सरकार के सामने चुनौती
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से स्पष्ट है कि केंद्र सरकार के सामने कई गंभीर चुनौतियाँ हैं—
- प्रत्यर्पण संधियों का विस्तार – भारत को अधिक से अधिक देशों के साथ प्रत्यर्पण समझौते करने होंगे।
- विदेशी नागरिकों को जमानत पर कड़े प्रतिबंध – ऐसी शर्तें लगानी होंगी कि वे देश से बाहर न जा सकें।
- पासपोर्ट और वीज़ा पर नियंत्रण – जमानत पर छूटे विदेशी नागरिकों के पासपोर्ट को जब्त करना और उनकी यात्रा पर निगरानी रखना।
- इमिग्रेशन और पुलिस समन्वय – हवाई अड्डों और सीमा चौकियों पर ऐसे आरोपियों की सूची साझा करना।
- तकनीकी निगरानी – डिजिटल माध्यम से उनकी लोकेशन ट्रैक करना।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता
आधुनिक युग में अपराध अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप ले चुका है। साइबर अपराध, वित्तीय धोखाधड़ी, मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी जैसी गतिविधियाँ सीमाओं को पार कर जाती हैं। ऐसे में केवल घरेलू कानून पर्याप्त नहीं हैं।
भारत को चाहिए कि—
- अंतर्राष्ट्रीय अपराध पुलिस संगठन (Interpol) का प्रभावी उपयोग करे।
- आपसी कानूनी सहायता संधियों (MLATs) को और मजबूत बनाए।
- संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए सहयोग बढ़ाए।
नीति निर्माण की दिशा
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अब केंद्र सरकार के पास अवसर है कि वह ठोस और व्यापक नीति बनाए। ऐसी नीति में निम्नलिखित बिंदु शामिल होने चाहिए—
- जमानत पर विदेशी नागरिकों की कड़ी निगरानी
- इलेक्ट्रॉनिक निगरानी उपकरण (जैसे GPS ट्रैकर)
- नियमित पुलिस रिपोर्टिंग
- निवास स्थान का पंजीकरण
- पासपोर्ट जब्ती और यात्रा प्रतिबंध
- जमानत मिलते ही पासपोर्ट अदालत में जमा कराना अनिवार्य हो।
- बिना कोर्ट अनुमति विदेश यात्रा पर पूर्ण रोक।
- हवाई अड्डा और इमिग्रेशन सिस्टम से एकीकरण
- जमानत पर छूटे विदेशी नागरिकों का डेटा तुरंत इमिग्रेशन विभाग को भेजा जाए।
- विशेष अदालतें और त्वरित सुनवाई
- विदेशी नागरिकों से जुड़े अपराधों के मामलों में त्वरित कार्यवाही हो ताकि लम्बी सुनवाई से बचा जा सके।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- अधिक से अधिक देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियाँ।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर अपराधियों को पकड़ने की प्रक्रिया।
निष्कर्ष
एलेक्स डेविड का मामला भारत की न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था के सामने आई गंभीर समस्या का प्रतीक है। जमानत प्रणाली न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है, लेकिन इसका दुरुपयोग होने पर न्याय ही खतरे में पड़ जाता है। विदेशी नागरिकों द्वारा अपराध कर जमानत पर छूटने और फिर फरार हो जाने की घटनाएँ भारत की संप्रभुता और न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी समयोचित और आवश्यक है। अब केंद्र सरकार को चाहिए कि वह ठोस नीति बनाकर इस समस्या का समाधान करे। यह केवल न्याय की रक्षा नहीं करेगा, बल्कि भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को भी सुदृढ़ करेगा।