“जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर अभियुक्तों ने गंवाई स्वतंत्रता – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने रद्द की जमानत”

लेख शीर्षक: “जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर अभियुक्तों ने गंवाई स्वतंत्रता – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने रद्द की जमानत”
प्रकरण: Khem Singh v. State of Punjab & Anr., 2025 PbHr (CRM-M-42125-2019)


परिचय:

न्यायिक व्यवस्था में जमानत एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जो अभियुक्त को परीक्षण के दौरान अस्थायी रूप से स्वतंत्रता प्रदान करता है, परंतु यह स्वतंत्रता निश्चित शर्तों पर आधारित होती है। यदि अभियुक्त इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह उस स्वतंत्रता को समाप्त कर दे। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक ऐसे ही मामले में धारा 439(2) दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अंतर्गत दी गई याचिका को स्वीकार करते हुए अभियुक्त की जमानत रद्द कर दी।


मामले का संक्षिप्त विवरण:

इस मामले में, अभियुक्त Khem Singh को नियमित जमानत दी गई थी, जो कुछ निहित (implied) शर्तों के अधीन थी। जमानत मिलने के बाद अभियुक्त ने ऐसे कृत्य किए जो स्पष्ट रूप से न्यायालय द्वारा दी गई स्वतंत्रता की अवहेलना करते हैं।

जमानत प्राप्त करने के बाद अभियुक्त द्वारा किए गए कृत्य:

  • शिकायतकर्ता के रिश्तेदारों के घर में अवैध रूप से प्रवेश (trespass) किया।
  • शिकायतकर्ता को धमकियाँ दी और उस पर हमला किया।
  • यह आचरण न्यायालय की प्रतिष्ठा एवं आदेश की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला था।

न्यायालय का दृष्टिकोण:

  • न्यायालय ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित सिद्धांत है कि जमानत पर दी गई स्वतंत्रता यदि ग़लत उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाती है, तो वह स्वतंत्रता समाप्त की जा सकती है
  • अभियुक्त द्वारा किया गया कृत्य, विशेष रूप से शिकायतकर्ता और उसके परिजनों को धमकाना व हमला करना, जमानत आदेश की मूल भावना के खिलाफ है।
  • अभियुक्तों ने अपने ही आचरण से जमानत का अधिकार खो दिया है।

कानूनी प्रावधान: धारा 439(2) CrPC

धारा 439(2) दंड प्रक्रिया संहिता न्यायालय को यह अधिकार प्रदान करती है कि यदि कोई व्यक्ति जमानत की शर्तों का उल्लंघन करता है या ऐसा आचरण करता है जो न्याय के हित में नहीं है, तो जमानत को रद्द किया जा सकता है और उसे पुनः हिरासत में लिया जा सकता है।


फैसले का महत्व:

  1. जमानत एक अधिकार नहीं, बल्कि विशेषाधिकार है – यह निर्णय स्पष्ट करता है कि जमानत एक दया याचिका के आधार पर दिया गया विशेषाधिकार है, जिसे उचित आचरण के साथ बनाए रखना आवश्यक है।
  2. न्यायालय की प्रतिष्ठा की रक्षा – यदि कोई व्यक्ति न्यायालय की उदारता का दुरुपयोग करता है, तो उसे कड़ा दंड मिलना चाहिए, ताकि न्यायिक प्रणाली की गरिमा एवं प्रभावशीलता बनी रहे
  3. शिकायतकर्ता की सुरक्षा का संरक्षण – जमानत पर छूटे अभियुक्त द्वारा उत्पीड़न की संभावना हो, तो न्यायालय को ऐसे मामलों में शीघ्र हस्तक्षेप करना आवश्यक होता है।

निष्कर्ष:

Khem Singh बनाम पंजाब राज्य का यह निर्णय न्यायालयों द्वारा दी गई जमानत की नाजुकता और गंभीरता को दर्शाता है। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि यदि कोई अभियुक्त जमानत प्राप्त करने के पश्चात न्यायालय की मर्यादा का उल्लंघन करता है या शिकायतकर्ता को डराने-धमकाने का प्रयास करता है, तो न्यायालय ऐसे अभियुक्त के खिलाफ कठोर रुख अपनाते हुए उसकी जमानत रद्द कर सकता है

यह निर्णय भविष्य में अभियुक्तों के लिए एक सख्त चेतावनी के रूप में कार्य करेगा कि न्यायालय की स्वतंत्रता और विश्वास को किसी भी सूरत में दुर्पयोग नहीं किया जा सकता