“जब सब मिलकर करते हैं अपराध: भारतीय न्याय संहिता की धारा 34 का विश्लेषण”


“जब सब मिलकर करते हैं अपराध: भारतीय न्याय संहिता की धारा 34 का विश्लेषण”


परिचय:

भारतीय न्याय प्रणाली में यह आवश्यक नहीं कि किसी अपराध में सिर्फ वही व्यक्ति दोषी हो जिसने खुद अपने हाथों से अपराध किया हो। कई बार अपराध सामूहिक रूप से किया जाता है – जहां एक से अधिक व्यक्ति एक ही इरादे और उद्देश्य से मिलकर अपराध को अंजाम देते हैं। ऐसे मामलों में भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 34 (Section 34) एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

यह धारा बताती है कि जब अनेक व्यक्ति एक सामान्य मंशा (common intention) के तहत किसी अपराध को अंजाम देते हैं, तो सभी को बराबर का दोषी माना जाएगा, चाहे उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया हो या नहीं।


धारा 34 भारतीय न्याय संहिता – मूल तत्व:

“जब एक आपराधिक कृत्य एक या एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा सामान्य आशय के साथ किया जाता है, तो हर व्यक्ति को उस कार्य के लिए उतना ही उत्तरदायी माना जाएगा, जैसे कि उसने वह कार्य अकेले किया हो।”


धारा 34 के आवश्यक तत्व (Essential Elements of Section 34):

  1. एक से अधिक व्यक्ति हों।
    – अपराध में दो या दो से अधिक व्यक्ति शामिल होने चाहिए।
  2. सामान्य आशय (Common Intention):
    – सभी व्यक्तियों की मानसिक स्थिति समान होनी चाहिए यानी उन्होंने एक ही उद्देश्य से काम किया हो।
  3. संपूर्ण अपराध को अंजाम देना:
    – अपराध को मिलकर अंजाम दिया गया हो, भले ही भूमिका अलग-अलग हो।
  4. पूर्व योजना या तात्कालिक समझौता:
    – जरूरी नहीं कि अपराध के लिए विस्तृत पूर्व योजना हो, यह आशय मौके पर भी बन सकता है।

उदाहरण:

चार व्यक्ति – राम, श्याम, मोहन और सोहन – मिलकर किसी व्यक्ति की पिटाई करने का निश्चय करते हैं। राम डंडे से मारता है, श्याम पकड़ता है, मोहन निगरानी करता है और सोहन उस व्यक्ति को धमकी देता है। पीड़ित की मौत हो जाती है।

भले ही केवल राम ने चोट पहुंचाई, लेकिन धारा 34 के तहत सभी चार दोषी माने जाएंगे, क्योंकि उन्होंने सामान्य आशय से मिलकर अपराध को अंजाम दिया।


धारा 34 और व्यक्तिगत कृत्य में अंतर:

धारा 34 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति अपराध की योजना बनाकर केवल पीछे रहकर अपने को दोष से मुक्त न कर सके। जब समान मंशा से कार्य किया जाता है, तो सभी उतने ही दोषी होते हैं।


महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:

🔹 Krishna Govind Patil v. State of Maharashtra (1964)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामान्य आशय साबित करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती – यह परिस्थितियों से भी सिद्ध हो सकता है।

🔹 Mahbub Shah v. Emperor (1945)

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सामान्य आशय का मतलब केवल एक ही दिशा में सोचने से है, और यह भी देखा जाना चाहिए कि अपराध में सहभागिता कितनी थी।


धारा 34 बनाम धारा 149 BNS:

आधार धारा 34 धारा 149
उद्देश्य सामान्य आशय से किया गया कार्य गैरकानूनी जमावड़े से किया गया कार्य
संख्या कम से कम दो व्यक्ति कम से कम पांच व्यक्ति
योजना सामान्य आशय जरूरी केवल सदस्यता पर्याप्त है
उत्तरदायित्व समान आशय सिद्ध करना होगा जमावड़े का हिस्सा होना पर्याप्त

निष्कर्ष:

भारतीय न्याय संहिता की धारा 34 यह सिद्ध करती है कि अपराध में भाग लेने वाले सभी व्यक्ति समान रूप से जिम्मेदार हो सकते हैं, चाहे उन्होंने अपराध का मुख्य कार्य किया हो या नहीं। यह प्रावधान उन सभी को दंडित करने की दिशा में उठाया गया कदम है, जो अपराध के पीछे खड़े रहकर भी समान मंशा से उसे अंजाम तक पहुंचाते हैं।


संदेश:
“अगर इरादा एक है और काम साथ में किया गया है – तो सब होंगे बराबर के दोषी!”
– यही है धारा 34 का न्याय सिद्धांत।