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“जब शब्द बन गए न्याय में बाधा: सुप्रीम कोर्ट ने खराब अनुवाद पर जताई गंभीर चिंता”

“शब्दों का शिलाएँ: वर्जित अनुवाद, न्यायाधीशों की चुप्पी और निष्पक्ष अपील प्रक्रिया का संकट”


प्रस्तावना

वस्तुतः न्यायपालिका का मूलाधार भाषा है — वह माध्यम जिसके माध्यम से भूमिका-पूर्ण तथ्य, प्रमाण, शोध और सुनील विचार प्रवाहित होते हैं। हिन्दी, अंग्रेज़ी, आंचलिक अथवा क्षेत्रीय भाषा — जो भी प्रमुख हो — न्याय के द्वार पर चलती हुई प्रक्रिया में सटीक अर्थ की साझेदारी अनिवार्य होती है। इस संदर्भ में, जब Supreme Court of India ने यह पाया कि “अनुवाद में अपूर्णताएँ एवं त्रुटियाँ” न सिर्फ अपीलित न्यायालय की समझ को बाधित कर रही हैं, बल्कि न्याय की पहुँच तथा पारदर्शिता को भी हानि पहुँचा रही हैं, तो यह केवल एक तकनीकी गलती नहीं, बल्कि न्यायिक दृष्टि से गहरी समस्या बन चुकी है।

नीचे इस लेख में हम इस विषय को विस्तृत रूप से देखेंगे – उसकी पृष्ठभूमि, प्रमुख निर्णय-बिंदु, प्रभाव-विस्तार, न्यायिक एवं प्रशासनिक चुनौतियाँ, तथा आगे की राह-निर्देश।


पृष्ठभूमि एवं प्रासंगिकता

भारत एक बहुभाषी देश है जहाँ विभिन्न न्यायालयों में स्थानीय भाषा, राज्य भाषा या अंग्रेज़ी का प्रयोग होता रहा है। साथ-ही, अपील व उच्च न्यायालयों में अक्सर अंग्रेज़ी माध्यम को प्राथमिकता दी जाती है। इस संरचना में अनुवाद सेवा-प्रक्रिया (regional language → English/other) का महत्त्व काल-क्रम से बढ़ा है। उदाहरणार्थ, Supreme Court of India भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी निर्णयावलियों को 18 भाषाओं में अनुवादित करके सार्वजनिक पोर्टल पर डालने की पहल की है, जिसे सरकार ने प्रेस सूचना ब्यूरो के माध्यम से बताया है।

लेकिन अनुवाद चाहे जितना भी सुविधा-प्रद हो, अगर उसमें भाषाई, तकनीकी या अधिकारी-त्रुटियाँ हों — जैसे कि तथ्य की सटीकता खो जाना, कानूनी शब्दावली का अनावश्यक रूप से विचलित होना, व पैराग्राफ-रचना बिगड़ जाना — तो इससे अपील या पुनरीक्षण प्रक्रिया में गम्भीर रोड़ा बन सकता है। इसी समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से चिंता व्यक्त की है।


सुप्रीम कोर्ट का रुख एवं प्रमुख टिप्पणियाँ

  1. “हॉररेंस” अनुवाद-प्रथाएँ
    न्यायमूर्ति श्री अरविंद कुमार एवं न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी की बेंच ने महाराष्ट्र-शिक्षक रोजगार संबंधी मामले में त्रुटिपूर्ण अनुवाद पर तीव्र टिप्पणी की। जहां “reinstated” को “re-establishment” आदि शब्दों से गलत अनुवादित किया गया था और पूरा पैराग्राफ “सेंसहीन” बना हुआ था।

    न्यायमूर्ति कुमार ने कहा:

    “This is your translation? Poor translation. … We don’t want your apologies … We will make strong observations … We are experiencing this in every second case.”

    इस तरह, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि अनुवाद-त्रुटियाँ केवल लापरवाही नहीं, बल्कि न्याय की प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न करने वाली घटना हैं।

  2. अपील न्यायालय की समझ बाधित
    एक अन्य मामले में, जहाँ ट्रायल कोर्ट का निर्णय स्थानीय भाषा में था तथा अंग्रेजी अनुवाद अपर्याप्त था, सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि “अनुवाद की खामियाँ अपील न्यायालय को ट्रायल कोर्ट की तर्क-रचना (reasoning) समझने में सक्षम नहीं छोड़तीं”।

    न्यायालय ने यह कहा कि अनुवाद केवल शब्दों का आदान-प्रदान नहीं मात्र है; वह विचारों, तर्कों, उचित संदर्भ और न्याय-भीति का स्थानांतरण भी है।

  3. प्रमुख निर्देश व सुधार-आह्वान
    • अधिवक्ताओं-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) को जिम्मेदारी दी गई है कि वे प्रमाणित अनुवाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करें।
    • सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह भी निर्देश दिए गए कि अनुवादों की समीक्षा हो, मशीनी अनुवाद (machine translation) पर केवल भरोसा नहीं किया जाना चाहिए।
    • अनुवाद की व्यवस्था बेहतर बनाने हेतु Supreme Court Advocates‑on‑Record Association (SCAORA) को शामिल किया गया है — मानक-निर्माण, प्रशिक्षित अनुवादक व प्रक्रियात्मक सुधार के लिए।

समस्या वर्णन: किज्ञ समस्याएँ देखी गईं

यहाँ कुछ विशिष्ट-प्रकार की समस्याओं को देखा गया है, जिनका ट्रायल-निर्णयों के अनुवाद में सामना हुआ है:

  • वाच्य, काल अथवा संज्ञा बदल जाना — जैसे “reinstated” → “re-established” (जिसका कानूनी अर्थ बदल जाता है)।
  • फैक्ट्स या कथन-श्रृंखला का विकृत होना — जिसका परिणाम यह हुआ कि अपील न्यायालय को पता नहीं चलता कि ट्रायल कोर्ट ने वास्तविकता पर किस प्रकार विचार किया है।
  • कानूनी शब्द­-मानक का अभाव — जब तकनीकी शब्द (e.g., “suit”, “injunction”, “equity”, “constructive trust”) का अनुवाद सामान्य भाषा में हो जाता है, जिससे विशिष्टता खो जाती है।
  • अनुवाद प्रमाण-पत्र, प्रमाणिकता का अभाव — अनुवाद कर्ता का नाम, मुहर या प्रमाण नहीं रहता, अनेक बार अधिवक्ता ने स्वयं अनुवाद प्रस्तुत किया, जिससे गुणवत्ता-घाट देखी गई।
  • मशीन/ऑनलाइन अनुवाद पर अंधविश्वास — मानवीय समीक्षा नहीं होने से अर्थ-विपर्यय (mis-meaning) का खतरा।

प्रभाव: अपील प्रक्रिया एवं न्याय-व्यवस्था पर

  1. अपील न्यायालय की भूमिका कमजोर होती है
    जब ट्रायल कोर्ट की तर्क-रचना अनुवाद में अस्पष्ट हो जाती है, तो अपील न्यायालय (High Court/ Supreme Court) को “क्यों-और-कैसे” (why and how) का विश्लेषण करना कठिन हो जाता है। इस तरह, अपील चरण अपने उद्देश्य — त्रुटियों का सुधार और नियंत्रण — से हट जाता है।
  2. न्याय की पहुँच तथा विश्वास प्रभावित
    हिंदी, तमिल, मराठी आदि भाषाओं से अंग्रेज़ी में अनुवादित अभिलेख में यदि त्रुटि हो तो आम जनता-वादी पक्ष की समझ और सहभागिता प्रभावित होती है। इससे न्याय-सेवा में लैंग्वेज-विभाजन की समस्या और गहराती है।
  3. न्याय-संख्या बढ़ जाती है
    अनुवाद की खामियों से पुनरावलोकन-अधिकार, अतिरिक्त सामग्री प्रस्तुति, विस्तारित बहस आदि बढ़ सकती है, जिससे समय-बर्बादी एवं प्रक्रिया-बोझ में वृद्धि होती है।
  4. विश्वसनीयता एवं प्रमाण-की परीक्षा कमजोर होती है
    अनुवाद के त्रुटिपूर्ण होने से विरोधी पक्ष द्वारा “हमको सही अनुवाद नहीं मिला” या “अनुवाद तर्कों को विकृत कर रहा है” — ऐसे तर्क उठाए जा सकते हैं, जिससे न्याय-प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न लग सकता है।

प्रशासनिक व सुधार-उपाय

  1. प्रमाणित अनुवाद-पूल (Certified Translators Pool) का गठन
    न्यायालाओं (सुप्रीम, उच्च, जिला) में क्षेत्रीय भाषा-अनुवाद हेतु प्रशिक्षित, कानूनी शब्दावली में पारंगत अनुवादकों का पैनल होना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कदम उठाए हैं।
  2. अनुवाद प्रमाण-पत्र एवं अंकित जिम्मेदारी
    अनुवाद प्रस्तुत करते समय अनुवादक द्वारा सर्टिफिकेट, हस्ताक्षर व मुहर देना, तथा अधिवक्ता (AoR) द्वारा उसकी प्रमाणिकता स्वीकार करना चाहिए — जैसा सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया।
  3. मशीन अनुवाद + मानवीय समीक्षा
    अनुवाद-साधनों में AI/मशीन का उपयोग हो सकता है, पर मानव समीक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर बल दिया है।
  4. मानक शब्दावली का विकास
    विभिन्न भाषाओं में कानूनी शब्दों की प्रमाणित शब्दावली तैयार की जानी चाहिए, ताकि “injunction”, “equity”, “constructive trust” आदि का अर्थ क्षेत्रीय भाषा में निर्दिष्ट और स्थिर रहे।
  5. प्रशिक्षण और जागरूकता-सत्र
    अधिवक्ताओं-ऑन-रिकॉर्ड, न्यायालय-कार्यालय-कर्मियों एवं अनुवादकों के लिए नियमित कार्यशालाएँ, ऑन-फील्ड प्रशिक्षण और गुणवत्ता-सत्यापन कार्यक्रम आवश्यक हैं।
  6. निगरानी व प्रक्रिया-सुधार इकाई
    न्यायालय-स्तर पर अनुवाद गुणवत्ता-निगरानी समिति हो सकती है, जो अनुवाद प्रस्तुति प्रक्रिया, समय-प्रबंधन और समीक्षा-मानकों को सुनिश्चित करे।

चुनौतियाँ एवं विचार-विमर्श

  • वित्तीय एवं संस्थागत संसाधन
    अनेक जिला न्यायालयों तथा अधीनस्थ न्यायालयों में अनुवादकों की कमी है; संसाधन आभाव में अनुवाद ख्नित हो सकते हैं।
  • भाषाई विविधता व مضمون-संकट
    भारत में 20+ प्रमुख भाषाएँ, कई बोलियाँ और क्षेत्रीय कानूनी शब्द हैं — अनुवाद में यह विविधता चुनौती बनाती है।
  • प्रक्रिया-वाम झुकाव
    अधिवक्ताओं द्वारा कभी-कभी लापरवाही से अनुवाद जमा करना — “बस अंग्रेज़ी प्रस्तुत कर दी” — की प्रवृत्ति मिली है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है।
  • मशीन अनुवाद-पर निर्भरता
    मशीन-अनुवाद केवल सहायक हो सकता है; कानूनी जटिलता और संदर्भ-संवेदनशीलता के कारण पूर्ण भरोसा योग्य नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे दोहराया है।
  • भाव-विसंगति (contextual mismatch)
    स्थानीय भाषा में प्रयुक्त अभिव्यक्ति (idiom), संज्ञा-वाचक भंग (grammatical structure) अंग्रेज़ी में उसी लय में अनुवाद नहीं हो पाती — जिससे अर्थ विकृत हो सकता है।

निष्कर्ष

शब्द केवल वर्णमात्राएँ नहीं — वे न्याय-मंच का आधार हैं। जब अनुवाद इस आधार को क्षीण कर देता है, तो न्याय का वृत्त (system) कमजोर पड़ जाता है। सुप्रीम कोर्ट का यह संज्ञान कि “अनुवाद में खामी ने अपील न्यायालय को ट्रायल कोर्ट की तर्क-रचना समझने में बाधा डाली है” — यह सिर्फ टिप्पणी नहीं, चेतावनी है।

यदि न्याय का लक्ष्य “सुनवाई के बाद निष्पक्ष, समझदार एवं निष्पादन-योग्य निर्णय” देना है, तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ट्रायल कोर्ट का निर्णय भाषा-बाधा के बिना अपील न्यायालय तक पहुँचे। इसके लिए तकनीकी व्यवस्था, प्रक्रिया-शुध्दीकरण और संस्कार-परिवर्तन अनिवार्य हैं।


आगे की दिशा

  • राज्यों-और-केन्द्रीय स्तर पर कानूनी भाषा अनुवाद नीतियाँ तैयार की जानी चाहिए।
  • प्रत्येक न्यायालय को अनुवाद-प्रस्तुति हेतु केवल प्रमाणित translator से काम लेने की प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
  • अधिवक्ताओं को अनुवाद-प्रमाणित दस्तावेज़ जमा करने की नियमित चेतना विकसित करनी होगी।
  • अनुवाद-गुणवत्ता की नियमित आडिटिंग होनी चाहिए — त्रुटिपूर्ण अनुवादों पर नस्ति­प्रकरण व सुधार-कार्रवाई हो।
  • देश की भाषाई विविधता को देखते हुए, मानक लोक-कानूनी शब्दकोश विकसित किया जाना चाहिए — ताकि प्रत्येक भाषा-अनुवाद में अर्थ-संकलन समान हो सके।