भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 45: दुष्प्रेरण की कानूनी परिभाषा और इसकी सीमाएं
(धारा 45 को आसान भाषा में लंबा लेख और उदाहरण सहित समझाया गया है)
🔷 शीर्षक:
“जब आप खुद अपराध नहीं करते, फिर भी दोषी हो सकते हैं – दुष्प्रेरण की संकल्पना: BNS की धारा 45 का विश्लेषण”
🔹 परिचय:
कानून केवल उसी व्यक्ति को अपराधी नहीं मानता जो स्वयं अपराध करता है, बल्कि उसे भी दोषी ठहराता है जो किसी को अपराध करने के लिए उकसाता है, उसकी योजना में शामिल होता है या उसे मदद करता है।
भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), 2023 की धारा 45 इसी सिद्धांत को स्पष्ट करती है, जिसे “Abetment” (दुष्प्रेरण) कहा जाता है।
🔹 धारा 45 की परिभाषा (BNS में):
“कोई व्यक्ति तब दुष्प्रेरण करता है जब वह –
(i) किसी को अपराध करने के लिए उकसाता है,
(ii) अपराध करने के लिए षड्यंत्र करता है,
(iii) अपराध करने में जानबूझकर सहायता करता है।”
👉 मतलब ये कि भले ही आपने खुद अपराध न किया हो, लेकिन अगर आपने किसी को उकसाया, योजना बनाई या सहायता दी — तो आप भी उतने ही दोषी माने जाएंगे।
🔹 दुष्प्रेरण के तीन प्रमुख प्रकार (तीन तरीके):
1. उकसाना (Instigation):
किसी व्यक्ति को जानबूझकर इस तरह प्रेरित करना कि वह कोई अपराध करे।
🔸 उदाहरण:
‘अ’ ने ‘ब’ को कहा – “जाओ और उस आदमी से बदला लो, उसे मार डालो।”
अगर ‘ब’ उस आदमी को मार देता है, तो ‘अ’ दुष्प्रेरक (Abettor) माना जाएगा।
2. षड्यंत्र (Conspiracy):
अगर दो या अधिक लोग अपराध की योजना बनाते हैं और उसमें कोई कार्यवाही (act) भी करते हैं, तो वह दुष्प्रेरण मानी जाएगी।
🔸 उदाहरण:
‘अ’, ‘ब’ और ‘स’ ने एक साथ मिलकर बैंक लूटने की योजना बनाई।
‘स’ ने नक्शा तैयार किया, ‘ब’ ने वाहन की व्यवस्था की और ‘अ’ ने हथियार दिए।
➤ ये तीनों षड्यंत्रकर्ता और दुष्प्रेरक माने जाएंगे, भले ही बैंक में घुसा केवल ‘अ’ हो।
3. मदद करना (Intentional Aid):
किसी अपराध को करने में किसी प्रकार की सहायता देना – जैसे उपकरण, जानकारी, स्थान, संसाधन या भागने की व्यवस्था देना।
🔸 उदाहरण:
‘अ’ जानता है कि ‘ब’ चोरी करने जा रहा है और वह उसे चाबी, नक्शा या औजार दे देता है।
➤ ‘अ’ ने जानबूझकर मदद की, इसलिए वह भी दुष्प्रेरक माना जाएगा।
🔹 कानूनी दृष्टिकोण से दुष्प्रेरण के लिए आवश्यक तत्व:
- जानबूझकर किया गया कार्य (Intentional Act)
- मूल अपराध के लिए प्रेरणा, योजना या सहायता
- दुष्प्रेरण और अपराध के बीच स्पष्ट संबंध
Note: यदि दुष्प्रेरण का कार्य हुआ हो लेकिन मुख्य अपराध नहीं हुआ हो, तो भी कुछ मामलों में दुष्प्रेरक को सजा दी जा सकती है (जैसे– धारा 120A/120B में षड्यंत्र)।
🔹 उदाहरणों द्वारा व्याख्या:
✅ उदाहरण 1:
‘अ’ ने ‘ब’ को आत्महत्या के लिए उकसाया। ‘ब’ ने आत्महत्या कर ली।
➤ धारा 45 के तहत ‘अ’ दुष्प्रेरण द्वारा आत्महत्या के लिए उत्तरदायी होगा। (BNS की धारा 107)
✅ उदाहरण 2:
‘अ’ ने ‘ब’ को चोरी करने के लिए हथौड़ा और रस्सी दी।
➤ भले ही ‘अ’ ने चोरी नहीं की, लेकिन जानबूझकर सहायता दी, इसलिए दोषी है।
✅ उदाहरण 3:
‘अ’ और ‘ब’ ने योजना बनाई कि वे एक व्यापारी को अगवा करेंगे।
‘ब’ अगवा करने में शामिल हुआ, ‘अ’ ने योजना और वाहन दिया।
➤ दोनों षड्यंत्र और सहायता के कारण समान रूप से दोषी।
🔹 सजा का निर्धारण:
BNS के अनुसार, यदि दुष्प्रेरण से अपराध हो जाता है, तो दुष्प्रेरक को उसी सजा का पात्र माना जाएगा जो अपराध करने वाले को मिलती है।
यदि अपराध नहीं हुआ लेकिन दुष्प्रेरण सिद्ध हो जाए, तो हल्की सजा दी जा सकती है।
🔹 निष्कर्ष:
धारा 45 यह स्पष्ट करती है कि कानून की नजर में अपराध की जड़ तक पहुंचना आवश्यक है। अगर कोई व्यक्ति पर्दे के पीछे रहकर किसी को अपराध करने के लिए उकसाता है, योजना बनाता है या मदद करता है, तो वह भी अपराधी है।
📌 “कानून केवल हाथ में हथियार रखने वाले को ही दोषी नहीं मानता, बल्कि उसे भी जो हथियार पकड़ाता है!”