जबरन सेवा में बनाए रखना अनुचित: Sanjay Kumar बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य (SUPREME COURT OF INDIA)

शीर्षक: जबरन सेवा में बनाए रखना अनुचित: Sanjay Kumar बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य
(SUPREME COURT OF INDIA)


परिचय:
भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकारों में से एक है – “पेशे के चयन की स्वतंत्रता”, जो अनुच्छेद 19(1)(g) के अंतर्गत आता है। यह अधिकार प्रत्येक नागरिक को यह स्वतंत्रता देता है कि वह अपनी इच्छा अनुसार रोजगार, व्यवसाय या पेशे का चयन करे। इस मूल अधिकार को केंद्र में रखकर हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने Sanjay Kumar बनाम State of Himachal Pradesh & Others मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि किसी कर्मचारी को जबरन सेवा में नहीं रोका जा सकता, भले ही विभाग में स्टाफ की कमी क्यों न हो।


मामले की पृष्ठभूमि:
डॉ. संजय कुमार, एक सरकारी चिकित्सा अधिकारी, ने उच्च शिक्षा (Super Specialization) हेतु NOC (No Objection Certificate) की मांग की थी, ताकि वह उच्चतर चिकित्सा पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकें। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि कोर्स पूर्ण होने के पश्चात वे राज्य में कम से कम पांच वर्षों तक सेवा देंगे।

हालाँकि, राज्य सरकार ने यह कहते हुए NOC देने से इनकार कर दिया कि विभाग में पहले से ही स्टाफ की भारी कमी है और डॉ. संजय की सेवा तत्कालीन आवश्यकता के लिए आवश्यक है। इसके विरुद्ध उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया।


हाईकोर्ट की टिप्पणी एवं निर्णय:
माननीय न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दूआ की एकल पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

  • सेवा में मजबूर करना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है:
    कोई भी कर्मचारी, विशेषकर जब वह अपने करियर में प्रगति करना चाहता है, उसे केवल स्टाफ की कमी के आधार पर जबरदस्ती सेवा में नहीं रोका जा सकता।
  • राज्य का दृष्टिकोण तानाशाहीपूर्ण नहीं हो सकता:
    राज्य एक कल्याणकारी संस्था है, न कि कोई निजी नियोक्ता। उसे अपने कर्मचारियों की व्यक्तिगत आकांक्षाओं और करियर विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • कार्यबल की कमी सरकार की योजना संबंधी विफलता का परिणाम है:
    यह दलील कि विभाग में स्टाफ की कमी है, सरकार की दीर्घकालिक मानव संसाधन योजना की विफलता को दर्शाता है और इसका भार किसी एक व्यक्ति पर नहीं डाला जा सकता।
  • पांच वर्षों तक सेवा देने का वचन पर्याप्त संतुलन है:
    याचिकाकर्ता का यह आश्वासन कि वह कोर्स पूरा होने के बाद पाँच वर्षों तक राज्य में सेवा देंगे, सरकार के हितों की रक्षा करता है और संतुलन बनाता है।

कानूनी महत्व:
इस निर्णय से कई कानूनी सिद्धांत पुष्ट होते हैं:

  • मौलिक अधिकारों की सर्वोपरिता:
    अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत प्राप्त पेशे की स्वतंत्रता को राज्य केवल “यथोचित प्रतिबंधों” के तहत ही सीमित कर सकता है, न कि प्रशासनिक सुविधा के नाम पर।
  • राष्ट्रहित बनाम व्यक्तिगत अधिकार में संतुलन:
    यह निर्णय बताता है कि राष्ट्रहित के नाम पर व्यक्तिगत करियर की बलि नहीं दी जा सकती, विशेषकर जब व्यक्ति राष्ट्रहित में योगदान करने की इच्छा भी जता रहा हो।
  • मानव संसाधन प्रबंधन में संवेदनशीलता की आवश्यकता:
    यह भी स्पष्ट किया गया कि सरकार को अपने कर्मचारियों के व्यक्तिगत विकास के अवसरों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए।

निष्कर्ष:
Sanjay Kumar बनाम State of H.P. & Others फैसला न केवल डॉ. संजय कुमार के लिए राहत बनकर आया, बल्कि यह सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए एक मार्गदर्शक निर्णय बन गया, जो उच्चतर शिक्षा या करियर विकास की आकांक्षा रखते हैं। यह निर्णय न्याय की उस भावना को दर्शाता है, जिसमें व्यक्ति की गरिमा, आकांक्षा और मौलिक अधिकारों को सर्वोपरि माना गया है।

यह निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि राज्य का हित और कर्मचारी के अधिकार विरोधी नहीं, पूरक हो सकते हैं, यदि नीति निर्माण और प्रशासन में संतुलन और संवेदनशीलता हो।
यह फैसला मौलिक अधिकारों के संरक्षण तथा “राज्य बनाम नागरिक” के द्वंद्व में न्याय के पक्ष को मजबूत करता है।