‘छूछक’ रस्म में सोने की मांग को दहेज नहीं मान सकते: सुप्रीम कोर्ट ने पति की दहेज मृत्यु सज़ा रद्द की — महत्वपूर्ण निर्णय
भूमिका
भारतीय समाज में जन्म, विवाह और अन्य पारिवारिक अवसरों पर विभिन्न रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, जिन्हें सदियों की परंपराओं से मान्यता मिली है। इन्हीं में से एक है “छूछक” या “छूछियार”, जो बच्चे के जन्म के बाद माता-पिता एवं मायके पक्ष द्वारा किए जाने वाले उपहारों से जुड़ी परंपरा है।
दूसरी ओर दहेज (Dowry) भारत में एक गंभीर सामाजिक बुराई है, जिसे रोकने के लिए दहेज निषेध अधिनियम, 1961 और भारतीय दंड संहिता की धारा 304B (दहेज मृत्यु) एवं 498A (क्रूरता) के माध्यम से कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि छूछक समारोह में सोने–गहनों की मांग को स्वतः ‘दहेज मांग’ नहीं माना जा सकता, और इस आधार पर पति को दी गई दहेज मृत्यु की सज़ा को रद्द कर दिया।
यह फैसला न केवल कानून की सही व्याख्या प्रस्तुत करता है, बल्कि सामाजिक प्रथाओं और आपराधिक कानून के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। आइए इस महत्वपूर्ण निर्णय का विस्तृत विश्लेषण करते हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में—
- विवाह के बाद कुछ वर्षों के भीतर महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।
- अभियोजन पक्ष (Prosecution) ने आरोप लगाया कि पति और ससुरालवालों ने महिला को लगातार दहेज के लिए प्रताड़ित किया।
- कहा गया कि बच्चे के जन्म के बाद “छूछक” रस्म के समय सोने की मांग की गई, जो दहेज मांग का ही एक स्वरूप है।
- ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय ने पति को IPC धारा 304B (दहेज मृत्यु) और 498A के तहत दोषी ठहराया।
पति ने इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न
- क्या ‘छूछक’ समारोह के समय सोने–गहने की मांग को दहेज मांग माना जा सकता है?
- क्या ऐसी मांग दहेज मृत्यु (304B) के लिए आवश्यक ‘कठोर प्रताड़ना’ की श्रेणी में आती है?
- क्या मात्र परंपरागत उपहार मांगना दहेज के समान माना जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सर्वोच्च न्यायालय ने विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा:
1. छूछक एक सामाजिक परंपरा है, दहेज मांग नहीं
कोर्ट ने माना कि:
- छूछक समारोह मायके पक्ष द्वारा स्वेच्छा से दिए जाने वाले उपहारों की प्राचीन परंपरा है।
- इस दौरान गहने, कपड़े, मिठाई आदि देना परंपरा का भाग है।
- यदि ससुराल पक्ष इस परंपरा के अनुसार कुछ उपहार की बात करता है, तो इसे स्वतः “दहेज मांग” नहीं कहा जा सकता।
कोर्ट ने कहा:
“यदि प्रत्येक प्रकार के उपहार या रस्म से जुड़े उपहार को दहेज मान लिया जाए, तो समूची भारतीय परंपराएं अपराध की श्रेणी में आ जाएंगी।”
2. दहेज मांग के लिए ‘अनुचित दबाव’ और ‘कठोर प्रताड़ना’ सिद्ध होना आवश्यक
कोर्ट के अनुसार—
- धारा 304B लागू करने के लिए यह साबित होना चाहिए कि
- पति या ससुरालवालों ने अनुचित दबाव,
- निरंतर प्रताड़ना,
- या अवैध आर्थिक मांग की थी।
- केवल रस्म या परंपरा के अंतर्गत उपहार देने की बात करना धारा 304B के तहत दहेज मांग नहीं कहलाती।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि:
“छूछक समारोह में सोने या उपहार की मांग को दहेज मांग नहीं कहा जा सकता, जब तक कि यह साबित न हो कि मांग ज़बरदस्ती, दबाव या प्रताड़ना के साथ की गई थी।”
चूंकि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि:
- मांग लगातार और ज़बरदस्ती की जा रही थी,
- मृतक को इसके लिए मारपीट या प्रताड़ना का सामना करना पड़ा,
- या यह मांग अवैध दहेज मांग का हिस्सा थी,
इसलिए कोर्ट ने पति की दहेज मृत्यु (304B) की सज़ा को रद्द कर दिया।
पति को बरी (Acquitted) कर दिया गया।
कोर्ट द्वारा दहेज मृत्यु के तत्वों पर पुनः बल
धारा 304B IPC के तहत किसी आरोपी को दोषी ठहराने के लिए निम्न तत्व (ingredients) अनिवार्य हैं:
- स्त्री की असामान्य मृत्यु (unnatural death)
- विवाह के सात वर्ष के भीतर मृत्यु
- मृत्यु से पहले ‘दहेज मांग’ को लेकर प्रताड़ना
- प्रताड़ना और मृत्यु के बीच ‘नज़दीकी संबंध’ (proximate link)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि—
- मात्र ‘मांग’ का होना पर्याप्त नहीं;
- यह सिद्ध होना चाहिए कि मांग दहेज मांग थी, न कि परंपरागत रस्म का हिस्सा।
‘छूछक’ रस्म क्या है? अदालत ने क्यों दिया महत्व?
भारत के कई राज्यों में ‘छूछक’ एक सांस्कृतिक परंपरा है—
- बच्चे के जन्म के बाद ननिहाल की ओर से
- नए कपड़े, बर्तन, सोने–चांदी के गहने
- मिठाइयाँ और खिलौने
- नवजात एवं उसकी माँ के लिए उपहार लाना आम है।
कोर्ट ने माना कि:
“छूछक एक स्वैच्छिक उपहार देने की परंपरा है, न कि दहेज मांग का तरीका।”
इसलिए इस रस्म के दौरान उपहारों का उल्लेख या मांग करना दहेज के समकक्ष नहीं हो सकता।
अभियोजन की कमियाँ (Prosecution Failures)
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि—
- अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर पाया कि मृतका को सोने की मांग के लिए प्रताड़ित किया गया।
- कोई साक्ष्य नहीं था कि लड़की ने इस मांग से तंग आकर आत्महत्या की या उसकी हत्या की गई।
- गवाहों के बयान विरोधाभासी थे।
- कोई चिकित्सा प्रमाण (medical evidence) प्रताड़ना साबित नहीं कर पाया।
परिणामस्वरूप, संदेह का लाभ (benefit of doubt) आरोपी को दिया गया।
निर्णय का व्यापक प्रभाव
1. IPC 304B के दुरुपयोग पर लगाम
यह फैसला स्पष्ट करता है कि—
- हर आर्थिक लेन-देन या उपहार को दहेज नहीं कहा जा सकता।
- दहेज कानूनों का गलत उपयोग रोकना आवश्यक है।
2. परंपराओं और आपराधिक कानून का संतुलन
भारत विविध परंपराओं वाला देश है।
कोर्ट ने सुनिश्चित किया कि कानून परंपराओं को अपराध का रूप न दे।
3. अदालतों को ‘सख्त प्रमाण’ की आवश्यकता
दहेज मृत्यु जैसे गंभीर आरोपों में—
- स्पष्ट सबूत,
- निरंतर प्रताड़ना,
- अवैध आर्थिक मांग
सिद्ध होना अनिवार्य है।
4. निष्पक्षता और न्यायसंगतता
निर्णय इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि—
“संदेह की स्थिति में दोषी को दंडित नहीं किया जा सकता।”
कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार यह निर्णय—
- दहेज कानूनों के सही उपयोग की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
- इससे झूठे मामलों में फँसे निर्दोष लोगों को राहत मिलेगी।
- परंतु साथ ही वह यह भी चेतावनी देता है कि वास्तविक दहेज अत्याचार के मामलों में मजबूत सबूत आवश्यक होंगे।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह महत्वपूर्ण निर्णय बताता है कि:
– “छूछक” रस्म में उपहार देने या मांगने की परंपरा अपने-आप में दहेज मांग नहीं है।
– दहेज मृत्यु का आरोप लगाने के लिए स्पष्ट, विश्वसनीय और निरंतर प्रताड़ना के सबूत आवश्यक हैं।
– आपराधिक कानून का प्रयोग सामाजिक परंपराओं को अपराध घोषित करने के लिए नहीं किया जा सकता।
यह फैसला न्यायपालिका की संतुलित सोच को दर्शाता है—
जहाँ एक ओर दहेज जैसी कुप्रथा पर कठोर प्रहार जारी रहता है, वहीं दूसरी ओर झूठे मामलों से निर्दोषों की रक्षा भी सुनिश्चित की जाती है।