चेक यदि बिना लाइसेंसधारी साहूकार से लिए गए ऋण की गारंटी के रूप में दिया गया हो, तो धारा 138 लागू नहीं होगी: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश – Monic Sunit Ujjain बनाम Sanchu M. Menon & Others

शीर्षक: चेक यदि बिना लाइसेंसधारी साहूकार से लिए गए ऋण की गारंटी के रूप में दिया गया हो, तो धारा 138 लागू नहीं होगी: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश – Monic Sunit Ujjain बनाम Sanchu M. Menon & Others


भूमिका

भारतीय दंड प्रक्रिया और बैंकिंग कानूनों के अंतर्गत नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) की धारा 138 एक प्रभावशाली दंडात्मक प्रावधान है, जो चेक बाउंस के मामलों में दोषियों को दंडित करने हेतु लागू होती है। यह धारा चेक के भुगतान में विफलता को अपराध घोषित करती है, जिससे लेन-देन में विश्वास बना रहे।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि चेक एक बिना लाइसेंसधारी साहूकार से लिए गए ऋण की सुरक्षा (security) के रूप में दिया गया है, तो उस स्थिति में धारा 138 लागू नहीं होती। यह फैसला Monic Sunit Ujjain बनाम Sanchu M. Menon & Others मामले में दिया गया, जिसने इस धारणा को चुनौती दी कि हर bounced cheque पर आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है।


मामले की पृष्ठभूमि

इस विवाद में अपीलकर्ता Monic Sunit Ujjain ने आरोप लगाया था कि उन्होंने Sanchu M. Menon से ऋण लिया था, जिसके बदले उन्होंने एक चेक दिया। बाद में जब चेक प्रस्तुत किया गया, तो वह “अपर्याप्त धनराशि” (insufficient funds) के आधार पर बैंक द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद शिकायतकर्ता ने धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज कर दी।

प्रतिवादी (accused) ने दावा किया कि यह चेक केवल सुरक्षा के तौर पर दिया गया था और ऋणदाता के पास आवश्यक मनी लेंडिंग लाइसेंस नहीं था। इस आधार पर उन्होंने शिकायत को रद्द करने की मांग की।


प्रमुख कानूनी प्रश्न

इस मामले में न्यायालय के समक्ष निम्नलिखित प्रमुख प्रश्न उपस्थित हुए:

  1. क्या धारा 138 NI Act तब भी लागू होती है जब चेक केवल सुरक्षा के रूप में दिया गया हो?
  2. क्या बिना वैध मनी लेंडिंग लाइसेंस के दिए गए ऋण की वसूली हेतु दिया गया चेक वैधानिक दायित्व (legally enforceable debt) माना जा सकता है?
  3. क्या ऐसे मामले में आरोपी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही चलाना न्यायसंगत है?

धारा 138 की कानूनी आवश्यकताएँ

धारा 138 के अनुसार, निम्न शर्तें पूरी होनी चाहिए:

  • चेक को ऋण या देयता की अदायगी के लिए जारी किया गया हो।
  • चेक समय सीमा में प्रस्तुत किया गया हो।
  • चेक बैंक द्वारा अस्वीकार किया गया हो।
  • भुगतान न होने पर नोटिस भेजा गया हो और 15 दिनों के भीतर भुगतान न किया गया हो।

सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि चेक “legally enforceable debt or liability” के लिए होना चाहिए। यदि वह ऋण ही अवैध रूप से (जैसे बिना लाइसेंस के साहूकारी) दिया गया हो, तो उस पर कोई वैधानिक देनदारी नहीं बनती।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा:

“A cheque issued as security for a loan advanced by an unlicensed money lender does not constitute a legally enforceable debt or liability within the meaning of Section 138 of the Negotiable Instruments Act.”

मुख्य टिप्पणियाँ:

  1. सुरक्षा हेतु चेक: चेक केवल एक संपार्श्विक (collateral) या सुरक्षा (security) के रूप में दिया गया था, न कि तुरंत देय भुगतान हेतु। इसलिए, वह कानूनन देनदारी नहीं बनाता।
  2. बिना लाइसेंस का ऋण: प्रतिवादी के पास कोई वैध मनी लेंडिंग लाइसेंस नहीं था, जिससे ऋण देना ही गैर-कानूनी गतिविधि बन गया। इस कारण उससे जुड़ा कोई दायित्व कानूनन वैध नहीं माना जा सकता।
  3. दंडात्मक कार्रवाई का दुरुपयोग नहीं: न्यायालय ने यह भी जोड़ा कि धारा 138 को ऐसे मामलों में दबाव बनाने या वसूली के लिए हथियार के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता, जहाँ मूल लेन-देन ही वैध नहीं है।

न्यायालय द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में सिविल और आपराधिक कानून के अंतर को गहराई से स्पष्ट किया। अदालत ने यह स्थापित किया कि:

  • प्रत्येक चेक बाउंस एक आपराधिक अपराध नहीं बनता।
  • चेक के पीछे वैध और लागू करने योग्य दायित्व होना अनिवार्य है।
  • यदि ऋण ही अवैध है, तो चेक के अस्वीकार पर आपराधिक कार्रवाई नहीं हो सकती।

प्रासंगिक पूर्ववर्ती निर्णय

  1. Indus Airways Pvt. Ltd. v. Magnum Aviation Pvt. Ltd. [(2014) 12 SCC 539]
    यह कहा गया कि चेक की प्रकृति, उसका उद्देश्य और उससे जुड़ा दायित्व तय करता है कि धारा 138 लागू होगी या नहीं।
  2. M.S. Narayana Menon v. State of Kerala [(2006) 6 SCC 39]
    इसमें यह निर्धारित किया गया था कि चेक की प्रस्तुति के समय उसे किस आशय से दिया गया, यह जांचना आवश्यक है।
  3. Kishan Rao v. Shankargouda [(2018) 8 SCC 165]
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि चेक वैध ऋण के लिए है, तो दोषसिद्धि बन सकती है, परंतु ऋण अवैध हो तो नहीं।

फैसले का व्यापक प्रभाव

ऋणदाता के लिए चेतावनी

यह निर्णय उन साहूकारों के लिए स्पष्ट संदेश है जो बिना लाइसेंस के ऋण देते हैं और फिर चेक के ज़रिए वसूली का प्रयास करते हैं।

धारा 138 के दुरुपयोग पर रोक

इस निर्णय से यह सुनिश्चित होगा कि धारा 138 का दुरुपयोग एक वसूली के हथियार के रूप में न हो।

वित्तीय अनुशासन में वृद्धि

अब ऋणदाताओं को वैध मनी लेंडिंग प्रक्रिया अपनानी होगी, जिससे वित्तीय लेन-देन अधिक अनुशासित होंगे।


निष्कर्ष

Monic Sunit Ujjain बनाम Sanchu M. Menon & Others मामला न केवल नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम की व्याख्या में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह चेक के पीछे के उद्देश्य, देनदारी की वैधता और न्यायिक विवेक के उपयोग को लेकर भी मिसाल बन गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि मूल लेन-देन कानूनन अवैध है, तो उससे संबंधित कोई भी चेक वैध दायित्व नहीं बनाता और धारा 138 के तहत दंडनीय नहीं हो सकता।

यह निर्णय विधि व्यवस्था को मजबूती देने, अनियमित साहूकारी पर रोक लगाने और आपराधिक कानून के दुरुपयोग से बचाव हेतु एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।