“चेक बाउंस मामलों में क्षेत्राधिकार का निर्धारण: भुगतानकर्ता के बैंक खाते के स्थान पर आधारित – सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला”
भूमिका
भारतीय न्यायपालिका समय-समय पर ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय देती रही है जो कानून की व्याख्या को स्पष्ट करते हैं और न्यायिक प्रक्रिया में एकरूपता लाते हैं। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 और 142 के तहत एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें चेक बाउंस मामलों के क्षेत्राधिकार (jurisdiction) को लेकर लंबे समय से चली आ रही भ्रम की स्थिति को दूर किया गया।
यह फैसला LAWS(SC) 2025-7-72 के तहत दिया गया है, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चेक बाउंस मामले में क्षेत्राधिकार उस स्थान के आधार पर तय होगा जहां भुगतानकर्ता (Payee) का बैंक खाता स्थित है, न कि उस स्थान पर जहां चेक वसूली (collection) के लिए प्रस्तुत किया गया है।
मामले की पृष्ठभूमि
मामले में अपीलकर्ता ने चेक बाउंस होने पर धारा 138 N.I. Act के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत दर्ज करने के बाद, मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए शिकायत लौटा दी कि इस मामले में क्षेत्राधिकार (jurisdiction) उनके पास नहीं है, क्योंकि उन्होंने यह मान लिया था कि चेक ऐसे स्थान से संबंधित है जहां अपीलकर्ता का खाता नहीं है।
हाई कोर्ट ने भी मजिस्ट्रेट के आदेश को सही ठहराते हुए अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी। लेकिन अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और यह साबित किया कि उनका बैंक खाता वास्तव में मैंगलोर (Mangalore) में स्थित है।
विवाद का मुख्य मुद्दा
मुख्य प्रश्न यह था कि चेक बाउंस मामले में क्षेत्राधिकार किस अदालत के पास होगा —
- वह स्थान जहां चेक वसूली के लिए प्रस्तुत किया गया हो, या
- वह स्थान जहां भुगतानकर्ता का बैंक खाता स्थित है।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
1. विधिक प्रावधान
- Negotiable Instruments Act, 1881 – धारा 138: चेक के अनादर (dishonour) पर दंडनीय प्रावधान।
- धारा 142(2)(a): यदि चेक भुगतानकर्ता के बैंक में जमा किया गया है, तो वह अदालत क्षेत्राधिकार रखेगी जिसके अंतर्गत भुगतानकर्ता का बैंक स्थित है।
- CrPC – धारा 200 एवं 482: शिकायत दर्ज करने और उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां।
2. न्यायालय का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 142(2)(a) N.I. Act स्पष्ट रूप से यह निर्धारित करती है कि चेक बाउंस मामलों में, अगर चेक भुगतानकर्ता के खाते में जमा किया गया है, तो वही अदालत क्षेत्राधिकार रखेगी, जिसके अधीन भुगतानकर्ता का बैंक आता है।
न्यायालय ने Bridgestone India Private Limited v. Inderpal Singh (2016) का हवाला देते हुए कहा कि यह कानूनी स्थिति पहले से ही स्पष्ट थी, लेकिन निचली अदालतों ने गलत तरीके से मान लिया कि क्षेत्राधिकार उस जगह तय होगा जहां चेक वसूली के लिए प्रस्तुत किया गया है।
3. निर्णय का सार
- चेक बाउंस मामले में प्राथमिक आधार भुगतानकर्ता का बैंक खाता स्थान है।
- चेक जहां कलेक्शन के लिए प्रस्तुत किया गया, उसका कोई महत्व नहीं।
- अपीलकर्ता का बैंक खाता मैंगलोर में था, इसलिए मैंगलोर की अदालत के पास क्षेत्राधिकार है।
- निचली अदालतों और हाई कोर्ट के आदेश रद्द कर दिए गए।
- अपीलकर्ता को मैंगलोर की अदालत में अपनी शिकायत आगे बढ़ाने की अनुमति दी गई।
महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत जो स्थापित हुए
- क्षेत्राधिकार का स्पष्ट निर्धारण: अब इस विषय में कोई संदेह नहीं रहेगा कि चेक बाउंस मामलों में क्षेत्राधिकार भुगतानकर्ता के बैंक खाते के स्थान से तय होगा।
- प्रक्रिया में एकरूपता: यह फैसला देश भर की अदालतों में एक समान दृष्टिकोण लाएगा।
- अनावश्यक विवादों की समाप्ति: वादियों को अब यह तर्क देने की आवश्यकता नहीं कि चेक किस शाखा में जमा हुआ था।
- निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शन: मजिस्ट्रेट और अन्य न्यायालय अब सीधे धारा 142(2)(a) को लागू करेंगे।
Bridgestone India Pvt. Ltd. मामले का संदर्भ
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से Bridgestone India Pvt. Ltd. v. Inderpal Singh (2016) का हवाला दिया, जिसमें यही सिद्धांत स्थापित किया गया था कि चेक बाउंस मामलों में क्षेत्राधिकार भुगतानकर्ता के बैंक खाते के स्थान पर आधारित होगा।
व्यावहारिक प्रभाव
- शिकायत दर्ज करने में आसानी: अब भुगतानकर्ता अपने बैंक खाते के स्थान पर ही केस दर्ज कर सकता है, चाहे चेक कहीं भी प्रस्तुत किया गया हो।
- वादियों के अधिकारों की रक्षा: यह फैसला वादियों को सही मंच (forum) पर न्याय पाने का अवसर देगा।
- बैंक शाखाओं के भ्रम से मुक्ति: अब कलेक्शन सेंटर या अन्य शाखाओं का कोई प्रभाव नहीं होगा।
निष्कर्ष
LAWS(SC) 2025-7-72 के इस फैसले ने चेक बाउंस मामलों में क्षेत्राधिकार से संबंधित कानूनी स्थिति को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि कानून का उद्देश्य भुगतानकर्ता को सरल, स्पष्ट और शीघ्र न्याय दिलाना है, न कि उसे तकनीकी कारणों से न्याय से वंचित करना।
अब यह तय हो गया है कि चेक बाउंस मामले का क्षेत्राधिकार केवल भुगतानकर्ता के बैंक खाते के स्थान पर आधारित होगा, और इससे संबंधित सभी विवाद इस निर्णय के बाद समाप्त हो जाएंगे।