चुनावी सुधारों की आवश्यकता और भारत में किए गए प्रमुख चुनावी सुधार (Need for Electoral Reforms and Major Electoral Reforms in India)
प्रस्तावना (Introduction)
भारतीय लोकतंत्र की सफलता का मुख्य आधार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली है। लेकिन समय के साथ चुनाव प्रक्रिया में कई कमियाँ और चुनौतियाँ सामने आईं – जैसे कि धनबल, बाहुबल, जातिवाद, सांप्रदायिकता, चुनावी भ्रष्टाचार, और मतदाता की उदासीनता। इन्हीं कारणों से चुनावी सुधारों की आवश्यकता उत्पन्न हुई। भारत में चुनावी सुधारों की प्रक्रिया धीरे-धीरे विकसित हुई है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय, विधायिका, चुनाव आयोग और नागरिक समाज ने सक्रिय भूमिका निभाई है।
1. चुनावी सुधारों की आवश्यकता (Need for Electoral Reforms)
भारत में चुनावी सुधारों की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से महसूस की गई:
- अपराधीकरण (Criminalization of Politics): कई जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामले लंबित रहते हैं।
- धनबल का उपयोग: राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा अवैध धन का उपयोग चुनाव को प्रभावित करता है।
- बाहुबल और हिंसा: कुछ क्षेत्रों में हिंसा और डर के माहौल में मतदान होता है।
- जातिवाद और सांप्रदायिकता: मतदाताओं को जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर ध्रुवीकृत किया जाता है।
- मतदाता की उदासीनता: अनेक लोग मतदान के अधिकार का उपयोग नहीं करते, जिससे लोकतंत्र कमजोर होता है।
- राजनीतिक दलों की आंतरिक लोकतांत्रिक कमी: अधिकतर दलों में नेतृत्व वंशवादी या केंद्रीकृत रहता है।
2. भारत में किए गए प्रमुख चुनावी सुधार (Major Electoral Reforms in India)
(क) संवैधानिक और विधायी सुधार
- 62वाँ संविधान संशोधन (1988): मतदान की न्यूनतम आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन: अयोग्यता, अघोषित खर्च, अपराधी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों से जुड़े कई प्रावधान जोड़े गए।
(ख) चुनाव आयोग की पहल पर सुधार
- ईवीएम (EVM) का उपयोग: पारदर्शिता और धांधली रोकने हेतु इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग।
- वीवीपैट (VVPAT): वोटर को यह दिखाने की व्यवस्था कि उसका वोट किसे गया।
- NOTA (None of the Above): यदि मतदाता किसी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता, तो ‘NOTA’ का विकल्प उपलब्ध है।
- आचार संहिता (Model Code of Conduct): निष्पक्ष चुनाव हेतु राजनीतिक दलों के लिए दिशानिर्देश।
- चुनावी खर्च की सीमा तय करना: प्रत्याशियों के लिए खर्च की अधिकतम सीमा निर्धारित की गई है।
(ग) न्यायिक निर्णयों के माध्यम से सुधार
- PUCL बनाम भारत संघ (2003): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतदाता को उम्मीदवार की आपराधिक, शैक्षणिक और संपत्ति संबंधित जानकारी जानने का अधिकार है।
- Lily Thomas बनाम भारत संघ (2013): दोषी ठहराए गए जनप्रतिनिधि की सदस्यता तत्काल समाप्त होगी।
- लोकप्रिय मामले: सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने कई मामलों में चुनावी भ्रष्टाचार, धार्मिक उकसावे, और असामान्य चुनावी खर्चों पर रोक लगाई है।
3. भविष्य के लिए अपेक्षित सुधार (Suggested Future Reforms)
- एक साथ चुनाव (Simultaneous Elections): केंद्र और राज्य में एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव।
- राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र: दलों के अंदर चुनाव और पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- राजनीतिक दलों की वित्तीय पारदर्शिता: पार्टी फंडिंग को पारदर्शी और कानूनी दायरे में लाना।
- राजनीतिक दलबदल पर सख्ती: दल-बदल को पूरी तरह निषिद्ध करने के उपाय।
- प्रत्याशियों की शैक्षणिक और नैतिक योग्यता पर ध्यान।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा और विविधतापूर्ण लोकतंत्र है, लेकिन इसे प्रभावी और विश्वसनीय बनाए रखने के लिए चुनावी सुधार समय की मांग हैं। चुनावी प्रणाली को पारदर्शी, जवाबदेह और प्रतिनिधित्वकारी बनाना आवश्यक है। यह केवल निर्वाचन आयोग या न्यायालय की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि जनता, राजनीतिक दलों और सरकार – सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है कि चुनावों को स्वच्छ, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप बनाया जाए।