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“चुनावी ड्यूटी में शिक्षक को अंतिम विकल्प: Allahabad High Court (2025) का निर्देश एवं न्यायशास्त्र”

“चुनावी ड्यूटी में शिक्षक को अंतिम विकल्प: Allahabad High Court (2025) का निर्देश एवं न्यायशास्त्र”


प्रस्तावना

चुनावी प्रक्रिया सुचारु रूप से चलने के लिए विभिन्न सरकारी कर्मचारियों की सहायता आवश्यक होती है। अक्सर, शिक्षकों को Booth Level Officer (BLO) या अन्य निर्वाचन सम्बंधित कर्तव्यों के लिए तैनात किया जाता है। लेकिन यह प्रश्न हमेशा बना रहता है— क्या शिक्षक को यह जिम्मेदारी तब दी जानी चाहिए जब अन्य कर्मचारियों की उपलब्धता हो? क्या शिक्षक को पहले प्रयोग किया जाना उचित होगा, या उन्हें केवल अंत में (last resort) नियुक्त करना चाहिए?

2025 में Allahabad हाई कोर्ट ने इस संवेदनशील विषय पर एक दिशानिर्देश जारी किया — कि शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी केवल आखिरी विकल्प के तौर पर लगाया जाए और यदि अन्य श्रेणी के कर्मचारी हों, उन्हें पहले तैनात किया जाए। इस आदेश का प्रकाशन LawBeat सहित अन्य विधिक पोर्टल्स पर हुआ है।

नीचे हम इसके विस्तार में जाएंगे — तथ्य, न्यायालय का तर्क, अपेक्षित कानूनी और संवैधानिक बिंदु, तुलना अन्य फैसलों से, और निहितार्थ एवं सुझाव।


तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

  1. मामले का प्रसंग
    • एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया कि उत्तर प्रदेश सरकार / निर्वाचन प्राधिकारी ने शिक्षकों को BLO या अन्य चुनावी कर्तव्यों के लिए तैनात किया है।
    • याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इस तैनाती से उनकी मूल शिक्षण कर्तवियाँ प्रभावित होंगी, और यदि अन्य कर्मचारियों का उपयोग संभव हो, तो शिक्षक को प्राथमिकता न दी जाए।
  2. Allahabad High Court का आदेश / निर्देश
    • हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि शिक्षकों की BLO / अन्य चुनावी तैनाती की पुनर्समीक्षा (refix deployment) की जाए।
    • न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि यदि Election Commission Guidelines No. 1.2 में सूचीबद्ध अन्य श्रेणियों के कर्मचारी उपलब्ध हों, तो पहले उन्हें तैनात किया जाना चाहिए, न कि शिक्षक को।
    • शिक्षक को चुनावी ड्यूटी केवल तब दी जाए, यदि अन्य विकल्प पूरी तरह से समाप्त हो जाएँ — अर्थात् शिक्षक “last resort” हों।
    • कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तैनाती को मंज़ूर समय (non-teaching hours) या अवकाश / छुट्टियों में होना चाहिए, न कि नियमित शिक्षण समय में।
    • आदेश में यह भी कहा गया कि यदि शिक्षक पहले से ही BLO सूची में नामित हैं, तब भी पुनर्समीक्षा होनी चाहिए और जहां संभव हो, उनकी तैनाती समायोजित की जाए।
  3. मीडिया / रिपोर्टिंग विवरण
    • Economic Times ने इस आदेश को बताते हुए लिखा कि हाई कोर्ट ने कहा कि शिक्षक को BLO अथवा अन्य चुनावी कर्तव्यों पर लगाया जाना अनिवार्य नहीं है, बल्कि केवल “minimal appointment of teachers” के सिद्धांत का कड़ाई से पालन किया जाए।
    • Times of India ने रिपोर्ट किया कि Allahabad HC ने कहा कि यदि अन्य कर्मचारी उपलब्ध हों, तो शिक्षक को चुनावी ड्यूटी नहीं दी जाए।

इस प्रकार, यह मामला स्पष्ट करता है कि हाई कोर्ट ने शिक्षक की प्राथमिकता, शिक्षा कार्य की रक्षा और संवैधानिक संतुलन पर ध्यान देते हुए आदेश दिया।


न्यायालय का तर्क: संवैधानिक और कानूनी आधार

न्यायालय ने इस आदेश को विभिन्न तर्कों, मानदंडों और पूर्वनिर्णयों के सन्दर्भ में स्थापित किया। नीचे उनके मुख्य तर्क और व्याख्या है:

1. निर्देशों (Guidelines) की भूमिका और अधिरक्षा

  • कोर्ट ने विशेष रूप से Election Commission Guideline No. 1.5d और Guideline No. 1.2 का उल्लेख किया है, जिनमें यह विनिर्दिष्ट है कि किन-किन श्रेणियों के कर्मचारी चुनावी कर्तव्यों (जैसे BLO) में तैनात किए जाएँ।
  • इन Guidelines में शिक्षक को प्राथमिक श्रेणी (high priority) नहीं दिया गया है; वे अन्य श्रेणियों (कर्यपालिका, पंचायती राज, स्वास्थ्य, प्रशासन आदि) के कर्मचारी पहले प्रयोग में लाने का निर्देश हैं।
  • न्यायालय ने कहा कि यदि अन्य श्रेणियों के कर्मचारी उपलब्ध हों, तो शिक्षक को तैनात करना Guideline के विरुद्ध होगा।
  • इस दृष्टिकोण से, यदि राज्य सरकार / उत्तर प्रदेश प्रशासन ने शिक्षक को प्रथम विकल्प माना हो, तो वह Guidelines के अनुरूप नहीं होगा और न्यायालय उसे निरस्तीकरण कर सकता है।

2. शिक्षण कार्य की रक्षा और प्राथमिकता

  • शिक्षक का मूल कर्तव्य शिक्षण और विद्यार्थियों की देखभाल है। यदि उन्हें चुनावी ड्यूटी में लगाया जाए जो नियमित शिक्षण समय को प्रभावित करे, तो विद्यार्थियों का शैक्षिक हित प्रभावित होगा।
  • न्यायालय ने यह उल्लेख किया कि शिक्षा का अधिकार (Right to Education) और शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखना प्राथमिक है, और शिक्षक को अतिरिक्त कर्तव्यों में इतना बँधा नहीं जाना चाहिए कि वह उनका मूल फर्ज बाधित हो।
  • इसलिए, निर्वाचन/चुनावी ड्यूटी केवल अवकाश / छुट्टियों / गैर-पाठ्य समय में होनी चाहिए, न कि नियमित कक्षा समय में।

3. न्यायसंगत प्रक्रिया (Due Process) और विवेक-प्रयोग (Application of Mind)

  • यदि किसी शिक्षक को तैनात किया जाए या उनकी तैनाती समायोजन करने का आदेश हो, तो यह आदेश सुचित, लिखित, व संभवतः जवाबदेही (opportunity to respond) होनी चाहिए।
  • यदि शिक्षक पहले से BLO सूची में नामित हों, फिर भी पुनर्समीक्षा होनी चाहिए, ताकि यह देखा जाए कि सही कारण (competence, स्वास्थ्य, अन्य प्रतिबद्धताएँ) है या नहीं, और कहां उन्हें अन्य तैनाती दी जाए (Adjustment)।
  • आदेश तभी लागू करना चाहिए जब वह प्रक्रिया और विवेक प्रयोग से होकर हो, न कि स्वेच्छाचारी या अपारदर्शी निर्णय से।

4. अनुपात (Proportionality) और सीमाएँ

  • संविधान और न्यायशास्त्र में यह सिद्धांत है कि सार्वजनिक कार्रवाई को अनुपात एवं न्यायसंगतता की कसौटी पर परखा जाना चाहिए।
  • यदि शिक्षक को चुनावी कर्तव्य दिया जाता है, तो वह अपेक्षाकृत कम समय, कम बोझ और सीमित अवधि के लिए होना चाहिए, न कि शिक्षा कार्य की पूरी अवधि पर।
  • यदि अन्य विकल्प मौजूद हों, शिक्षक को पहले प्रयोग करना अनुपातहीन (disproportionate) होगा।
  • इस प्रकार, उच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत को निर्देशों में समाहित किया — शिक्षकों को अंतिम विकल्प (last resort) मानना।

5. पूर्वनिर्णयों और दिशा-निर्देश

  • कोर्ट ने अन्य उच्च न्यायालयों एवं Suprema कोर्ट के निर्देशों को संदर्भित किया होगा, जैसे Election Commission of India v. St. Mary’s School के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि चुनावी ड्यूटी शिक्षकों को तभी दी जाए जब अन्य विकल्प नहीं हों और समयबद्ध तरीके से।
  • इस फैसले को हालिया पृष्ठभूमि निर्णयों (जैसे Surya Pratap Singh आदि) से जोड़ा गया होगा जिसमें यह दृष्टिकोण स्थापित है कि शिक्षा की प्राथमिकता बनी रहे। (LawBeat की रिपोर्ट ने Surya Pratap Singh मामले के संदर्भ का उल्लेख किया है।)

तुलना: इस फैसले और अन्य मुकदमे

इस निर्णय को अन्य मामलों से जोड़कर देखने पर कुछ समानताएँ और विरोधाभास सामने आते हैं:

  1. Yatendra & Others v. State of U.P.
    • उस मामले में उच्च न्यायालय ने कहा कि वेतन रोके जाने का आदेश “अधिकार के बिना” है क्योंकि कोई स्पष्ट कानून नहीं है।
    • वहां भी शिक्षक की वेतन कटौती या दंडात्मक कार्रवाई की बाध्यता न होने की बात कही गई।
    • वर्तमान आदेश में, शिक्षक की तैनाती के संदर्भ में यह आगे बढ़ा है कि वे last resort हो और अन्य विकल्प प्रयुक्त हों।
  2. Kailash Babu & Another v. State of U.P.
    • उस मामले में BSA को वेतन रोकने का अधिकार नहीं माना गया।
    • अनुमति दी गई कि शिक्षक को चुनावी ड्यूटी दिया जाए, लेकिन दंड या कटौती न हो।
    • वर्तमान आदेश ने इससे आगे जाकर तैनाती की प्राथमिकता पर नियंत्रण रखते हुए दिशा निर्देश जारी किए।
  3. अन्य उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय निर्णय
    • कई मामलों में यह कहा गया कि यदि शिक्षक को चुनावी ड्यूटी देना हो, तो वह अवकाश या गैर-पाठ्य समय में हो।
    • कुछ न्यायालयों ने कहा है कि शिक्षा कार्य की बाधा नहीं होनी चाहिए।
    • लेकिन यह निर्णय विशेष इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने “teacher as last resort” की अवधारणा को स्पष्ट निर्देश रूप में स्थापित किया है।

आलोचनाएँ एवं चुनौतियाँ

हालाँकि यह आदेश शिक्षा-हित और शिक्षक-हित संतुलन को बनाए रखने की ओर एक सकारात्मक कदम है, लेकिन उसके कुछ आलोचनात्मक बिंदु और चुनौतियाँ हैं:

  1. व्यवहार में चुनौती
    • राज्य / जिला प्रशासन को यह देखना होगा कि अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या उपलब्ध हो। कई ग्रामीण / पिछड़े क्षेत्रों में ऐसा न हो।
    • यदि शिक्षक ही प्रमुख स्रोत हों, तो उन्हें अंत में भी तैनात करना पड़ सकता है।
  2. गाइडलाइन्स बनाम नियम-कानून
    • आदेश सीमित रूप से Guidelines (निर्देशों) पर आधारित है; यदि राज्य सरकार इसे कानून / अनिवार्य नियमावली न दे, तो भविष्य में विवाद हो सकता है।
    • यदि प्रशासन इस निर्देश को अनदेखा करे, तो शिक्षक को पुनः याचिका लगानी पड़ सकती है।
  3. कार्यक्षमता और संचालन खर्च
    • यदि प्रशासन को अन्य श्रेणियों के कर्मचारियों को तैनात करने में लागत, ट्रेनिंग या व्यवस्था करनी हो, अतिरिक्त व्यय हो सकता है।
    • चुनाव समय बहुत सीमित होता है; त्वरित तैनाती करनी हो — आदेश पालन में देरी हो सकती है।
  4. दंडात्मक कार्रवाई एवं समायोजन
    • आदेश कहता है कि यदि शिक्षक पहले से BLO सूची में हों, पुनर्समीक्षा हो और समायोजन किया जाए। लेकिन यह समायोजन कैसे होगा — क्या अन्य शिक्षण कार्य, स्थानांतरण, या भत्ते आदि? —यह स्पष्ट नहीं हो सकता।
    • यदि शिक्षक ने पहले से BLO की भूमिका स्वीकारी हो और अब पुनर्समीक्षा के बाद हटाया जाए, तो उसका मनोवैज्ञानिक एवं सेवा-अवस्था पर प्रभाव हो सकता है।

निहितार्थ एवं सुझाव

इस निर्णय से निम्नलिखित निहितार्थ और सुधारात्मक सुझाव सामने आते हैं:

  1. राज्य सरकार / शिक्षा विभागों के लिए
    • इस आदेश को ध्यान में रखते हुए कानून / नियामावली बनानी चाहिए, जो शिक्षक तैनाती की प्रक्रिया, शर्तें एवं समायोजन स्पष्ट करें।
    • तैनाती सूची पहले तैयार करें, जिसमें अन्य श्रेणियों के कर्मचारी प्राथमिक हों।
    • यदि शिक्षक को तैनात करना हो, तो उनका अवकाश / अतिथि समय या छुट्टियों में उपयोग करें।
    • पुनर्समीक्षा (refix) प्रक्रिया को समयबद्ध करें — ताकि सूची और तैनाती पारदर्शी हों।
  2. निर्वाचन आयोग / राज्य निर्वाचन आयोग
    • अपने Guidelines में यह स्पष्ट करें कि शिक्षक को last resort माना जाए और अन्य श्रेणियों का प्रयोग पहले हो।
    • चुनावी कार्यक्रम को इस तरह व्यवस्थित करें कि शिक्षक की तैनाती शिक्षा से कम टकराते हों।
  3. शिक्षक / शिक्षक संघ
    • यदि उन्हें अनियोजित तैनाती या दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़े, तो न्यायालय का सहारा लें।
    • शिक्षक समय सारिणी, अवकाश, कक्षा साप्ताहिक रिपोर्ट आदि दस्तावेजी रखें ताकि उनका पक्ष दृढ़ हो।
  4. न्यायालयों की सतर्कता
    • न्यायालयों को इस तरह के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करवाना चाहिए और विधिसम्मत अनुपालना न होने पर निर्देश जारी करना चाहिए।
    • यदि प्रशासन निर्देशों का उल्लंघन करे, तो त्वरित निर्देश और पुनरावलोकन करना चाहिए।
  5. निरंतर मूल्यांकन और समीक्षा
    • इस आदेश के क्रियान्वयन की समीक्षा होनी चाहिए — कितनी बार शिक्षकLAST RESORT के रूप में तैनात हुए, कितनी अपेक्षाकृत तैनाती हुई, शिक्षा कार्य पर प्रभाव हुआ या नहीं।
    • यदि आदेश पालन में कठिनाई हो, तो अद्यतन नीति परिवर्तन किए जाएँ।

निष्कर्ष

“Teachers Should Be Last Resort for Election Duties (Allahabad HC, 2025)” निर्णय एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो यह स्पष्ट करता है कि शिक्षकों को चुनावी कर्तव्यों के लिए नियुक्त करना आसान नहीं है — उन्हें अंतिम विकल्प (last resort) माना जाना चाहिए। यदि अन्य श्रेणी के कर्मचारी उपलब्ध हों, तो उन्हें पहले तैनात किया जाए। शिक्षक की तैनाती केवल अवकाश / गैर-पाठ्य समय में होनी चाहिए, और यदि पहले से BLO सूची में नामित हों, तो पुनर्समीक्षा और समायोजन किया जाना चाहिए।