चिकित्सा में सहमति (Informed Consent) का महत्व और कानूनी पहलू : एक विस्तृत अध्ययन
प्रस्तावना
चिकित्सा विज्ञान केवल रोगों के उपचार की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मानवीय और नैतिक कार्य है जो डॉक्टर और रोगी के बीच विश्वास और सहयोग पर आधारित होता है। रोगी का शरीर और उसका स्वास्थ्य उसकी निजी संपत्ति है। इसलिए किसी भी चिकित्सकीय हस्तक्षेप से पहले रोगी की सहमति लेना एक आवश्यक शर्त है।
इसी संदर्भ में Informed Consent (सूचित सहमति) की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यह न केवल चिकित्सा-नैतिकता (Medical Ethics) का अभिन्न अंग है, बल्कि कानूनी दृष्टि से भी डॉक्टर की जिम्मेदारी और रोगी का अधिकार सुनिश्चित करती है।
इस लेख में हम चिकित्सा में सहमति की आवश्यकता, उसके प्रकार, कानूनी महत्व, भारतीय न्यायालयों के निर्णय और व्यावहारिक पहलुओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
सहमति (Consent) का अर्थ
सहमति का अर्थ है – किसी व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से, बिना किसी दबाव, धोखा या गलत जानकारी के किसी कार्य को करने या करवाने की अनुमति देना।
चिकित्सा में सहमति का अर्थ है – रोगी द्वारा डॉक्टर को यह अधिकार देना कि वह उसके स्वास्थ्य की स्थिति का उपचार करे।
Informed Consent का महत्व
- रोगी की स्वायत्तता (Patient Autonomy) – हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपने शरीर और स्वास्थ्य से संबंधित निर्णय स्वयं ले।
- विश्वास का निर्माण – सहमति की प्रक्रिया डॉक्टर और रोगी के बीच विश्वास का आधार बनती है।
- जोखिम और लाभ की जानकारी – रोगी को संभावित जोखिम, विकल्प और परिणाम के बारे में बताना आवश्यक है।
- नैतिक कर्तव्य – डॉक्टर का दायित्व है कि वह उपचार से पहले पूर्ण जानकारी दे।
- कानूनी सुरक्षा – यदि सहमति नहीं ली जाती तो यह अवैध आक्रमण (Battery) या लापरवाही (Negligence) माना जा सकता है।
सहमति के प्रकार
- स्पष्ट सहमति (Express Consent)
- मौखिक (Oral) – छोटी प्रक्रियाओं जैसे इंजेक्शन, ब्लड टेस्ट।
- लिखित (Written) – बड़ी सर्जरी, एनेस्थीसिया, जोखिमपूर्ण उपचार।
- निहित सहमति (Implied Consent)
- रोगी जब स्वयं डॉक्टर के पास जांच या परामर्श के लिए आता है तो यह माना जाता है कि उसने जांच हेतु सहमति दी है।
- सूचित सहमति (Informed Consent)
- जब रोगी को उपचार की प्रकृति, लाभ, जोखिम, विकल्प और परिणाम की जानकारी देकर लिखित रूप से सहमति ली जाती है।
- प्रतिनिधि द्वारा सहमति (Proxy Consent)
- यदि रोगी नाबालिग हो या मानसिक रूप से असमर्थ हो तो अभिभावक या परिजन सहमति देते हैं।
- आपातकालीन स्थिति में सहमति (Emergency Consent)
- यदि रोगी अचेत हो और जीवन बचाने के लिए तुरंत उपचार आवश्यक हो तो बिना सहमति के भी उपचार किया जा सकता है।
Informed Consent की आवश्यकताएँ
- रोगी को निम्न बिंदुओं की जानकारी दी जानी चाहिए :
- रोग की प्रकृति और स्थिति।
- प्रस्तावित उपचार या प्रक्रिया का विवरण।
- संभावित लाभ।
- संभावित जोखिम और दुष्परिणाम।
- अन्य उपलब्ध विकल्प।
- उपचार न कराने के परिणाम।
- खर्च और अवधि।
- जानकारी रोगी की भाषा और समझ के अनुसार होनी चाहिए।
- सहमति लिखित रूप में ली जानी चाहिए और उस पर रोगी के हस्ताक्षर (या अंगूठा निशान) तथा गवाह का हस्ताक्षर होना चाहिए।
भारत में सहमति और कानूनी प्रावधान
1. भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860
- धारा 87 – यदि कोई व्यक्ति अपनी सहमति से ऐसा कार्य करवाता है जिससे उसे हानि हो सकती है, और वह कार्य 18 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति पर किया गया हो तो अपराध नहीं माना जाएगा।
- धारा 88 – अच्छे विश्वास में किसी के लाभ के लिए उसकी सहमति से किया गया कार्य अपराध नहीं है।
- धारा 90 – यदि सहमति डर, धोखे या दबाव से ली गई हो तो वह वैध नहीं है।
2. भारतीय संविदा अधिनियम, 1872
- सहमति तभी वैध मानी जाएगी जब वह स्वतंत्र और बिना दबाव के हो।
3. भोगौलिक और वैधानिक आयु
- भारत में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति की सहमति वैध नहीं मानी जाती।
- ऐसे मामलों में अभिभावक की सहमति आवश्यक है।
4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
- रोगी को उपभोक्ता माना गया है।
- बिना सहमति के उपचार “अनुचित सेवा” या “लापरवाही” मानी जा सकती है।
5. चिकित्सक आचार संहिता (MCI Code of Ethics, 2002)
- भारतीय चिकित्सा परिषद (अब NMC) ने स्पष्ट किया है कि किसी भी सर्जरी या जोखिमपूर्ण उपचार से पहले लिखित सहमति लेना अनिवार्य है।
न्यायालयीन दृष्टिकोण (Case Laws)
- Samira Kohli v. Dr. Prabha Manchanda (2008, Supreme Court)
- रोगी से केवल डायग्नोस्टिक लैप्रोस्कोपी के लिए सहमति ली गई थी, लेकिन डॉक्टर ने बिना अनुमति हिस्टेरेक्टॉमी कर दी।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अवैध हस्तक्षेप है।
- निर्णय : रोगी की सूचित सहमति के बिना कोई अतिरिक्त प्रक्रिया नहीं की जा सकती।
- Dr. T.T. Thomas v. Elisa (1986, Kerala HC)
- बिना सहमति ऑपरेशन करना नागरिक और आपराधिक दायित्व है।
- Mr. X v. Hospital Z (1998, Supreme Court)
- गोपनीयता का उल्लंघन बनाम सार्वजनिक हित का मामला।
- डॉक्टर को HIV+ रोगी की जानकारी रोगी की होने वाली पत्नी को बताने का अधिकार था।
- सहमति और गोपनीयता के बीच संतुलन आवश्यक।
- M. Chinnaiyan v. Sri Gokulam Hospital (2007, NCDRC)
- सहमति पत्र स्पष्ट और व्यापक होना चाहिए। अस्पष्ट सहमति अमान्य है।
सहमति की कानूनी सीमाएँ
- नाबालिग और मानसिक रूप से असमर्थ व्यक्ति – उनकी सहमति मान्य नहीं।
- आपातकालीन स्थिति – जीवनरक्षा के लिए बिना सहमति उपचार संभव।
- अवैध उद्देश्य के लिए सहमति – यदि कार्य कानूनन अपराध है तो सहमति भी अमान्य।
- अस्पष्ट या सामान्य सहमति – कानूनी दृष्टि से कमजोर।
व्यावहारिक चुनौतियाँ
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोगियों की अनभिज्ञता।
- भाषा की बाधा।
- लंबी कानूनी प्रक्रियाओं का डर।
- अस्पतालों द्वारा औपचारिकता मात्र निभाना।
- डॉक्टरों पर समय का दबाव।
सुधार और सुझाव
- सहमति को रोगी-अनुकूल बनाना – सरल भाषा, मातृभाषा में सहमति पत्र।
- डिजिटल सहमति प्रणाली – ई-रिकॉर्ड और वीडियो रिकॉर्डिंग।
- निरंतर प्रशिक्षण – डॉक्टरों को कानूनी और नैतिक शिक्षा देना।
- रोगी जागरूकता – अधिकारों और सहमति की जानकारी।
- मानकीकृत प्रारूप – सभी अस्पतालों के लिए एकसमान सहमति पत्र।
- गोपनीयता की रक्षा – रोगी की जानकारी सुरक्षित रखना।
निष्कर्ष
चिकित्सा में सहमति केवल कानूनी औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह रोगी के अधिकारों और डॉक्टर की जिम्मेदारी का संतुलन है। Informed Consent रोगी को निर्णय लेने का अधिकार देता है और डॉक्टर को कानूनी सुरक्षा। भारतीय न्यायालयों ने भी यह स्पष्ट किया है कि बिना रोगी की सहमति के कोई भी चिकित्सा प्रक्रिया वैध नहीं है।
आज आवश्यकता है कि सहमति की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, रोगी-अनुकूल और कानूनी रूप से मजबूत बनाया जाए। तभी हम चिकित्सा क्षेत्र में नैतिकता, विश्वास और न्याय का संतुलन बनाए रख सकेंगे।