लेख शीर्षक:
“चार्जशीट अधूरी तो बेल जरूरी: फोरेंसिक रिपोर्ट के अभाव में 180 दिनों के बाद जमानत का हक — कलकत्ता हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”
परिचय
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में NDPS अधिनियम (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) के तहत एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि चार्जशीट में यदि अनिवार्य फोरेंसिक रिपोर्ट (FSL Report) शामिल नहीं है, तो उसे पूर्ण चार्जशीट नहीं माना जा सकता, और इस स्थिति में अभियुक्त को धारा 167 CrPC के तहत वैधानिक जमानत (Default Bail) का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
मामले की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता को 31 जनवरी 2024 को NDPS अधिनियम की धाराओं 21C, 25, 27A, एवं 29 के तहत गिरफ्तार किया गया था।
- जांच एजेंसी ने 180 दिनों की सीमा के भीतर, 177वें दिन चार्जशीट तो दाखिल कर दी, लेकिन उसमें फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) की रिपोर्ट शामिल नहीं थी।
- याचिकाकर्ता ने 181वें दिन वैधानिक जमानत की अर्जी दाखिल की।
- फोरेंसिक रिपोर्ट चार्जशीट के दाखिल होने के बाद एक अनुपूरक (supplementary) चार्जशीट में दाखिल की गई, जो 180 दिनों की अवधि के बाद हुई।
कलकत्ता हाईकोर्ट का निर्णय: प्रमुख बिंदु
- चार्जशीट का पूर्ण न होना:
न्यायालय ने माना कि जब तक FSL रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जाती, NDPS अधिनियम जैसे गंभीर अपराधों में चार्जशीट पूर्ण नहीं मानी जा सकती। - वैधानिक जमानत का अधिकार:
चूंकि 180 दिनों के भीतर पूरी चार्जशीट दाखिल नहीं की गई थी, इसलिए याचिकाकर्ता का वैधानिक जमानत पाने का अधिकार स्वतः उत्पन्न हो गया। - न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन:
ट्रायल कोर्ट द्वारा बेल याचिका को खारिज करना न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन था। हाईकोर्ट ने इसे “procedural safeguards under NDPS Act” का सीधा उल्लंघन बताया। - CrPC की धारा 173 और 167(2):
CrPC की धारा 173 के अंतर्गत सम्पूर्ण रिपोर्ट दाखिल करना अनिवार्य है, और धारा 167(2) के तहत जांच पूरी न होने की स्थिति में अभियुक्त को वैधानिक जमानत का अधिकार है।
फैसले का प्रभाव
यह फैसला NDPS जैसे कठोर कानूनों के दुरुपयोग की संभावनाओं पर अंकुश लगाता है और सुनिश्चित करता है कि:
- जांच एजेंसियां समयसीमा का सख्ती से पालन करें,
- अधूरी चार्जशीट के नाम पर अभियुक्त को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता,
- अभियुक्त के वैधानिक अधिकारों की रक्षा हो।
निष्कर्ष
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में न्यायिक संतुलन और प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने की दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है। NDPS अधिनियम जैसे कठोर कानूनों के अंतर्गत भी अदालतों ने यह स्पष्ट किया है कि संवैधानिक और प्रक्रियात्मक अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता। यदि फोरेंसिक रिपोर्ट समय पर नहीं है, तो चार्जशीट अधूरी मानी जाएगी और अभियुक्त को वैधानिक जमानत का लाभ मिलेगा — यह निर्णय न्याय की अवधारणा को और मजबूत करता है।
संदर्भ:
- Calcutta High Court Judgment – 2025
- NDPS Act, 1985 – Sections 21C, 25, 27A, 29
- Code of Criminal Procedure – Sections 173, 167(2), and 437
- FSL Report and Charge Sheet Procedure under Indian Criminal Law