“चाइल्ड केयर लीव के बाद प्रतिकूल ACR: महिला जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से मांगा जवाब”

लेख शीर्षक:
“चाइल्ड केयर लीव के बाद प्रतिकूल ACR: महिला जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से मांगा जवाब”


परिचय:
न्यायिक सेवा में कार्यरत महिला अधिकारियों को भी पारिवारिक और मातृत्व संबंधी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना पड़ता है। ऐसे में चाइल्ड केयर लीव (CCL) का प्रावधान उन्हें इस संतुलन को बनाए रखने में सहायता देता है। परंतु, यदि इस संवैधानिक सुविधा का प्रयोग करने पर प्रतिकूल प्रभाव डाला जाए, जैसे कि वार्षिक गोपनीय प्रविष्टियों (ACR) में नकारात्मक टिप्पणी, तो यह न केवल भेदभावपूर्ण है बल्कि सेवा नियमों का भी उल्लंघन है। इसी मुद्दे को लेकर एक महिला एडिशनल जिला जज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, जिस पर 13 जून 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया है।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • महिला जज ने चाइल्ड केयर लीव हेतु आवेदन किया था, जो कि भारत सरकार के सेवा नियमों में स्वीकृत और संरक्षित सुविधा है।
  • छुट्टी से लौटने के बाद उन्हें उनकी ACR (Annual Confidential Report) में प्रतिकूल प्रविष्टियां दी गईं।
  • उनका आरोप है कि ये प्रविष्टियां पूर्वाग्रह और भेदभाव पर आधारित हैं और उनका उद्देश्य उन्हें सेवा में हतोत्साहित करना है।
  • उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि इन ACR प्रविष्टियों को हटाया जाए और जांच कराई जाए कि क्या यह CCL के कारण हुआ।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया:

  • न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और संजय करोल की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह मामला प्रशासनिक न्याय और लैंगिक समानता से संबंधित गंभीर प्रश्न उठाता है।
  • कोर्ट ने संबंधित हाईकोर्ट प्रशासन से दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है।
  • कोर्ट ने कहा कि यदि महिला अधिकारियों को CCL लेने पर ACR में दंडित किया जाता है, तो यह सेवा में लैंगिक संवेदनशीलता की कमी का संकेत है।

कानूनी और संवैधानिक मुद्दे:

  1. चाइल्ड केयर लीव का अधिकार:
    • CCL भारत सरकार के महिला कर्मचारियों को उपलब्ध कराई गई एक वैधानिक सुविधा है।
    • यह Fundamental Rule 18-A और विभिन्न DOPT निर्देशों के तहत स्वीकृत है।
    • महिला न्यायिक अधिकारियों को यह सुविधा समान रूप से मिलनी चाहिए।
  2. ACR का दुरुपयोग:
    • ACR किसी कर्मचारी के सेवा प्रदर्शन का निष्पक्ष मूल्यांकन होता है, न कि उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों का प्रतिबिंब।
    • सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई निर्णयों में यह कहा गया है कि ACR रिपोर्ट पूर्वाग्रह रहित होनी चाहिए।
  3. लैंगिक समानता और कार्यस्थल पर संवेदनशीलता:
    • संविधान का अनुच्छेद 15(3) और अनुच्छेद 16 महिलाओं को समान अवसर और विशेष संरक्षण की गारंटी देता है।
    • महिला अधिकारियों को मातृत्व और बच्चों की देखभाल के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

इस निर्णय का व्यापक प्रभाव:

  • यह मामला न्यायिक सेवा जैसी प्रतिष्ठित सेवा में लैंगिक समानता और कार्यस्थल पर संवेदनशीलता के संदर्भ में एक नजीर बन सकता है।
  • यदि सुप्रीम कोर्ट महिला जज के पक्ष में फैसला देती है, तो यह अन्य महिला अधिकारियों को भी चाइल्ड केयर और मातृत्व सुविधाओं का सम्मानपूर्वक प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
  • यह निर्णय ACR की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए मानक स्थापित कर सकता है।

निष्कर्ष:
महिला एडिशनल जिला जज की याचिका केवल एक व्यक्तिगत लड़ाई नहीं, बल्कि न्यायपालिका में लैंगिक समानता और संवेदनशील प्रशासनिक दृष्टिकोण की मांग है। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इस दिशा में एक निर्णायक कदम है और आने वाले समय में यह तय करेगा कि क्या न्यायिक तंत्र अपने भीतर भी न्याय सुनिश्चित कर पा रहा है या नहीं।