शीर्षक: घोषणापत्र (Proclamation) की वैधानिकता पर महत्वपूर्ण निर्णय: हरप्रीत सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य, CRM-M-14904-2025, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
परिचय:
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 82 के तहत जब कोई आरोपी न्यायालय की कार्यवाही से अनुपस्थित रहता है और न्यायालय को विश्वास हो जाता है कि वह फरार है या स्वयं को छिपा रहा है, तो उसे “घोषित अपराधी” (Proclaimed Offender) घोषित किया जा सकता है। लेकिन यह प्रक्रिया केवल तभी वैध मानी जाती है जब इसका अनुपालन सुस्पष्ट वैधानिक प्रावधानों के अनुसार किया गया हो। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरप्रीत सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य [CRM-M-14904-2025] में इस संदर्भ में एक अहम निर्णय दिया, जो न्यायिक प्रक्रियाओं की वैधानिकता एवं अभियुक्त के मौलिक अधिकारों की रक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस प्रकरण में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी हरप्रीत सिंह के विरुद्ध बिना यह स्पष्ट किए कि वह फरार है अथवा स्वयं को छिपा रहा है, धारा 82 CrPC के तहत प्रोक्लेमेशन जारी कर दिया। याचिकाकर्ता ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
न्यायालय का निर्णय और विश्लेषण:
माननीय उच्च न्यायालय ने प्रोक्लेमेशन को अवैध एवं शून्य (nullity) करार देते हुए आदेश को रद्द कर दिया और निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला:
1. धारा 82 के तहत आदेश देने से पूर्व “संतोष की अभिव्यक्ति” (Recording of Satisfaction) अनिवार्य है:
- न्यायालय को पहले यह स्पष्ट रूप से दर्ज करना होता है कि उसे यह संतोष है कि आरोपी फरार है या स्वयं को छिपा रहा है।
- इस केस में ट्रायल कोर्ट ने ऐसा कोई संतोष या कारण नहीं दर्ज किया, जिससे स्पष्ट हो सके कि आरोपी ने जानबूझकर न्यायिक प्रक्रिया से बचने का प्रयास किया।
2. धारा 82(2) के अंतर्गत प्रक्रिया का पालन अनिवार्य:
- CrPC की धारा 82(2) में बताया गया है कि कैसे और किन माध्यमों से प्रोक्लेमेशन का प्रकाशन होना चाहिए (जैसे: सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करना, संबंधित थाना क्षेत्र में प्रचार आदि)।
- उच्च न्यायालय ने कहा कि यह प्रक्रिया अनिवार्य (Mandatory) है, और इसका पालन न किया जाना “अनियमितता” नहीं बल्कि “अवैधता” (Illegality) है।
3. “Uncurable Illegality” और प्रक्रिया की निरस्तता:
- न्यायालय ने इस बात को रेखांकित किया कि जब CrPC के आवश्यक प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता, तो उससे उपजा आदेश संवैधानिक रूप से अस्थिर होता है।
- ऐसे आदेशों को बाद में सुधारा नहीं जा सकता और उनके आधार पर की गई आगे की सभी कार्यवाहियाँ स्वतः शून्य हो जाती हैं।
4. मौलिक अधिकारों की रक्षा:
- यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Article 21) और न्यायसंगत प्रक्रिया के अधिकार की रक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- व्यक्ति को “घोषित अपराधी” ठहराना कोई साधारण आदेश नहीं है; यह उसके सामाजिक और कानूनी अधिकारों को गहराई से प्रभावित करता है।
निष्कर्ष:
हरप्रीत सिंह बनाम पंजाब राज्य केस का यह निर्णय स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि न्यायिक आदेशों में प्रक्रिया की अनुपालना केवल औपचारिकता नहीं बल्कि वैधानिक आवश्यकता है। जब कोई न्यायालय धारा 82 CrPC के तहत प्रोक्लेमेशन जारी करता है, तो उसे यह स्पष्ट रूप से दर्शाना होगा कि:
- आरोपी फरार है या स्वयं को छिपा रहा है।
- सभी विधिसम्मत प्रचार माध्यमों से प्रोक्लेमेशन प्रकाशित किया गया।
- आदेश में रिकॉर्डेड सैटिस्फैक्शन मौजूद है।
यदि ये तत्व नहीं हैं, तो ऐसा आदेश अवैध और शून्य माना जाएगा।
इस निर्णय का महत्व:
- यह निर्णय ट्रायल कोर्टों को चेतावनी देता है कि वे मूलभूत प्रक्रिया का सम्मान करें और वैधानिक प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करें।
- साथ ही, अभियुक्तों को भी यह अधिकार देता है कि वे ऐसी त्रुटिपूर्ण घोषणाओं को चुनौती दें और अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें।