“घूस की मांग और स्वीकारोक्ति की पुष्टि के बिना भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 20 के तहत अभियुक्त पर अभियोजन संभव नहीं: मदन लाल बनाम राजस्थान राज्य, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय”

शीर्षक: “घूस की मांग और स्वीकारोक्ति की पुष्टि के बिना भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 20 के तहत अभियुक्त पर अभियोजन संभव नहीं: मदन लाल बनाम राजस्थान राज्य, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय”


परिचय:

भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन एजेंसियाँ अक्सर प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988) की धारा 20 का सहारा लेती हैं, जिसमें घूस स्वीकार करने पर अभियुक्त के विरुद्ध एक विधिसम्मत अनुमान (Presumption) लगाया जाता है। हालांकि, यह अनुमान तभी लागू होता है जब घूस की मांग और स्वीकारोक्ति को प्रथम दृष्टया सिद्ध किया गया हो।

सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया द्वारा दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय मदन लाल बनाम राजस्थान राज्य में, न्यायालय ने इस सिद्धांत को दोहराया और अभियोजन की विफलता के चलते दो सरकारी कर्मचारियों को दोषमुक्त कर दिया।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • इस प्रकरण में दो सरकारी कर्मचारियों पर एक शिकायतकर्ता ने घूस मांगने और उसे स्वीकार करने का आरोप लगाया था।
  • भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (Anti-Corruption Bureau – ACB) ने उन्हें ट्रैप के दौरान गिरफ्तार किया और उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया।
  • ट्रायल कोर्ट द्वारा उन्हें दोषी ठहराया गया, लेकिन हाईकोर्ट में भी उस निर्णय की पुष्टि की गई।

सुप्रीम कोर्ट का विचार और निर्णय:

1. मांग और स्वीकारोक्ति की पुष्टि आवश्यक:

  • न्यायालय ने दोहराया कि धारा 20 के तहत आरोप सिद्ध करने से पूर्व अभियोजन को यह स्थापित करना अनिवार्य है कि अभियुक्त ने वास्तव में घूस की मांग की थी और उसे स्वीकार भी किया था।
  • मात्र पैसे का बरामद होना या ट्रैप करना, जब तक मांग और स्वीकारोक्ति की पुष्टि नहीं हो जाती, पर्याप्त नहीं है।

2. अभियोजन की विफलता:

  • इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि:
    • शिकायतकर्ता का बयान विरोधाभासी था
    • घूस मांगने के स्पष्ट और ठोस प्रमाण मौजूद नहीं थे।
    • शिकायतकर्ता को घूस देने के लिए बाध्य किए जाने या स्वेच्छा से भुगतान करने के बीच स्थिति स्पष्ट नहीं थी।
  • इसके अलावा, अदालत ने कहा कि ट्रैप के दौरान जो कथित स्वीकारोक्ति हुई, वह भी संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई थी।

3. धारा 20 के अनुमान का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता:

  • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

    “जब तक अभियोजन यह साबित नहीं कर देता कि अभियुक्त ने घूस मांगी और उसे स्वीकार किया, तब तक धारा 20 के तहत अनुमान नहीं लगाया जा सकता।”

  • इस प्रकार, अभियोजन द्वारा ऐसा कोई ठोस सबूत प्रस्तुत न कर पाने पर अदालत ने अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया।

न्यायिक सिद्धांतों की पुष्टि:

  • यह निर्णय उन कई पूर्व निर्णयों की पुष्टि करता है, जिनमें कहा गया है कि घूस की मांग और स्वीकारोक्ति भ्रष्टाचार के मामलों में सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं।
  • इसमें यह भी कहा गया कि कानून का पालन करते हुए अभियुक्त को उचित संदेह का लाभ (Benefit of Doubt) दिया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

मदन लाल बनाम राजस्थान राज्य निर्णय यह स्पष्ट करता है कि भ्रष्टाचार निरोधक मामलों में अभियोजन को उचित और ठोस प्रमाण प्रस्तुत करना अत्यंत आवश्यक है। सिर्फ आरोपी के पास से पैसे मिल जाने से यह सिद्ध नहीं होता कि उसने घूस मांगी या स्वीकार की थी। जब तक मांग और स्वीकारोक्ति को साबित नहीं किया जाता, तब तक धारा 20 के अंतर्गत कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।


महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. घूस की मांग और स्वीकारोक्ति — भ्रष्टाचार सिद्ध करने के लिए मूल तत्व।
  2. धारा 20 का अनुमान तभी लागू होता है जब मांग और स्वीकारोक्ति स्थापित हों।
  3. अभियोजन की विफलता का लाभ अभियुक्त को दिया जाएगा।
  4. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषमुक्ति का आदेश इस बात का प्रतीक है कि प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई और प्रमाणों पर आधारित न्याय मिलना चाहिए