घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत पीड़िता की सुरक्षा में संरक्षण अधिकारियों की भूमिका (Protection Officers under the Domestic Violence Act, 2005: A Legal and Social Safeguard for Victims)

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत पीड़िता की सुरक्षा में संरक्षण अधिकारियों की भूमिका
(Protection Officers under the Domestic Violence Act, 2005: A Legal and Social Safeguard for Victims)


भूमिका

भारत में महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा एक गम्भीर सामाजिक और कानूनी चुनौती रही है। इसके समाधान के लिए संसद ने “घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005)” पारित किया, जो महिलाओं को न केवल हिंसा से राहत दिलाने बल्कि उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक प्रभावी कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत “संरक्षण अधिकारी (Protection Officer)” की नियुक्ति एक प्रमुख प्रावधान है, जिसका उद्देश्य पीड़ित महिला को शीघ्र, प्रभावी और न्यायसंगत सहायता उपलब्ध कराना है।


घरेलू हिंसा की परिभाषा

इस अधिनियम के तहत, घरेलू हिंसा केवल शारीरिक मारपीट तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शामिल हैं:

  • शारीरिक हिंसा
  • मानसिक उत्पीड़न
  • यौन उत्पीड़न
  • आर्थिक शोषण
  • मौखिक अपमान
  • धमकी या डराना
    (धारा 3 – Domestic Violence Defined)

संरक्षण अधिकारी की भूमिका और दायित्व (Section 8-10, DV Act)

1. नियुक्ति (Appointment):

  • प्रत्येक जिले में सरकार द्वारा एक या अधिक संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।
  • ये अधिकारी जिलाधिकारी के अधीन कार्य करते हैं।
  • सरकार आवश्यकता अनुसार NGO, सामाजिक कार्यकर्ता या सरकारी कर्मचारी को भी यह ज़िम्मेदारी दे सकती है।

2. शिकायत दर्ज कराने में सहायता:

  • पीड़िता जब अदालत जाना चाहती है, तो संरक्षण अधिकारी उसकी ओर से याचिका (Domestic Incident Report) तैयार करता है और अदालत को भेजता है।
  • महिला यदि चाहती है तो मौखिक रूप से भी रिपोर्ट दे सकती है, जिसे संरक्षण अधिकारी लिखित रूप में दर्ज करता है।

3. अदालत में सहयोग:

  • संरक्षण अधिकारी पीड़िता के लिए अस्थायी संरक्षण आदेश (Protection Order), निवास आदेश (Residence Order), भरण-पोषण आदेश (Monetary Relief) और हिंसा से रोकने के आदेश (Injunction) दिलवाने में मदद करता है।
  • वह अदालत के समक्ष सभी आवश्यक दस्तावेज और जानकारी प्रस्तुत करता है।

4. चिकित्सा, आश्रय और कानूनी सहायता का प्रबंध:

  • यदि पीड़िता को आश्रयगृह, चिकित्सकीय सहायता या काउंसलिंग की आवश्यकता है, तो संरक्षण अधिकारी उसका तत्काल प्रबंध करता है।
  • वह संबंधित सेवा प्रदाताओं से संपर्क करता है और पीड़िता को आवश्यक सेवा दिलवाता है।

5. भरण-पोषण और पुनर्वास:

  • वह पीड़िता को भरण-पोषण (maintenance) दिलवाने की प्रक्रिया में सहायता करता है।
  • यदि महिला को पुनर्वास की आवश्यकता है, तो वह पुनर्वास केंद्रों से समन्वय करता है।

6. रिपोर्टिंग और रिकॉर्ड:

  • प्रत्येक मामले की प्रगति के बारे में संरक्षण अधिकारी नियमित रूप से अदालत और राज्य सरकार को रिपोर्ट करता है।
  • वह रिपोर्ट में यह भी बताता है कि आदेशों का पालन हो रहा है या नहीं।

कानून के अनुसार संरक्षण अधिकारी की शक्ति (Legal Authority of Protection Officer)

  • अदालत की सहायता में न्यायिक शक्ति
  • याचिकाएं दाखिल करना
  • अदालत के आदेशों का पालन सुनिश्चित कराना
  • उल्लंघन की स्थिति में जानकारी देना
  • सहायता सेवाओं का समन्वय करना

संरक्षण अधिकारी और पीड़िता के अधिकार

  • पीड़िता की गोपनीयता सुनिश्चित करना
  • उसे उसके वैधानिक अधिकारों की जानकारी देना
  • बिना पक्षपात के सहायता देना
  • महिलाओं की गरिमा की रक्षा करना

व्यावहारिक चुनौतियाँ

  • सभी जिलों में पूर्णकालिक संरक्षण अधिकारियों की कमी
  • प्रशिक्षित अधिकारियों की अपर्याप्त संख्या
  • जमीनी स्तर पर सेवा प्रदाताओं से तालमेल की कमी
  • पुलिस और अदालतों से समन्वय में दिक्कतें
  • सामाजिक कलंक और दबाव के कारण महिलाएं शिकायत करने से डरती हैं

सुधार के सुझाव

  • हर जिले में पूर्णकालिक प्रशिक्षित संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति
  • महिला हेल्पलाइन और वन-स्टॉप सेंटर से समन्वय
  • डिजिटल शिकायत तंत्र का विकास
  • नियमित प्रशिक्षण और सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम
  • पीड़ितों की गवाही को वीडियो या ऑनलाइन माध्यम से दर्ज करने की सुविधा

निष्कर्ष

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 केवल कानूनी दस्तावेज नहीं बल्कि महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा का संवैधानिक संकल्प है। संरक्षण अधिकारी, इस अधिनियम की आत्मा हैं जो पीड़ित महिला को न केवल राहत दिलाते हैं, बल्कि उन्हें पुनः सामाजिक रूप से सशक्त बनने में मदद करते हैं। यदि इस व्यवस्था को और प्रभावी व उत्तरदायी बनाया जाए, तो यह महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा की जड़ों को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकता है।