“घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायतों की निरस्तीकरण की प्रक्रिया: धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत न्यायालय की विवेकाधिकार शक्ति का विश्लेषण”

“घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायतों की निरस्तीकरण की प्रक्रिया: धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत न्यायालय की विवेकाधिकार शक्ति का विश्लेषण”


परिचय:
घरेलू हिंसा (Domestic Violence) भारत में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले सबसे आम अपराधों में से एक है। इसे रोकने और पीड़िता को संरक्षण, राहत एवं पुनर्वास प्रदान करने हेतु घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) लागू किया गया। इस अधिनियम के तहत महिला अपने पति या ससुराल पक्ष के अन्य सदस्यों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कर सकती है। परंतु कई बार शिकायतें दुर्भावना, निजी वैमनस्य या झूठे आरोपों के आधार पर की जाती हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 न्यायालय को शिकायतों को निरस्त करने (quash) का विशेष अधिकार प्रदान करती है।


धारा 482 CrPC: न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियाँ (Inherent Powers):
CrPC की धारा 482 उच्च न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह:

  1. न्याय की रक्षा हेतु आवश्यक आदेश पारित कर सके,
  2. किसी प्रक्रिया का दुरुपयोग रोके,
  3. विधि के उद्देश्यों की पूर्ति सुनिश्चित करे।

सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अनेक निर्णयों में स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत की गई शिकायतों को भी धारा 482 के अंतर्गत निरस्त किया जा सकता है, यदि यह पाया जाए कि:

  • शिकायत दुर्भावनापूर्ण है,
  • प्राथमिक साक्ष्य से कोई प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता,
  • पक्षों के बीच सुलह हो चुका है,
  • न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया है।

प्रमुख उदाहरण:
Devashish v. State & Anr. (काल्पनिक उदाहरण) जैसे मामलों में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच आपसी सुलह हो चुका है और विवाहिक जीवन पुनः शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है, तो न्यायालय धारा 482 के अंतर्गत कार्यवाही को निरस्त कर सकता है।


घरेलू हिंसा अधिनियम बनाम दंड प्रक्रिया संहिता:

  • घरेलू हिंसा अधिनियम सिविल और क्रिमिनल दोनों प्रकार की राहत प्रदान करता है।
  • इसमें Protection Order, Residence Order, Maintenance, Custody, Compensation जैसे प्रावधान शामिल हैं।
  • परंतु यदि शिकायत स्पष्ट रूप से द्वेषपूर्ण या व्यक्तिगत बदले की भावना से प्रेरित हो, तो आरोपी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हेतु उच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।

BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) का सन्दर्भ:
यदि कोई नया विधिक ढांचा जैसे BNSS (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) लागू किया गया है (CrPC का प्रतिस्थापन), तो उसमें भी धारा 482 जैसी अंतर्निहित शक्तियों की व्यवस्था की संभावना रहती है ताकि न्यायालय न्याय की रक्षा कर सके।


निष्कर्ष:
घरेलू हिंसा एक गंभीर सामाजिक समस्या है, लेकिन साथ ही न्यायिक प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि कोई निर्दोष व्यक्ति झूठे आरोपों में न फँसे। धारा 482 CrPC न्यायालय को इस संतुलन को बनाए रखने का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण प्रदान करती है। यदि कोई शिकायत दुर्भावनापूर्ण, असत्य या पक्षों के बीच समझौते के बावजूद लंबित हो, तो उसे न्यायालय द्वारा निरस्त किया जा सकता है।