घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत सास को भी है संरक्षण का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

लेख शीर्षक: घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत सास को भी है संरक्षण का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

परिचय:

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को पारिवारिक या घरेलू संबंधों में होने वाले अत्याचारों से सुरक्षा प्रदान करना है। सामान्यतः इस अधिनियम को पत्नी या बहू के संरक्षण के रूप में देखा जाता है, लेकिन हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण और प्रगतिशील निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि सास को बहू द्वारा उत्पीड़न या हिंसा का सामना करना पड़ता है, तो वह भी “पीड़ित महिला” (Aggrieved Person) की श्रेणी में आती है और धारा 12 के अंतर्गत शिकायत दायर कर सकती है।

मामले का संक्षिप्त विवरण:

इस केस में सास द्वारा अपनी बहू के विरुद्ध घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12, भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, 323, 504, 506, दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4, और BNSS की धारा 528 के अंतर्गत शिकायत दर्ज की गई थी। बहू पर शारीरिक मारपीट, मानसिक उत्पीड़न, गाली-गलौज और दहेज की मांग करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे।

उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण और निर्णय:

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत को स्थापित करते हुए कहा कि:

  1. घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत कोई भी “महिला जो घरेलू संबंध में रही हो और साझा घर में निवास कर चुकी हो”, वह पीड़ित महिला (Aggrieved Person) मानी जाती है।
  2. इस परिभाषा को केवल पत्नियों या बहुओं तक सीमित नहीं किया जा सकता।
  3. यदि कोई सास अपनी बहू के साथ एक ही घर में रही हो और उसके द्वारा शारीरिक हिंसा, मानसिक प्रताड़ना या क्रूरता का सामना कर रही हो, तो वह इस अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण पाने की अधिकारी है।
  4. विधायी मंशा (Legislative Intent) यह है कि किसी भी महिला को, उसकी पारिवारिक भूमिका चाहे जो भी हो, यदि वह घरेलू हिंसा की शिकार है, तो उसे कानून संरक्षण दे।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • महिलाओं के बीच घरेलू हिंसा: यह निर्णय उन सामाजिक अवधारणाओं को चुनौती देता है जिसमें केवल पुरुषों को हिंसा करने वाला माना जाता है। कोर्ट ने माना कि घरेलू हिंसा किसी भी परिवार सदस्य द्वारा, यहाँ तक कि एक महिला द्वारा दूसरी महिला पर भी, की जा सकती है।
  • वरिष्ठ महिलाओं का संरक्षण: बुज़ुर्ग महिलाओं को परिवार में बहुओं द्वारा उपेक्षा, अपमान या हिंसा का सामना करना पड़ सकता है, और अब उन्हें भी इस कानून के तहत संरक्षण प्राप्त है।
  • संवैधानिक दृष्टिकोण: यह निर्णय समानता, गरिमा और सुरक्षा जैसे संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है, जो सभी नागरिकों को बिना भेदभाव के अधिकार प्रदान करता है।

प्रभाव और महत्व:

  • यह फैसला सामाजिक और न्यायिक दृष्टिकोण से मील का पत्थर है।
  • घरेलू हिंसा अधिनियम की व्याख्या को व्यापक रूप प्रदान करता है जिससे अधिक महिलाओं को न्याय की पहुंच मिल सके।
  • कानूनी प्रक्रिया की निष्पक्षता को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कानून का दुरुपयोग न हो और वास्तविक पीड़ित को न्याय मिले।

निष्कर्ष:

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह निर्णय स्पष्ट रूप से बताता है कि घरेलू हिंसा कानून का उद्देश्य केवल किसी एक रिश्ते विशेष को नहीं, बल्कि हर उस महिला को संरक्षण देना है जो घरेलू रिश्ते में रह रही हो और हिंसा की शिकार हो। सास का बहू के खिलाफ शिकायत दर्ज कर पाना इस बात का प्रमाण है कि कानून लिंग, उम्र या पारिवारिक स्थिति के आधार पर पक्षपात नहीं करता। यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था में महिलाओं की गरिमा और अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगतिशील कदम है।